Chhattisgarh News: सरगुजा संभाग के बलरामपुर जिले में एक ऐसा गांव हैं, जहां के लोग 10 किलोमीटर पैदल चलकर मतदान करने जाते हैं, क्योंकि गांव तक जाने के लिए कोई सड़क नहीं है. गांव पहाड़ के ऊपर बसा हुआ है, और यहां से उतरकर वे मतदान के लिए पोलिंग बूथ तक जाते हैं. पहाड़ से उन्हें उतरने में दो घंटे का समय लगता है, और इतना ही समय मतदान के बाद वापस घर जाने में लगता है. मतदान के दिन यहां के लोग सुबह-सुबह निकल जाते हैं. वहीं घर से निकलते समय ये लोग घर से खाना लेकर निकलते हैं, ताकि भूख लगने पर उसे खा सके, क्योंकि मतदान के दिन वापस घर लौटने तक शाम के चार-पांच बज जाते हैं.
गांव में मूलभूत सुविधाओं का अभाव
मतदान के प्रति यह जज्बा बलरामपुर जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर बचवार गांव का है, जो खड़ियाडामर ग्राम पंचायत का गांव है. यहां लगभग 150 लोग आजादी से पहले से रह रहे हैं, और 70 मतदाता हैं. वहीं करीब 40 से अधिक मकान है. यहां पहुंचने के लिए पहाड़ की चढ़ाई लाठी के सहारे करना पड़ता है. यहां अब तक कोई भी विधायक या सांसद नहीं पहुंचा और न ही कोई नेता वोट मांगने पहुंचा है. इसके बाद भी लोग मतदान में अपना योगदान दें रहे हैं, लेकिन सबसे बड़ी बात कि इस गांव में न बिजली है न साफ पानी की व्यवस्था. अगर कोई महिला गर्भवती होती है और प्रसव का समय पास होता है, तो लोग महिलाओं को खाट में ढोकर पहाड़ से किसी तरह अस्पताल तक ले जाते हैं. वहीं बिजली के आभाव में यहां के बच्चे रात में पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि केरोसिन भी अब नहीं मिलता है जिससे पहले यहां के लोग दीपक जलाते थे.
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जिम्मेदार नहीं दे रहे ध्यान
इस गांव में कई लड़के अब भी कुँवारे हैं, क्योंकि यहां सड़क, बिजली और पानी नहीं होने की वजह से कोई भी लड़की इस गांव में अपनी शादी नहीं करना चाहती हैं. हद तो यह है कि यहां तक पहुंचने के लिए सड़क का निर्माण पहाड़ को काटकर बनाया जा सकता है, लेकिन जिम्मेदारों ने इसके लिए अब तक कोई पहल ही नहीं किया. वहीं यहां के ग्रामीण साफ कहते हैं कि अगर वे गांव छोड़ते हैं, तो उनके सामने खेती की जमीन की समस्या होगी, क्योंकि सरकार उन्हें मकान तो उपलब्ध करा देगी लेकिन वे जीविकोपार्जन कैसे करेंगे.
बचवार गांव में स्कूल का बिल्डिंग भी नहीं है, ऐसे में यहां अस्थाई शेड बनाकर स्कूल बनाया गया है लेकिन शिक्षक भी यहां रोज नहीं पहुंच पाते हैं, ऐसे में दो तीन दिन में शिक्षक एक दिन जाते हैं. वहीं शिक्षक अगर यहां रहकर पढ़ाना चाहे तो रहने के लिए मकान नहीं है. वहीं यहां के ग्रामीण भी राशन लेने के लिए 10 किलोमीटर पैदल चलते हैं और राशन को कांवर में ढोकर पहाड़ को चढ़ते हैं और अपने घरों तक पहुंचते हैं.
इस गांव की समस्या बलरामपुर जिले में पदस्थ होने वाले हर कलेक्टर को रहता है, लेकिन इसके बाद भी किसी भी अफसर ने यहां कच्ची सड़क निर्माण तक के लिये कोई पहल नहीं किया. जबकि सरकारें आदिवासी क्षेत्रों के विकास के लिए बजट में किसी भी तरह से कमी नहीं होने की बात करते हैं, लेकिन अफसर हमेशा बजट का रोना रोते हैं.