Chhattisgarh News: पुलिस, ये एक शब्द ही नहीं है. प्रताड़ितों, शोषितों और पीड़ितों की उम्मीद है और अपराधियों के लिए, काल. शहरों में पुलिस के पास अपराधिक गतिविधियों को कम करने, शांति व्यवस्था बनाए रखने, नागरिकों और माननीयों को सुरक्षा देने जैसे काम होते हैं लेकिन नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में पुलिस के कंधों पर दोहरी ज़िम्मेदारी तय हो जाती है. छत्तीसगढ़ का बीजापुर जिला नक्सल प्रभावित जिला है और यहां पुलिस का सबसे प्रमुख कार्य नागरिकों की सुरक्षा में नक्सल मोर्चे को संभालना और फतह हासिल करना है, मिल रही सफलताओं के साथ होने वाले नुकसानों का इतिहास भी भयावह सिद्ध हुआ है. ऐसे हालातों के बीच यदि इस जिले में ऐसी हत्याएं होने लगें जो जिले के नागरिक पटल को भयाक्रांत कर देते हों तो पुलिस के लिए ऐसे हालातों को संभालना और सुलझाना कितना अहम हो जाता है इसकी कल्पना की सीमा जिस दूरी पर तय होती है उससे राजनीतिक गलियारे भी अछूते नहीं रह जाते हैं.
नक्सल मोर्चे पर तैनात पुलिस हत्या की पहेलियां अब सुलझ रही
जिले में बीते दिनों 2 भाजपा नेताओं की हत्याएं हुई थीं, जांच पड़ताल और भारी उठापटक के बीच हत्या के आरोपियों और साजिशकर्ताओं को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया, जिनमें से एक हत्या के आरोपियों की गिरफ्तारी पर स्थानीय राजनीति के एक धड़े ने मौजूदा राज्य शासन को घेरने की पुरजोर कोशिश भी की थी .पुलिस प्रशासन को अपनी छवि बेदाग रखते हुए कैसे काम करना है ? ये सवाल ही उक्त मामले का जवाब भी साबित होता है.
शादी से इनकार के बाद हत्या की पहेली सुलझाकर पुलिस ने साबित किया है कि चालाकी किसी भी स्तर की हो कानून की नज़र से छुपाई नहीं जा सकती है. बीजापुर के कन्हाईगुड़ा में बीते महीने के 10 तारीख के दिन एक युवती सरस्वती कड़ियामी की हत्या कर उसके शव को आत्महत्या का रूप देने की शक्ल में फंदे से लटकाकर छोड़ दिया गया था. पुलिस ने मामला पंजीबद्ध किया, हर एक पहलू पर ध्यान देते हुए जांच पड़ताल के काम किए जाने लगे, टेक्निकल इशूज पर भी पूरा फोकस रखा गया लेकिन सरस्वती की हत्या दिन ब दिन एक अबूझ और जटिल पहेली बनती जा रही थी. न तो सरस्वती का अतीत ऐसा था कि उसकी हत्या किए जाने के कारण हत्यारों के पास होते, न ही उसके साथ बलात्कार जैसी कोई घटना कारित की गई थी. सरस्वती का शव जंगल के बीच नाले में औंधे मुंह पाया गया था, जंगली क्षेत्र, नेटवर्क प्रॉब्लम्स के साथ बड़ी चुनौती ये भी थी कि इस पूरे इलाके में कहीं कोई सीसीटीवी कैमरा तक नहीं!
मिल रही सफलताएं, की जा रही कार्रवाई
मामला सामाजिक मनःस्तल पर रहस्य और भय का माहौल बनाने लगा था, आखिरकार जिले के पुलिस प्रशासन के कप्तान जितेंद्र यादव के साथ दो अतिरिक्त पुलिस अधीक्षकों वैभव बंकर, चंद्रकांत गवर्ना के नेतृत्व में 2 इंस्पेक्टर्स, 8 सब इंस्पेक्टर्स और 15 काबिल जवानों की एक टीम बनाई गई और अब जांच के सभी बिंदुओं पर पुनर्विचार, मंथन किया जाने लगा. टीम ने सरस्वती के अतीत का वो अध्याय खोला जिसमें सरस्वती ने एक विवाह प्रस्ताव को निंदा करते हुए खारिज कर दिया था. विवाह का प्रस्ताव नंदू मांझी नामक युवक का था, प्रस्ताव के ठुकराए जाने से नंदू और उसके परिवार के दो सदस्य, नंदू का भाई और उसका पिता ख़ुद को अपमानित महसूस कर रहे थे. विवाह प्रस्ताव खारिज किए जाने के बावजूद नंदू के द्वारा सरस्वती से बात करने की पूरी कोशिश की जाती रही लेकिन सरस्वती को नंदू से न कोई लगाव था और न ही उसमें कोई रुचि थी. नंदू इस समय जिस मनोदशा से होकर गुज़र रहा था, मनोविज्ञान की भाषा में इसे नार्सिसिस्टिक पर्सनेलिटी डिसऑर्डर, बॉर्डरलाइन पर्सनेलिटी डिसऑर्डर जैसी श्रेणी में रखा जाता है जहां व्यक्ति अस्वीकृति मात्र को ही स्वयं का अपमान समझकर हीनभावना से ग्रसित तो होता ही है और कई मामलों में बेहद अक्रामक और हिंसक भी हो जाता है. नंदू ने अपने बड़े भाई मंगल के साथ मिलकर सरस्वती की हत्या की योजना बनाई. उन्हें यह जानकारी थी कि सरस्वती खेतों में काम करने के लिए अकेली ही चली जाती है. जंगल में सरस्वती की ताक में बैठे इन दोनों भाईयों ने सरस्वती को खेतों में पहुंचने के पहले ही जंगल में पकड़कर उसका गला रेत दिया और हत्या को आत्महत्या की शक्ल देने के इरादे से मृतिका के गले में फंदा डाला और नाले के किनारे लटका दिया था. इसके बाद दोनों हत्यारों ने अपने पिता सुखनाथ उर्फ फोटकू को पूरे घटनाक्रम की जानकारी भी दी लेकिन शायद पुत्र मोह में सुखनाथ ने अपने हत्यारे औलादों का जघन्य अपराध छुपा लिया था.
यह पूरा मामला पुलिस की टीम को तब विस्तार से ज्ञात हुआ जब आरोपियों ने पूछताछ के दौरान ख़ुद अपने गुनाह कबूल लिए थे और हत्या के दौरान इस्तेमाल किए गए चाकू और पहने कपड़ों को जहां छुपाकर रखा था उनका पता भी पुलिस को दे दिया. तीनों को गिरफ्तार कर न्यायालय में प्रस्तुत किया गया जहां से न्यायालय ने तीनों आरोपियों को जेल भेज दिया है. बहरहाल 40 दिनों तक चले इस पूरे प्रकरण से अप्रत्यक्ष भय और रहस्य को विराम लग गया है लेकिन विस्तार न्यूज़ अपने पाठकों से एक अपील भी करता है कि “जीवन सभी का उतना ही मूल्यवान है, जितना कि आपका है ! न किसी को दुःख देने जैसे कार्यों में इसे व्यर्थ करें और न ही स्वयं को दुःख देकर पछताएं”.