Jigra: धर्मा प्रोडक्शन बैनर तले, 11 अक्टूबर 2024 को रिलीज हुई हिंदी फिल्म ‘जिगरा’ एक अनोखी कहानी को प्रस्तुत करती है, लेकिन इसके निष्पादन में कई समस्याएं हैं. निर्देशक वासन बाला ने इस फिल्म को एक सामाजिक-थ्रिलर के रूप में पेश करने का प्रयास किया है, जिसमें आलिया भट्ट मुख्य भूमिका में हैं. फिल्म ‘जिगरा’ ने अपनी रिलीज के बाद अभी तक बॉक्स ऑफिस पर बेहद ही साधारण कमाई की है. यह बॉलीवुड फिल्म नायिका की अपने भाई को बचाने की संघर्ष कहानी पर आधारित है. वासान बाला द्वारा निर्देशित इस एक्शन-थ्रिलर में आलिया भट्ट के साथ वेदांग रैना और मनोज पाहवा जैसे प्रमुख कलाकार भी शामिल हैं.
जिगरा’ की कहानी एक महिला के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपने भाई को जेल से छुड़ाने के लिए खुद जेल तोड़ने का निर्णय लेती है. इस कथा में सत्या (आलिया भट्ट) की मानसिक स्थिति और उसकी निर्णय क्षमता को केंद्रित किया गया है. फिल्म की शुरुआत एक ऐसे दृश्यों से होती है, जो दर्शकों को इस दिशा में सोचने के लिए मजबूर करते हैं कि क्या एक व्यक्ति अपने व्यक्तिगत रिश्तों के लिए कानून को दरकिनार कर सकता है.
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हालांकि, फिल्म का एक सीन से दूसरे सीन से जुड़ाव व घटनाओं का चित्रण कई बार बहुत बनावटी और बिना तर्क के लगते हैं, जो दर्शकों के दिमाग में आसानी से नहीं उतरती है. फिल्म की कहानी में तार्किकता का अभाव है. सत्या की हरकतें कई बार अतार्किक लगती हैं, जैसे कि वह अपने भाई को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है, भले ही इससे अन्य निर्दोष लोगों को खतरा हो. यह तत्व दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या ऐसे चरित्रों को आदर्श मान लेना चाहिए, जो केवल अपनी स्वार्थी इच्छाओं के लिए दूसरों को खतरे में डालते हैं.
हालाँकि, आलिया भट्ट ने सत्या के किरदार में जान डालने का प्रयास किया है. उनकी अभिनय क्षमता इस फिल्म में स्पष्ट है; वे हर भावना को प्रभावी ढंग से व्यक्त करती हैं. खासकर जेल के दृश्यों में, जहां वह अपनी बेचैनी और चिंता को दर्शाती हैं, उनके प्रदर्शन की गहराई दिखाई देती है.
विवेक गोम्बर, जो एक निर्दयी सुरक्षा अधिकारी हंसराज लांडा का किरदार निभाते हैं, उन्होंने ने भी अपने अभिनय से दर्शकों को प्रभावित किया है. उनके किरदार की कठोरता और निर्दयता वास्तव में फिल्म की थ्रिल को बढ़ाती है. इसके विपरीत, अन्य सहायक पात्रों का विकास कमजोर लगता है. कई बार ऐसा लगता है कि वे केवल कहानी को आगे बढ़ाने के लिए मौजूद हैं, जिससे कहानी में गहराई की कमी महसूस होती है.
वासन बाला का निर्देशन कुछ दृश्यों में प्रभावी नजर आता है, लेकिन समग्र रूप से यह फिल्म की कहानी को संभालने में असफल रहा है. कई सीन लम्बे और नीरस लगते हैं, जिससे दर्शकों का ध्यान भटकता है. बाला ने पुराने फिल्मों के संदर्भों और गानों का उपयोग किया है, लेकिन उनका प्रयोग सार्थक नहीं लगता. यह अति बुद्धिजीवी बनने का प्रयास कई बार फिल्म की गुणवत्ता को घटाता है.
हालाँकि फिल्म के संवाद कई जगहों पर दिलचस्प हैं, लेकिन कुछ क्षणों में उन्हें हल्का या नीरस भी माना जा सकता है. विशेषकर सत्या के और अन्य पात्रों के बीच की बातचीत, कभी-कभी वास्तविकता से दूर और संयोग पर आधारित लगती है.
फिल्म की सिनेमेटोग्राफी और लाइटिंग पर चर्चा करें तो लाल और सीपिया लाइटिंग का उपयोग फिल्म में तनाव और थ्रिल बढ़ाने में मदद करता है. दृश्य कौशल से भरे हुए हैं, लेकिन जब कहानी की गुणवत्ता कमजोर हो, तो तकनीकी उत्कृष्टता भी उसे उबार नहीं पाती. फिल्म का संगीत और बैकग्राउंड स्कोर भी उल्लेखनीय हैं, जो कई सीन में प्रभाव जोड़ते हैं. हालांकि, इन तत्वों का उपयोग भी कहानी की मजबूती में योगदान करने में सीमित रहा है.
कुल मिलाकर देखें तो ‘जिगरा’ एक ऐसा प्रोजेक्ट है, जो कई शानदार तत्वों से भरा है, लेकिन कई बार असंगतता के कारण दर्शकों को भ्रमित करता है. आलिया भट्ट का अभिनय उत्कृष्ट है, लेकिन फिल्म के बाकी हिस्से उनके प्रदर्शन के सामने फीके पड़ जाते हैं. यह फिल्म एक सामाजिक संदेश देने का प्रयास करती है, लेकिन उसकी प्रस्तुति में खामियां हैं.
यदि आप एक मनोरंजक और थ्रिलर फिल्म की तलाश में हैं, तो ‘जिगरा’ देखी जा सकती है. लेकिन इसके कथानक और उसके निष्पादन के कारण, इसे एक मास्टरपीस के रूप में नहीं देखा जा सकता. आखिरकार, ‘जिगरा’ एक ऐसी फिल्म है जिसमें अच्छी सोच, उत्कृष्ट अभिनय और तकनीकी कौशल है, लेकिन कहानी की जटिलता और तार्किकता की कमी इसे प्रभावित करती है. यह एक मनोरंजन का साधन हो सकती है, लेकिन अगर आप एक गहरी और सार्थक फिल्म की खोज में हैं, तो यह आपके लिए आदर्श विकल्प नहीं होगी. इसलिए, इसे देखने का निर्णय व्यक्तिगत प्राथमिकताओं पर निर्भर करेगा, लेकिन बहुत अधिक उम्मीदें न रखें. मनोरंजन के दृष्टिकोण से इस “वन टाइम वाच” फिल्म के रूप में देख जा सकता है.