Chhattisgarh: कहीं बच्चे गूंगे-बहरे न पैदा न हों… इसलिए इस गांव से नहीं रखते रिश्ता! हैरान करने वाली है कहानी
Chhattisgarh: एक आवाज जो सुनाई देती है, इसके बाद ही हमारा मस्तिष्क उसे समझने का प्रयास करता है और जरूरत के हिसाब से शरीर के हिस्से को कमांड देता है. सोचिए… अगर कोई बोल-सुन न सके तो उसके लिए जीवन कैसा हो जाएगा? इसकी कल्पना मात्र से ही हम लोग घबरा जाते हैं. हालांकि, छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में एक ऐसा गांव है जहां 22 से 25 लोग गूंगे-बहरे हैं. इसलिए इस गांव के असली नाम की जगह ‘गूंगे-बहरों का गांव’ भी कहा जाता है.
एक गांव में 22 से 25 लोग गूंगे-बहरे!
दरअसल, रायगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 110 किलोमीटर दूर लैलूंगा ब्लॉक के हीरापुर गांव में 22 से 25 लोग गूंगे और बहरे हैं. 3 साल के बच्चे से लेकर 65 साल के बुजुर्ग तक इस गूंगे-बहरे के लिस्ट में शामिल हैं. लेकिन गांव के ज्यादातर लोगों ने इस परेशानी के साथ जीना सीख लिया है. इस गांव में आने के बाद ऐसा लगेगा जैसे यहां लोग बात करने के लिए इशारों की भाषा खोजकर इस्तेमाल करते हैं.
गांव से कोई नहीं रखना चाहता है रिश्ता
इस परेशानी के कारण इस गांव में दूसरे गांव के लोग रिश्तेदारी रखने से बच रहे हैं. उनको आशंका ये भी है कि उस गांव में जिसकी भी रिश्तेदारी हुई, उसके घर में गूंगे-बहरे बच्चे पैदा होंगे. वहीं गांव में गूंगे-बहरे की बात करें, तो इनमें से कुछ तो एक ही परिवार में 2 से 3 लोग हैं. इसके चलते गांव के लोग इशारों में बात करने को मजबूर हैं.
कई मुश्किलों का करना पड़ता है सामना
आपको बता दें कि जो लोग गूंगे बहरेपन की समस्या से जूझ रहे हैं, वो सभी एक ही समाज के लोग हैं. सभी शिकारी जनजाति के लोग हैं. जंगलों के बीच ये लोग रहकर अपना जीवन यापन करते हैं. गांव वालों ने अपना दुख बताते हुए कहा कि आज जो लोग इस परेशानी से जूझ रहे हैं, इनके पूर्वज नॉर्मल थे. उनके साथ पढ़े-लिखे कई लोग गूंगे-बहरे हैं. छठी से आठवीं तक गांव में ही पढ़ाई होती है, इसलिए कुछ बच्चे इशारों से ही थोड़ा लिखना सीख जाते हैं. लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए वे यहां से बाहर नहीं जा सकते हैं. सड़क पर चलना और काम करना तक बहुत मुश्किल है. सड़क पर चलते हैं तो गाड़ियों की आवाज सुनाई नहीं देती और वे अपनी परेशानी किसी को बता नहीं सकते हैं.
गूंगे-बहरे लोगों से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहता
गूंगे-बहरे होने के कारण इन लोगों का जीवन मुश्किलों से भरा हुआ है. जो काम नहीं कर पाते हैं, वे भीख मांग कर जीवन यापन करते हैंं. रचना शिकारी ने रोते हुए बताया कि गूंगे-बहरे लोगों की वजह से उनके परिवार में कोई रिश्ता नहीं रखता. उनकी दो बहनें और एक भाई गूंगे-बहरे हैं. प्रशासन की तरफ से भी कोई मदद नहीं मिली है. दिव्यांग प्रमाणपत्र बना दिया गया है, लेकिन ना ही पेंशन मिलती है और ना कोई पूछता है.
क्यों गूंगे-बहरे हो रहे ग्रामीण?
गांव में लोगों के गूंगे-बहरे होने के पीछे अबतक कारण पता चला नहीं है. आस-पास के डॉक्टरों को ये बीमारी रहस्यमयी लगती है.