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Chhattisgarh: बस्तर में नक्सलियों के कारण जान गवां रहे निर्दोष ग्रामीण, माओवादियों-सरकार के बीच शांतिवार्ता की कर रहे मांग

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सुरक्षा बलों को हानि पहुंचाने के लिए माओवादियों के लगाए गए प्रेशर आई ई डी की चपेट में आकर मारे गए नवयुवक गड़िया कुंजाम के लिए मृत्यु स्मृति स्तंभ की शिला और मुदवेंडी गांव के ग्रामीण

Chhattisgarh News: बीजापुर जिले का एक गांव है मुदवेंडी, साल 1987 से ही इस क्षेत्र में माओवादियों की मजबूत पकड़ बनी हुई है, लेकिनअब इस क्षेत्र के लोग शांति चाहते हैं. यह पहली बार हो रहा है जब ग्रामीण ख़ुद ही यह कह रहे हैं कि सरकार और माओवादियों को हर हाल में बातचीत करनी ही चाहिए. लगातार चली आ रही हिंसक गतिविधियों में आम लोगों की मौतों और गिरफ्तारियों के बीच यहां के ग्रामीण सरकार और माओवादियों को आड़े हाथ ले रहे हैं. ये ग्रामीण हमेशा से ही सरकार के खिलाफ खड़े नज़र आते थे लेकिन यह पहली बार है जब ये माओवादियों के खिलाफ भी नज़र आ रहे हैं. ग्रामीण नाराज़गी, शोक और डर जताते हुए बताते हैं, कि सरकार ने आज़ादी के बाद से ही इस क्षेत्र को अनाथ छोड़ दिया था, माओवादी आए और यह क्षेत्र माओवादियों के प्रभाव में आ गया. अब सीआरपीएफ का नए कैंप इस क्षेत्र में खोले जा रहे हैं लेकिन सुरक्षा बलों की मौजूदगी के बावजूद जब ग्रामीणों को गोलियों का शिकार होना पड़ रहा हो, प्रेशर बॉम्ब्स के कारण मरना पड़ रहा हो तो सुरक्षा बलों पर नाराज़गी जताते हुए वे पूछ रहे हैं कि फोर्स यहां होने के बावजूद हमारे लोग गोलियों से या बॉम्ब फटने से क्यों मारे जा रहे हैं ?

20 अप्रैल को प्रेशर IED की चपेट में आने से युवक की हुई थी मौत

यह घटना तब घटी जब 18 साल का गड़िया वनोपज संग्रहण के काम से अपने घर से महज आधे किलोमीटर दूर जंगल गया हुआ था. दरअसल, बस्तर के एक बड़े भू-भाग में रहने वाला आदिवासी समुदाय वनोपज संग्रहण करके अपनी ज़िंदगी गुजारता है, और अपनी आजीविका के बहुत सीमित संसाधनों में से एक जिसे बस्तर का हरा सोना कहा जाता है, यानि तेंदू के पत्ते. तेंदूपत्ते को बांधने के लिए रस्सी काटकर लाने के लिए जब गड़िया जंगल गया हुआ था, तो वह नक्सलियों के लगाए प्रेशर आईईडी की चपेट में आ गया. एक धमाका हुआ और गड़िया के दोनों पैर टूट गए.

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गड़िया के साथ एक और ग्रामीण भी था, लेकिन इस घटना से डरा हुआ वह ग्रामीण जंगलों में ही भाग गया. यह घटना 20 अप्रैल को घटी थी और इसके अगले दिन भागा हुआ ग्रामीण अपने गांव मुदबेंडी वापस आया और ग्रामीणों को पूरी घटना बताई. ग्रामीण जंगलों की तरफ कूच कर गए लेकिन घायल युवक गड़िया की स्थिति तब तक काफी गंभीर हो चुकी थी. पूरे 24 घंटों से लगातार युवक के कटे हुए पैरों से खून बह रहा था, जब उसे गांव वापस लाया गया और मोबाइल नेटवर्क तलाशकर मदद के लिए एंबुलेंस बुलाई गई, इसके पहले कि एंबुलेंस रवाना भी होती गड़िया की जान जा चुकी थी.

