Surekha Yadav: ट्रेन की सफर आप कभी न कभी किए ही होंगे. सफर के दौरान आपके मन में ट्रेन चलाने या लोको पायलट बनने का ख्याल जरूर आया होगा. ऐसे ही एक महिला लोको पायलट की कहानी बताने जा रहे हैं, जो बचपन में कभी अपने पिता के साथ खेत में काम करती थी. बाद में वह एशिया की पहली महिला लोको पायलट बनी. 1989 में पहली महिला लोको पायलट बनीं सुरेखा यादव अब 30 सितंबर को रिटायर होने वाली हैं. इनके इस मुकाम के बाद उन्हें महिला सशक्तिकरण का प्रतीक माना गया.
रेलवे में सेवा देने का लिया फैसला
सुरेखा यादव 1989 में एशिया की पहली महिला लोको पायलट बनीं थी. अब वो 30 सितंबर को रिटायर होने वाली हैं. उन्होंने अपना इंजीनियरिंग डिप्लोमा पूरा कर रेलवे सेवा में शामिल होने का फैसला लिया. इसी दौरान असिस्टेंट लोको पायलट के पद के लिए भर्ती निकली. इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी, इसलिए उनको पता था कि असिस्टेंट लोको पायलट के लिए अप्लाई कर सकती हैं.
काम करने के लिए आत्मविश्वास की जरूरत
सुरेखा यादव ने अपने शुरुआती प्रशिक्षण कल्याण लोको पायलट प्रशिक्षण केंद्र से पूरी की थी. ट्रेनिंग पूरी करने के बाद, वह 1989 में सेंट्रल रेलवे में असिस्टेंट लोको पायलट के पद पर कार्यरत हुईं. उनका कहना है कि यहां एक असिस्टेंट लोको पायलट को काम करते हुए देखना और सीखना होता है. साथ ही एक ऐसी ट्रेन चलाने के लिए आत्मविश्वास की जरूरत होती है जो रोजाना सैकड़ों लोगों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाती है.
वंदे भारत चलाने वाली पहली महिला लोको पायलट
सुरेखा यादव ने राजधानी एक्सप्रेस से लेकर पूरी तरह से स्वदेशी वंदे भारत एक्सप्रेस तक कई ट्रेनें चलाई हैं. साल 2023 में उन्होंने सोलापुर से मुंबई तक पहली वंदे भारत एक्सप्रेस छह घंटे तक चलाई थीं. जो उनके लिए बहुत गर्व की बात है.
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पति का मिला सहयोग
उनकी इस सफलता के पीछे उनके पति का सहयोग रहा है. जब सुरेखा यादव सेवा पर थीं तब उनके दो बच्चे थे. सुरेखा अपनी ड्यूटी चली जाती थीं तो उन बच्चों का देखभाल उनके पति करते थे. पति के साथ-साथ उनके माता पिता का भी खूब सहयोग मिला.
30 सितंबर को होंगी रिटायर
36 साल भारतीय रेलवे में सेवा देने के बाद सुरेखा यादव 30 सितंबर 2025 को रिटायर हो रही हैं. रिटायर के बाद अब अपना पूरा समय परिवार के साथ बिताएंगी.
