Bihar Politics: बिहार, जहां गंगा का बहाव और सियासत का ताप एक साथ उफान मारता है, वहां 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले माहौल में गजब का रंग चढ़ रहा है. इस बार सियासी रणभूमि में नेताओं के साथ-साथ बागेश्वर धाम के बाबा धीरेंद्र शास्त्री और कई बड़े संतों ने डेरा डाल दिया है. ये कोई आम धार्मिक सभा नहीं, बल्कि बिहार की सियासत को हिलाने वाला तूफानी मेला है. बागेश्वर बाबा का सनातन का नारा, श्रीश्री रविशंकर की शांति की बातें और RSS के मोहन भागवत का संगठन, सब मिलकर बिहार की सियासत में नया मसाला डाल रहे हैं. बिहार की सियासत में ये बाबा-बैरागी क्या गुल खिला रहे हैं? आइये विस्तार से जानते हैं…
इस बार सियासी मैदान में नेताओं के साथ-साथ संतों और बाबाओं की एंट्री ने सबके कान खड़े कर दिए हैं. खासतौर पर बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने बिहार की धरती पर डेरा डाल लिया है. लेकिन ये डेरा सिर्फ कथा-कीर्तन का नहीं, बल्कि सियासत को नई दिशा देने का भी माना जा रहा है.
पटना से गोपालगंज तक
बिहार की राजधानी पटना में स्थित ऐतिहासिक गांधी मैदान इन दिनों सूबे की सियासत का गढ़ बन चुका है. यहां ताबड़तोड़ रैलियों के बाद अब गांधी मैदान में सनातन महाकुंभ लगा. इसी ‘सनातन महाकुंभ’ में बाबा बागेश्वर भी पहुंचे. बाबा ने मंच से कहा, “सनातन खतरे में नहीं है, लेकिन इसे बार-बार चुनौतियां मिल रही हैं. बिहार ने हमें माता सीता दी, ज्ञान दिया, नीति दी.” ये शब्द सिर्फ भक्ति तक सीमित नहीं रहे, बल्कि सियासी गलियारों में भी गूंजने लगे. इससे पहले बागेश्वर बाबा ने राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के गृह क्षेत्र गोपालगंज में भी डेरा डाला था.
बाबा ने साफ कहा, “हम किसी सियासी एजेंडे के लिए नहीं आए, हम तो हिंदुत्व का जनजागरण करने आए हैं.” लेकिन सियासत की बिसात पर हर कदम का मतलब निकाला जाता है. बीजेपी बिहार में हिंदुत्व के सहारे अपनी जमीन मजबूत करना चाहती है और बाबा के इस दौरे को एक सुनहरा मौका मान रही है. दूसरी तरफ, विपक्षी दल जैसे RJD और कांग्रेस इसे सियासी चाल के तौर पर देख रहे हैं. तो सवाल ये है कि क्या बागेश्वर बाबा का ये दौरा बिहार की सियासत में नया समीकरण बनाएगा?
संतों का जमावड़ा
बागेश्वर बाबा अकेले नहीं हैं. पिछले कुछ महीनों में बिहार में संतों का मेला सजा है. दरअसल, मार्च में आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर भी बिहार पहुंचे थे और उन्होंने BJP के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी से मुलाकात की. उस वक्त रविशंकर ने बिहार की तारीफ करते हुए कहा, “बिहार अब पिछड़ा नहीं, बल्कि विकास की राह पर है. यहां ऊर्जावान नेता हैं.”
वहीं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत भी 4 महीने में 2 बार बिहार पहुंच चुके हैं. RSS का हिंदुत्व का एजेंडा और BJP की सियासी रणनीति हमेशा से एक-दूसरे के पूरक रहे हैं. ऐसे में भागवत का दौरा भी सियासी मायने रखता है.
