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Chhattisgarh News: बांस के बने पोटा केबिन में असुरक्षित बच्चों कि जिंदगी, 12वीं कक्षा की छात्रा भी हुई गर्भवती

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गर्भवती छात्रा

Chhattisgarh News: बस्तर के सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर जिले में बांस की चटाइयों से 61 पोटा केबिन बनाकर हज़ारों बच्चों को शिफ्ट किया गया था. इसके बाद से नक्सल इलाके के हज़ारों आदिवासी बच्चे यहां रहकर मुफ्त में पढ़ाई कर रहे हैं. लेकिन बड़ी बात ये है की सरकारें बदल गईं. लेकिन हालात अब भी जस के तस हैं.

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित इलाकों के हज़ारों बच्चों की जिंदगी दांव पर लगी हुई है. जिन आवासीय संस्थाओं में रहकर ये बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं, वे बांस की चटाइयों के बने हुए हैं. सरकारें बदलीं, शिक्षा के नाम पर करोड़ों फूंके गए, लेकिन बांस की चटाइयों को हटाकर पक्के भवन बनाने की किसी ने नहीं सोची. ज़िंदगी दांव पर लगाकर बांस के बने कमरों में रहकर हज़ारों बच्चे अपना भविष्य गढ़ रहे हैं.

बीजापुर में पोटा केबिन में आग लगने से बच्ची कि हुई थी मौत

बीजापुर जिले में पोटा केबिन में आग लगने से दर्दनाक हादसा हुआ है. इसमें एक मासूम बच्ची ज़िंदा जल गई. हादसा हृदय विदारक और रूह कंपाने वाला है. हादसे की वजह अभी सामने नहीं आई है, लेकिन ये बात जरूर सामने आई है कि चंद मिनटों में आग फैलने की बड़ी वजह बांस का बना ये पोटा केबिन भी है. ऐसी संस्था सिर्फ एक ही नहीं है, बल्कि बस्तर के सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर जिले में बने 61 पोटाकेबिनों में से 40 की हैं, जो अब भी बांस के ही बने हुए हैं. यहां 15,000 से ज्यादा बच्चे असुरक्षा के बीच जिंदगी को दांव पर लगाकर अपना भविष्य गढ़ रहे हैं.

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पहले भी हुई है आगजनी की घटना

बता दें कि बांस से बने इन आवासीय संस्थाओं में आग लगने का यह पहला मामला नहीं है. बल्कि, दो साल पहले दंतेवाड़ा जिले के कारली स्थित पोटा केबिन में आगजनी की घटना तब हुई थी, जब बच्चे छुट्टी पर अपने घर गए हुए थे. ऐसे में बड़ा हादसा तो टल गया था, लेकिन सारे दस्तावेज, सामान और पूरे कमरे जलकर राख हो गए थे. इस वक़्त भी बांस को हटाकर पक्के भवन बनाने की मांग उठी थी. इन जिलों में कुछ भवन ज़रूर बने हैं, लेकिन 40 पोटा केबिन अब भी बांस के ही कमरों में संचालित हैं.

पोटा केबिन में गर्भवती हुई 12वीं की छात्रा

बीजापुर के एक पोटा केबिन में 12वीं कक्षा की छात्रा गर्भवती हो गई. ऊसके पेट में अचानक दर्द हुआ फिर जांच कराने पर पता चला की छात्रा गर्भवती है. सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में  उसने बच्चे को जन्म दिया. छात्रा और बच्चा दोनों सुरक्षित है. लेकिन पोटा केबिन मे बच्चों की सुरक्षा को लेकर प्रशासन पर सवाल खड़े हो रहे है.

इसलिए पड़ी थी जरूरत

बता दें कि साल 2005 में नक्सलवाद के खिलाफ सलवा जुडूम शुरू होने के बाद नक्सलियों ने बस्तर में खूब तांडव मचाया था. बस्तर में स्कूल, सरकारी भवन में खूब तोड़फोड़ की थी. इसके बाद बस्तर के कई स्कूलें बंद हो गई थी. साल 2010-11 को तत्कालीन सरकार ने बच्चों की पढ़ाई जारी रखने के लिए शहर के आसपास 500-500 सीटर की टेम्परेरी आवासीय संस्थाएं (पोर्टेबल केबिन) बनाई थी. यहां नक्सल इलाके के हज़ारों बच्चों को लाकर रखा गया था और उनकी पढ़ाई जारी रखी गई थी. बस्तर के सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर जिले में बांस की चटाइयों से 61 पोटा केबिन बनाकर हज़ारों बच्चों को शिफ्ट किया गया था. इसके बाद से नक्सल इलाके के हज़ारों आदिवासी बच्चे यहां रहकर मुफ्त में पढ़ाई कर रहे हैं, लेकिन बड़ी बात ये है की सरकारें बदल गईं. लेकिन हालात अब भी जस के तस हैं.

 

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