Cloning प्रक्रिया क्या होती है जिसकी मदद से छत्तीसगढ़ ने तैयार किया था वनभैंसा?
Cloning: कभी सोचा है ऐसे जीव जो अब विलुप्त हो चुके हैं वे हू-ब-हू फिर से अपने स्वरूप में लौट आएं तो कैसा लगेगा? पढ़ने में थोड़ा अजीब लग रहा पर आज वर्तमान में विज्ञान ने बेहतर काम किया है कि इन्हें विज्ञान कहें या चमत्कार ये थोड़ा मुश्किल विषय है. हम बात कर रहे है क्लोनिंग प्रक्रिया की.
विज्ञान ने कई क्षेत्रों में प्रगति की है जिनमें से एक क्लोनिंग है. क्या आपने प्रसिद्ध भेड़ डॉली के बारे में सुना है? अगर नहीं तो इस खबर के माध्यम से हम डॉली और क्लोनिंग दोनों के बारे में आपको विस्तार से बताएँगे.
डॉली अन्य भेड़ों के विपरीत, सामान्य तरीके से पैदा नहीं हुई थी. वह क्लोनिंग प्रक्रिया से बनी है. वह वास्तव में अपनी मां के समान दिखने वाली जुड़वा या कार्बन कॉपी है. ये सब संभव क्लोनिंग प्रक्रिया में सफलता के बाद ही हो पाया है.
ऐसा ही एक चमत्कार हमें छत्तीसगढ़ में भी देखने को मिलता है जिसमें विलुप्त हो रहे छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु वनभैसा का क्लोनिंग के माध्यम से डमी तैयार किया गया जो हू-ब-हू वनभैंसे की तरह दिखता है. दीपाशा नाम की इस वनभैंसे को तैयार करने में लगभग १ करोड़ की लागत आयी है.
लेकिन ये क्लोनिंग प्रक्रिया क्या है, कैसे होती है, इसके क्या लाभ हैं?
क्लोनिंग का तात्पर्य है अलैंगिक विधि से एक जीव से दूसरा जीव तैयार करना. इस विधि से उत्पादित क्लोन अपने जनक से शारीरिक और आनुवांशिक रूप में समरूप होते हैं. अर्थात् किसी जीव का प्रतिरूप तैयार करना ही क्लोनिंग है, लेकिन ये प्राकृतिक न होकर लैब में तैयार किये जाते हैं. क्लोनिंग का सफलतम प्रयोग सबसे पहले 1996 में डॉली भेड़ को बनाने के साथ हुआ था.
मानव शरीर में कोशिकाओं द्वारा किया गया काम उन्हें डीएनए से मिले आदेशों के तहत होता है. ये डीएनए मानव के शिशु में आधा पिता और आधा माता से आता है. एक बच्चा मां और पिता के डीएनए से पैदा हुई एकल कोशिका से बनता है. ये कोशिका आगे चलकर कई प्रतिरूपों में विभाजित होती है. प्रत्येक सेल या कोशिका मूल कोशिका की एक कॉपी होती है जिसमे अनुवांशिक कोड होता है.
दो तरह की होती है क्लोनिंग
क्लोनिंग मुख्य तौर पर दो तरीके से होती है- पहला आर्टिफिशियल एंब्रॉयो ट्विनिंग (artificial embryo twinning) और दूसरा सोमैटिक सेल न्यूक्लियर ट्रांसफर (somatic cell nuclear transfer). क्लोनिंग के द्वारा विशेष प्रकार की वनस्पतियों व जीवों का क्लोन बनाया जा सकता है, जिससे महत्त्वपूर्ण औषधियों का निर्माण तथा जैव-विविधता का संरक्षण किया जा सकता है।
इसकी सहायता से विशेष ऊतकों व अंगों का निर्माण कर असाध्य और आनुवांशिक बीमारियों को दूर किया जा सकता है. इस प्रक्रिया के एक बड़ा लाभ अंग प्रत्यारोपण में है जिसकी पूरे विश्व में भारी मांग है. पूरे विश्व में लाखों करोड़ों की संख्या में लोगों को अंग प्रत्यारोपण की जरूरत है फिर चाहे वो दुर्घटना के कारण हो या फिर किसी अंग के खराब हो जाने के कारण.
क्लोनिंग कैंसर के उपचार में भी कारगर हो सकता है. इसकी मदद से लीवर, किडनी आदि अंगों का निर्माण कर अंग प्रत्यारोपण को सुविधाजनक बनाया जा सकता है. क्लोनिंग प्रक्रिया की मदद से वैज्ञानिकों ने मानव शरीर में जरूरी अंगों का उत्पादन जानवरों के शरीर में किया और फिर उन्हें तैयार होने के बाद मानव शरीर में ट्रांसप्लांट किया.
हालांकि क्लोनिंग के कई फायदे हैं लेकिन इसके कई नुकसान भी हैं. मसलन क्लोनिंग के कारण मानव में व्याप्त विविधता के खत्म हो जाने का खतरा बना रहेगा. साथ ही या निवर्तमान में व्याप्त सामाजिक संरचना जैसे विवाह परिवार जन्म मृत्यु के कांसेप्ट को झकझोर देने का भी खतरा पैदा करता है.