जब Atal Bihari Vajpayee को उनसे पूछे बिना पीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया गया और फिर…
‘क्या हार में, क्या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संघर्ष पथ पर जो मिले
यह भी सही वह भी सही…’
ये पंक्तियां शिवमंगल सिंह सुमन ने लिखी हैं लेकिन जब इसे अटल बिहारी वाजपेयी ने पढ़ा तो मानों ये उनकी कविता हो गई……
आज 16 अगस्त है और भारत रत्न पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की पुण्यतिथि है. उनका नाम भारतीय राजनीति में बड़े सम्मान से लिया जाने वाला नाम है, उनको देश ने 3 बार प्रधानमंत्री के रूप में चुना और ढेर सारा प्यार दिया. जब भी अटल का नाम लिया जाता तो उनके साथ एक शब्द जोड़ा जाता है अजातशत्रु. अजातशत्रु वो होता है जिसका कोई शत्रु नहीं होता. इनके विपक्षी भी इनकी आलोचना करते थे तो बस यही कहते थे की अटल आदमी तो अच्छे हैं बस गलत पार्टी में है.
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म ग्वालियर के अध्यापक पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी के यहाँ 25 दिसम्बर 1924 को हुआ इनकी माता जी कृष्णा वाजपेयी थीं. अटल बचपन से ही बड़े तेज थे. पढ़ने-लिखने की कला का उपहार उन्हें घर पर ही मिल गया जिसके लिए वो जीवन भर जाने गए. बचपन बीत ही रहा था कि देश में अंग्रेजों से जंग जारी थी और वो जवानी ही क्या जो देश के काम न आए… ऐसे में अटल भी कूद पड़े आजादी की लड़ाई में और असहयोग आंदोलन मे अपना योगदान देने लगे.
इसके बाद जैसे अटल देश के और देश अटल का हो गया. अपनी पूरी ज़िंदगी अटल ने अपने देश के लिए लगा दिया. देश आजाद हुआ आजादी के खूब जश्न मनाए गए और देश अब परिपक्व होने लगा था. ऐसे में 1951 में अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति में आ गए और जनसंघ के साथ जुड़ गए. वे 1957 के चुनाव में पहली बार सांसद चुने गए और यहाँ से मुख्य राजनीति की शुरुआत हुई और ये शुरुआत तब तक खत्म नहीं हुई जब तक उन्होंने खुद नहीं चाहा.
मूर्धन्य कवि, प्रखर पत्रकार, ओजस्वी वक्ता और करिश्माई राजनीतिज्ञ भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी चार दशकों तक राजनीति में सक्रिय रहे/ इस दौरान वो लोकसभा में 9 बार सांसद और राज्य सभा के लिए 2 बार चुने गए, जो अपने आप में एक कीर्तिमान है. अटल जी एकमात्र ऐसे नेता हैं, जिन्हें चार अलग-अलग राज्य उत्तर प्रदेश, गुजरात, मध्य प्रदेश और दिल्ली से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचने का गौरव हासिल है.
उन्होंने मासिक पत्रिका राष्ट्रधर्म, हिंदी साप्ताहिक पाञ्चजन्य और दैनिक अखबारों जैसे स्वदेश और वीर अर्जुन का संपादन किया. उन्होंने कई किताबें भी लिखीं, जिनमें मेरी संसदीय यात्रा-चार भाग में, मेरी इक्यावन कविताएं, संकल्प काल, शक्ति से शांति प्रमुख हैं. अटल बिहारी वाजपेयी 1951 में जनसंघ के संस्थापक सदस्य, 1968-1973 में भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष और 1955-1977 में जनसंघ संसदीय पार्टी के नेता रहे. 1980 से 1986 तक उन्होंने भाजपा के अध्यक्ष के रूप में जिम्मेदारी संभाली. इसके साथ ही 1980-1984, 1986, 1993-1996 में भाजपा संसदीय दल के नेता रहे. 1994 में उन्हें भारत का सर्वश्रेष्ठ सांसद चुना गया. ग्यारहवीं लोक सभा के दौरान 1996-97 में वो नेता विपक्ष के पद पर रहे.
वाजपेयी को 1996, 1998 और 1999 में तीन बार प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला.
