Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ के बिलासपुर और उसके आसपास के गांव के हेल्थ सेंटरों में भारी कमी है. इनमें ना तो डॉक्टरों की नियुक्तियां की गई हैं और न ही सुविधाएं हैं. नतीजन लोगों को इलाज के लिए बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. मरीज और उनके परिजन लगातार इन समस्याओं की जानकारी स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को दे रहे हैं, लेकिन समस्या कम नहीं हो रही है. विस्तार न्यूज़ ने ऐसे ही आसपास के 10 गांवों का जायजा लिया. इन गांवों में पिपरा, पौंसरा, डंगनिया, उर्तुम, खैरा, नगपुरा जैसे गांव शामिल हैं. कहने को तो गांव में उप स्वास्थ्य केंद्र हेल्थ सेंटर, हेल्थ वेलनेस सेंटर जैसी सुविधा उपलब्ध है लेकिन इनमें न तो समय पर डॉक्टर आते हैं और न स्वास्थ्य का अमला.
जिला अस्पताल में मरीजों का बढ़ रहा लोड
स्वास्थ्य सुविधा की स्थिति यह है कि मामूली सी सर्दी खांसी होने पर भी सैकड़ों ग्रामीणों को रोज सिम्स और जिला अस्पताल आना पड़ता है. ग्रामीण बताते हैं कि कई दिनों तक तो इन स्वास्थ्य सेंटरों पर ताले तक नहीं खुलते हैं. इधर, इसके चलते सिम्स और जिला अस्पताल जैसे सरकारी अस्पतालों पर रोजाना मरीजों का लोड बढ़ता जा रहा है.
2 करोड़ रुपए से ज्यादा हुए खर्च
स्वास्थ्य विभाग ने पिछले एक दो सालों में 66 से अधिक प्राथमिक, उप स्वास्थ्य केंद्र और हेल्थ वेलनेस सेंटरों पर 2 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च कर दिए हैं. गंभीर बात ये है कि इनमें चिकित्सकों की नियुक्ति नहीं होने के कारण आरएचओ या इसे भी छोटे पदों के कर्मचारी ऐसे हेल्थ सेंटरों का संचालन कर रहे हैं. बता दें कि बिलासपुर से सटे विकास खंडों के स्वास्थ्य केन्द्रों पर 66 बेड का आइसोलेशन केंद्र बना दिया गया है, जिनका फिलहाल कोई इस्तेमाल नहीं हो रहा है और उनके नाम पर ही दो करोड़ रुपए खर्च कर दिए गए हैं.
ये है बड़ी दिक्कतें
दरअसल हालात ऐसे हैं कि शहर से लगे गांव में स्वास्थ्य सुविधाएं एकदम फेल है. हेल्थ सेंटर पर एंबुलेंस नहीं है, दवाई ठीक तरह से पहुंचाई नहीं जा रही है. वहीं गंभीर अवस्था के मरीजों का उपचार नहीं हो पा रहा है. दिनों दिन स्वास्थ्य सुविधाओं का इंतजाम उस तरह से नहीं हो पा रहा है जैसा होना चाहिए. इससे न सिर्फ ग्रामीण बल्कि आसपास के रहवासी भी समस्या ग्रस्त हैं.
लगातार उठ रही संसाधनों की मांग
बता दें कि रतनपुर, मस्तूरी बिल्हा, तखतपुर, मुंगेली, पेंड्रा गौरेला मरवाही और बेलगहना के हेल्थ सेंटर से लगातार संसाधन उपलब्ध कराने की मांग उठ रही है. यहां के स्वास्थ्य केन्द्रों पर सैकड़ों हजारों लोगों को ठीक करने की जिम्मेदारी तो थोप दी गई है लेकिन जीवन रक्षक दवाएं और जीवन रक्षा करने वाली गाड़ियों की कमी के चलते ही इन क्षेत्रों के कर्मचारी अपने अधिकारियों को यहां की समस्या से अवगत करवा रहे हैं, फिर भी स्थिति जस की तस बनी हुई है.