1 जनवरी 2024 की सुबह माओवादियों और सुरक्षा बलों के बीच हुई गोलीबारी के दौरान मारी गई 6 महीने की मासूम ‘मंगली सोढ़ी’ का ‘मृत्यु स्मृति स्तंभ’

माओवादियों पर सख्त वर्तमान सरकार, वार्ता के लिए डाल रही दबाव

छत्तीसगढ़ में पूर्व की सरकारों ने कई बार माओवादियों से बातचीत की पेशकश की थी लेकिन कभी भी माओवादियों ने पूर्व की सरकारों की पहल पर अमल नहीं किया था. प्रदेश की पिछली बघेल सरकार ने भी कहा था कि वे माओवादियों से बातचीत कर इस समस्या का समाधान करेंगे लेकिन उनके पूरे कार्यकाल के दौरान उन्होंने एक बार भी माओवादियों से वार्ता की पहल नहीं की थी इसके उलट प्रदेश में नई सरकार के आते ही गृहमंत्री विजय शर्मा ने मीडिया के सामने आकर माओवादियों से बातचीत की अपील ही कर डाली. माओवादियों ने गृहमंत्री की तरफ से बातचीत की पेशकश के बाद 1 महीने तक उच्चस्तरीय मंत्रणा कर जवाब भी दिया. यह पहली बार ही हुआ कि किसी ऊंचे ओहदे के राजनैतिक पद पर बैठे प्रभावशाली व्यक्ति ने माओवादियों से बातचीत की अपील की और ऐसा भी पहली दफे देखने को मिला कि माओवादियों ने भी गृहमंत्री विजय शर्मा के इस पहल का जवाब दिया. हालांकि माओवादियों की तरफ से जो जवाब दिया गया उसमें वे सशर्त वार्ता की बात कहते नज़र आए, जबकि माओवादियों ने जो छह शर्तें सरकार के समक्ष रखीं थीं उन पर अमल करना सरकार की नीतियों के खिलाफ है. इसके बाद माओवादियों ने एक और प्रेस नोट जारी कर सरकार पर शांतिवार्ता को लेकर दबाव बनाने की बात कही थी.

साल 2001 से लेकर दिसंबर 2023 तक माओवादी घटनाओं में समूचे बस्तर में 1775 आम लोग, पत्रकार और जनप्रतिनिधि अपनी जान गवां चुके हैं. जिनमें सबसे ज्यादा बीजापुर जिले के 783 लोग मारे जा चुके हैं, इसके बाद दंतेवाड़ा में 344, और इसी तरह सुकमा, नारायणपुर, कांकेर, कोंडागांव और बस्तर जिले से भी मौतों के आंकड़े दर्ज हैं. हाल की घटनाओं पर नज़र डाली जाए तो महज 4 महीनों में ही 80 से अधिक माओवादियों को सुरक्षा बलों ने मार गिराया है और इसी गति से बस्तर में कैंप भी खोले जा रहे हैं. यह भी पहली बार ही हो रहा है जब माओवादियों को सुरक्षाबलों की तरफ से वाकई गंभीर नुकसान पहुंचाया जा रहा है. लेकिन मुदवेंडी जैसे अतिमाओवाद प्रभावित क्षेत्र से शांतिवार्ता की आवाज़ ग्रामीणों के द्वारा उठाया जाना, यह भी पहली बार ही हो रहा है.

परिजनों ने नहीं कराई FIR

प्रेशर आईईडी की चपेट में आकर गड़िया की मौत के बाद बीजापुर पुलिस के ए एसपी गड़िया के परिजनों से मिलने बाइक पर सवार होकर जवानों की टीम लेकर उनके गांव मुदवेडी पहुंचे. यहां उन्होंने गड़िया और मंगली के परिजनों को एफआईआर दर्ज करने का सुझाव दिया लेकिन ये परिवार इतना अधिक भयभीत है कि एफआईआर कराने से पीछे हट गया है. पुलिस अधिकारियों ने उन्हें बताया भी कि एफआईआर किए जाने से परिवार को मुआवजा और किसी सदस्य को सरकारी नौकरी मिल सकती है लेकिन इसके बावजूद डरे सहमे परिजनों और ग्रामीणों ने सिर्फ रो रोकर उन्हें याने पुलिस के अधिकारियों को एफआईआर कराने से मजबूरन मना कर दिया.

एक सवाल जो शायद वह जनता किसी से नहीं पूछ पा रही है, जो लोकतंत्र का आधार है और जनताना सरकार की आधारशिला भी, वो सवाल इस जनता की खामोशी में गूंजते हुए साफ सुना जा सकता है. जब माओवादी विचारधारा और लोकतांत्रिक विचाधारा के केंद्र में जनता का हित निहित है, तो फिर जनता का ही अहित क्यों हो रहा है ?अगर इस सवाल का सटीक जवाब दोनों ही विचारधाराएं दे सकें तो शायद जनता अपना सर्वांगीण विकास ज़रूर कर सकेगी.

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