उनके प्रधानमंत्री रहने के दौरान 1998 में भारत ने परमाणु परीक्षण कर पूरी दुनिया को अपनी ताकत का अहसास कराया. इसी दौरान पाकिस्तान की बड़ी घुसपैठ को नाकाम करते हुए उन्होंने देश का मान बढ़ाया. वाजपेयी के कार्यकाल में राष्ट्रीय राजमार्ग और स्वर्णिम चतुर्भुज योजनाओं के जरिए बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे के विकास से राष्ट्र का पुनर्निर्माण शुरू हुआ.
आपको जानकार हैरानी होगी की अपने राजनीति की शुरुआत मे अटल वामपंथ के विचारों से प्रभावित थे और वामपंथी राजनीति मे सक्रिय हुए. फिर आगे चलकर संघ के संपर्क में आए और संघ के विचारों से ऐसे घुल-मिल गए की रग-रग में हिन्दुत्व लिए आगे बढ़ने लगे और एक काल जयी कविता की रचना की जिसकी पंक्ति ये लिखी:-
मैं शंकर का वह क्रोधानल कर सकता जगती क्षार-क्षार.
डमरू की वह प्रलय-ध्वनि हूं जिसमें नचता भीषण संहार.
रणचण्डी की अतृप्त प्यास, मैं दुर्गा का उन्मत्त हास.
मैं यम की प्रलयंकर पुकार, जलते मरघट का धुआंधार.
फिर अन्तरतम की ज्वाला से, जगती में आग लगा दूं मैं.
यदि धधक उठे जल, थल, अम्बर, जड़, चेतन तो कैसा विस्मय?
हिन्दू तन-मन, हिन्दू जीवन, रग-रग हिन्दू मेरा परिचय! रग-रग हिन्दू मेरा परिचय!
12 नवंबर 1995 को मुंबई में बीजेपी का महाधिवेशन चल रहा था जिसमे आडवाणी ने वाजपेयी से बिना पूछे ही उन्हे अगले चुनाव के बाद प्रधान मंत्री बनाए जाने की घोषणा कर दी, जबकि इस समय आडवाणी बीजेपी के सबसे बड़े नेता बन कर उभरे थे. मंच पर बैठे सभी लोग हैरान थे पर इनमे सबसे ज्यादा हैरान थे अटल बिहारी वाजपेयी. उन्होंने तुरंत ही आडवाणी से कहा कि ये आपने क्या कर दिया और मुझे पहले बताया भी नहीं. इसका जवाब देते हुए आडवाणी ने कहा, “मैं पार्टी का अध्यक्ष होने के नाते इतना अधिकार तो रखता हूं आप पर कि आपको पीएम पद का उम्मीदवार बना दूं.” इस पर दोनों मुस्कुराये और पार्टी के हर काम के लिए हमेशा तैयार रहने वाले अटल बिहारी वाजपेयी भी इसके लिए भी तैयार हो गए.
जब पैदल संसद जाते थे अटल
लालकृष्ण आडवाणी ने एक बार 1957 का किस्सा बताया था. तब वे पहली बार सांसद बने थे. भाजपा नेता जगदीश प्रसाद माथुर और अटलजी दोनों एक साथ चांदनी चौक में रहते थे. पैदल ही संसद जाते-आते थे. छह महीने बाद अटल बिहारी ने रिक्शे से चलने को कहा तो माथुर को आश्चर्य हुआ, कुछ देर बाद पता चला उस दिन अटल बिहारी को बतौर सांसद छह महीने की तनख्वाह एक साथ मिली थी. माथुर ने बताया था कि यही उनकी ऐश थी.
चुनाव हारकर फिल्म देखने चले गए थे
आडवाणी के मुताबिक, दिल्ली में नयाबांस का उपचुनाव था. हमने बड़ी मेहनत की, लेकिन हम हार गए. हम दोनों खिन्न थे, दुखी थे. अटल ने मुझसे कहा कि चलो, कहीं सिनेमा देख आएं. अजमेरी गेट में हमारा कार्यालय था और पास ही पहाड़गंज में थिएटर. नहीं मालूम था कि कौन-सी फिल्म लगी है. पहुंचकर देखा तो राज कपूर की फिल्म थी- ‘फिर सुबह होगी’. मैंने अटलजी से कहा, ‘आज हम हारे हैं, लेकिन आप देखिएगा सुबह जरूर होगी.’