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Kotumsar Caves: छत्तीसगढ़ में ‘पाताल लोक’ कही जाने वाली गुफा में अंधी मछली का क्या है रहस्य?

Kotumsar Caves: छत्तीसगढ़ की प्रत्येक गुफा में एक रहस्यमयी कहानी बसी है. इन रहस्यमयी कहानियों के माध्यम से हम आपको ले जा रहे हैं छत्तीसगढ़ का ‘पाताल लोक’ कही जाने वाली कुटुमसर गुफा में. ये गुफा बस्तर के कांगेर वैली नेशनल पार्क में स्थित अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य से भरी है. यह गुफा भारत की सबसे गहरी गुफाओं में से एक है और लगभग 125 फ़ीट गहरी और 4500 फ़ीट लम्बी है. इसके बारे में प्रचलित है कि यहां अंधी मछलियां रहती हैं.

देश की सबसे लंबी और गहरी गुफा है कुटुमसर

दरअसल कुटुमसर गुफा का इतिहास काफी प्राचीन है. इसका नाम कुटुमसर गांव के आधार पर रखा गया है. जबकि पहले इसका नाम गोपंसर था. 1900 में इस गुफा की खोज गांव के आदिवासियों ने की और 1950 के दशक में भूगोल के प्रोफेसर डॉ. शंकर तिवारी ने आदिवासियों की सहायता से इस गुफा को खोजा. इस गुफा के बारे में सबसे प्रचलित है यहां पाई जाने वाली अंधी मछलियां, जिसे देखने के लिए देश विदेश के पर्यटक दूर-दूर से आते हैं.

गुफा में एंट्री के बाद पाताल लोक जैसा नजारा

आपको बता दें कि गुफा में अंधेरा होने के कारण गाइड अपने साथ टॉर्च या सोलर पैनल ले कर चलते हैं. साथ ही गुफा के प्रवेश द्वार संकरा होने के कारण एक समय में एक व्यक्ति ही गुफा में प्रवेश कर सकता है या बाहर जा सकता है. इस गुफा के मुख्य हिस्से में पहुंचने के लिए पर्यटकों को 20 सीड़ियों को पार करना होता है. इस बीच गुफा में काफ़ी अंधेरा होता है जिसे देख कर डरावने पाताल लोक का दृश्य नज़र आता है.

गुफा की गहराई में अंधी मछली का क्या है रहस्य?

जैसे-जैसे पर्यटक गुफा के अंदर घुसते हैं, वैसे ही गुफा में पत्थरों से बनी कलाकृतियां मन मोह लेती हैं. इस गुफा में अनगिनत पत्थरों से बनी कलाकृतियां देखने को मिलती हैं. साथ ही यहां प्राकृतिक तौर पर स्तंभ भी देखने को मिलते हैं. इस गुफा में प्राकृतिक तौर पर बना शिवलिंग है, जहां पानी के स्रोत मिलते हैं, जिसमे रंग बिरंगी अंधी मछलियां नज़र आती हैं. यह अंधी मछलियां इस गुफा को एक अलग पहचान देती हैं. इन मछलियों के अंधे होने के पीछे वजह ये है कि गुफ़ा के अंदर सूरज की रौशनी नहीं पहुंचने के कारण इन मछलियों की आंखों में पतली पन्नी बन जाती है, जिससे इन्हें दिखाई देना बंद हो जाता है.

बरसात में भर जाता है गुफा में पानी

इसके अलावा प्रोफेसर डॉक्टर शंकर तिवारी ने एक और प्रजाति को इन्हीं गुफाओं में पाया था, जो देखने में तो मछली जैसी ही है पर इसकी 15 से 25 सेमी लम्बी मूंछ होती है. इसकी मदद से वह अपने लक्ष्य तक पहुंचती है. इन मछलियों का नाम प्रोफ़ेसर डॉक्टर शंकर के नाम पर ही रखा गया है. यहां 12 महीने लोग घूम नहीं सकते क्योंकि जून से अक्टूबर महीने तक गुफा बंद होती है क्योंकि बारिश के मौसम में यहां पानी भरा होता है.

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