Allahabad High Court: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अंतरधार्मिक विवाह के संबंध में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि बिना विधिवत धर्म परिवर्तन के अलग-अलग धर्मों के व्यक्तियों के बीच होने वाला विवाह कानूनन वैध नहीं माना जाएगा. यह फैसला आर्य समाज मंदिरों द्वारा जारी किए जा रहे विवाह प्रमाणपत्रों की वैधता और नाबालिगों के विवाह के मामलों को लेकर भी गंभीर सवाल उठाता है.
यह फैसला महाराजगंज के निचलौल थाना क्षेत्र से संबंधित एक आपराधिक मामले में आया, जिसमें याचिकाकर्ता सोनू उर्फ सहनूर के खिलाफ एक नाबालिग लड़की के अपहरण, बलात्कार और पॉक्सो एक्ट के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई थी.
याचिकाकर्ता की दलील: याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसने 14 फरवरी 2020 को प्रयागराज के एक आर्य समाज मंदिर में पीड़िता से विवाह किया था और अब वह बालिग है, इसलिए उसके खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द की जाए.
सरकारी वकील का विरोध: सरकारी अधिवक्ता ने इस दलील का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता और पीड़िता अलग-अलग धर्मों से हैं, और बिना विधिवत धर्म परिवर्तन के यह विवाह अवैध है. इसके अलावा, पीड़िता के हाईस्कूल प्रमाणपत्र के अनुसार वह घटना के समय नाबालिग थी.
कोर्ट का फैसला
विवाह की वैधता: जस्टिस प्रशांत कुमार की एकल पीठ ने कहा कि बिना धर्म परिवर्तन के अंतरधार्मिक विवाह कानूनन अमान्य है. कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि उत्तर प्रदेश विवाह पंजीकरण नियम, 2017 के तहत यह विवाह पंजीकृत नहीं था, और केवल आर्य समाज मंदिर का प्रमाणपत्र पर्याप्त नहीं है.
नाबालिग का मुद्दा: कोर्ट ने पाया कि पीड़िता घटना के समय नाबालिग थी, जिसके कारण विवाह और भी अवैध माना गया.
याचिका खारिज: याचिकाकर्ता की आपराधिक कार्यवाही रद्द करने की मांग को कोर्ट ने खारिज कर दिया.
आर्य समाज मंदिरों पर सवाल
फर्जी प्रमाणपत्रों की जांच: कोर्ट ने आर्य समाज मंदिरों द्वारा फर्जी विवाह प्रमाणपत्र जारी करने पर गंभीर चिंता जताई. कई मामलों में इन संस्थाओं द्वारा नाबालिगों या अलग-अलग धर्मों के जोड़ों को बिना उचित प्रक्रिया के प्रमाणपत्र दिए जा रहे हैं.
जांच के आदेश: कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के गृह सचिव को डीसीपी या आईपीएस स्तर के अधिकारी से आर्य समाज सोसाइटीज की जांच कराने का निर्देश दिया. इस जांच की अनुपालन रिपोर्ट 29 अगस्त 2025 तक व्यक्तिगत हलफनामे के साथ प्रस्तुत करने को कहा गया है.
विशेष विवाह अधिनियम का उल्लेख
वैकल्पिक रास्ता: हालांकि, यह ध्यान देने योग्य है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पहले (31 मई 2024) एक अन्य मामले में कहा था कि विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत अंतरधार्मिक जोड़े बिना धर्म बदले शादी कर सकते हैं. इस अधिनियम के तहत विवाह पंजीकरण करवाकर जोड़े वैध रूप से विवाह बंधन में बंध सकते हैं.
वर्तमान फैसले का दायरा: इस बार का फैसला विशेष रूप से उन मामलों पर केंद्रित है जहां आर्य समाज मंदिरों जैसे संस्थानों में बिना उचित प्रक्रिया के विवाह कराए जाते हैं, खासकर जब एक पक्ष नाबालिग हो.
यह भी पढ़ें: जब ‘भाईजान’ के लिए 27 साल पहले कोर्ट रूम पहुंचे थे जगदीप धनखड़, कानूनी दांव पेंच से दिला दी थी जमानत
सामाजिक और कानूनी प्रभाव
लव जिहाद और धर्मांतरण पर बहस: यह फैसला उत्तर प्रदेश में चल रही लव जिहाद और धर्मांतरण की घटनाओं की बहस को और तेज कर सकता है. कोर्ट ने इस तरह की शादियों को कानून का उल्लंघन माना है, जिससे आर्य समाज जैसे संस्थानों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे हैं.
सख्त कार्रवाई की मांग: कोर्ट ने ऐसी गतिविधियों को रोकने के लिए तत्काल और सख्त कार्रवाई की आवश्यकता पर बल दिया.
