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Bihar SIR: ‘बिहार के लोगों के साथ धोखा…’, ADR ने SC में चुनाव आयोग पर लगाए गंभीर आरोप

ADR on Election Commission

चुनाव आयोग पर एडीआर का गंभीर आरोप

Bihar SIR: बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) प्रक्रिया को लेकर विवाद गहराता जा रहा है. एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने सुप्रीम कोर्ट में चुनाव आयोग पर गंभीर आरोप लगाए हैं, इसे बिहार के लोगों के साथ ‘धोखाधड़ी’ करार दिया है. ADR का दावा है कि SIR के तहत लाखों मतदाताओं को बिना स्पष्ट प्रक्रिया के मतदाता सूची से नाम हटाने का खतरा है, जिससे उनके मताधिकार पर संकट मंडरा रहा है. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई 28 जुलाई को होनी है, जो बिहार के चुनावी परिदृश्य पर बड़ा प्रभाव डाल सकती है.

बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले शुरू की गई SIR प्रक्रिया ने व्यापक विवाद खड़ा कर दिया है. 24 जून को चुनाव आयोग ने इस अभियान की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य 7.89 करोड़ मतदाताओं की सूची को शुद्ध करना और फर्जी, मृत, या स्थानांतरित मतदाताओं के नाम हटाना था. इस प्रक्रिया में 2003 के बाद पंजीकृत सभी मतदाताओं को नागरिकता सहित कई दस्तावेज जमा करने को कहा गया, जिसे लेकर विपक्षी दलों ने भी सवाल उठाए हैं.

ADR के गंभीर आरोप

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुनाव आयोग की SIR प्रक्रिया को ‘मतदाताओं के साथ धोखाधड़ी’ करार दिया है. ADR का कहना है कि यह प्रक्रिया जल्दबाजी में शुरू की गई और पारदर्शिता की कमी के कारण लाखों मतदाताओं के मताधिकार से वंचित होने का खतरा है. उन्होंने चुनाव आयोग पर संविधान और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसलों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया, विशेष रूप से आधार और राशन कार्ड को स्वीकार्य दस्तावेजों की सूची से बाहर करने को ‘बेतुका’ बताया.

प्रक्रिया में अनियमितताएं

ADR ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया कि SIR प्रक्रिया में कई अनियमितताएं देखने को मिली हैं. बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLO) द्वारा घर-घर जाकर फॉर्म देने की गाइडलाइंस का पालन नहीं हुआ और कुछ मामलों में मृत व्यक्तियों के नाम पर भी फॉर्म ऑनलाइन जमा किए गए. इसके अलावा, दस्तावेजों की जांच के लिए कोई स्पष्ट प्रक्रिया न होने से निर्वाचक पंजीकरण अधिकारियों (ERO) को मनमाने ढंग से फैसले लेने की छूट मिल गई है, जिससे मतदाता सूची से बड़े पैमाने पर नाम हटाए जाने की आशंका है.

विपक्ष का विरोध और सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

कांग्रेस, RJD और अन्य विपक्षी दलों ने SIR को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है, इसे मतदाताओं के ‘अधिकारों का हनन’ बताया है. RJD ने विशेष रूप से सीमांचल के मुस्लिम, बंगाली मूल और शेरशहाबादी समुदायों के बीच भेदभाव का आरोप लगाया, जहां बिना सूचना के नाम हटाए जा रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट में 28 जुलाई को इस मामले की अगली सुनवाई होनी है, जिसमें जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ मामले की सुनवाई करेगी. कोर्ट ने पहले SIR पर रोक लगाने से इनकार किया था, लेकिन आयोग से जवाब मांगा था.

चुनाव आयोग का पक्ष

चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में SIR का बचाव करते हुए कहा कि यह प्रक्रिया मतदाता सूची की शुद्धता और जनता का विश्वास बहाल करने के लिए जरूरी है. आयोग का दावा है कि 90% से अधिक मतदाताओं ने फॉर्म जमा कर दिए हैं और प्रक्रिया में कोई भेदभाव नहीं किया जा रहा. आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है, इसलिए इसे 11 स्वीकार्य दस्तावेजों की सूची में शामिल नहीं किया गया. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने आयोग से पूछा था कि इस प्रक्रिया को इतनी देरी से क्यों शुरू किया गया.

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ADR और विपक्षी दलों का मानना है कि SIR प्रक्रिया बिहार विधानसभा चुनाव 2025 पर बड़ा प्रभाव डाल सकती है. अगर लाखों मतदाताओं के नाम सूची से हटाए गए, तो यह न केवल चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठाएगा, बल्कि लोकतंत्र की विश्वसनीयता को भी प्रभावित कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट का आगामी फैसला इस विवाद को निर्णायक दिशा दे सकता है.

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