हिंदुत्व का नया एजेंडा
BJP इस बार बिहार में हिंदुत्व को एक बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश में है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हाल ही में गुजरात में एक कार्यक्रम में कहा, “अयोध्या में राम मंदिर बन गया, अब सीतामढ़ी में माता सीता का भव्य मंदिर बनाएंगे.” इसके बाद सीतामढ़ी के पुनौरा धाम में मां जानकी के भव्य मंदिर निर्माण के लिए नीतीश सरकार ने 883 करोड़ की विशाल योजना को मंजूरी दी है. इस फैसले ने न सिर्फ आस्था से जुड़े लोगों में उत्साह पैदा किया है, बल्कि चुनावी मौसम में इसे एक बड़े राजनीतिक दांव के रूप में भी देखा जा रहा है.
वहीं, बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरण हमेशा से हावी रहे हैं. लेकिन इस बार BJP हिंदुत्व के सहारे इन समीकरणों को तोड़ने की कोशिश कर रही है. बागेश्वर बाबा, श्रीश्री रविशंकर और RSS प्रमुख के दौरे इस रणनीति का हिस्सा माने जा रहे हैं.
राबड़ी देवी का ताजिया और सियासी संतुलन
जब BJP हिंदुत्व का कार्ड खेल रही है, तब विपक्ष भी पीछे नहीं है. RJD की नेता और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को मुहर्रम के मौके पर ताजिया के आगे झुकते देखा गया. ये एक सियासी संदेश था कि RJD अल्पसंख्यक समुदाय के साथ खड़ा है. बिहार में मुस्लिम और यादव वोटर RJD का मजबूत आधार रहे हैं, और राबड़ी का ये कदम उस आधार को और मजबूत करने की कोशिश थी.
लेकिन सवाल ये है कि क्या बिहार की जनता, जो अब तक जाति और क्षेत्रीय समीकरणों के आधार पर वोट देती आई है, इस बार धर्म के मुद्दे पर वोट देगी?
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बिहार का सियासी इतिहास और नया मोड़
बिहार की सियासत में धार्मिक मुद्दे पहले भी उठते रहे हैं, लेकिन जातिगत समीकरण हमेशा हावी रहे. 1980 और 1990 के दशक में लालू यादव ने मंडल आयोग के सहारे OBC और मुस्लिम वोटरों को एकजुट किया. वहीं, BJP ने राम मंदिर आंदोलन के जरिए हिंदुत्व को बिहार में लाने की कोशिश की, लेकिन उसे अकेले सत्ता कभी नहीं मिली.
2025 के चुनाव में BJP की रणनीति साफ है. हिंदुत्व के सहारे ऊपरी जातियों और कुछ OBC समुदायों को एकजुट करना. बागेश्वर बाबा जैसे लोकप्रिय संतों का साथ इस रणनीति को और धार दे सकता है. लेकिन बिहार की जनता, जो विकास, रोजगार और शिक्षा जैसे मुद्दों पर भी नजर रखती है, क्या इस धार्मिक लहर में बहेगी?
राजनीतिक पंडितों की मानें तो बिहार में धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश नई नहीं है, लेकिन इस बार इसका असर ज्यादा हो सकता है. एक सर्वे के मुताबिक, बिहार के 60% से ज्यादा युवा वोटर विकास और रोजगार को प्राथमिकता देते हैं, लेकिन धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान भी उनके लिए मायने रखती है. बागेश्वर बाबा जैसे संतों की लोकप्रियता खासकर BJP के लिए फायदेमंद हो सकती है. लेकिन अगर विपक्ष रोजगार, शिक्षा और सामाजिक न्याय के मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाए, तो ये ध्रुवीकरण का खेल उल्टा भी पड़ सकता है.
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तारीखों का ऐलान अभी बाकी है, लेकिन सियासी मंच सज चुका है. बागेश्वर बाबा, श्रीश्री रविशंकर और मोहन भागवत जैसे नामों की मौजूदगी ने बिहार की सियासत को एक नया रंग दे दिया है. BJP जहां हिंदुत्व और सीता मंदिर जैसे मुद्दों के सहारे वोटरों को लुभाने की कोशिश में है, वहीं RJD और कांग्रेस जैसे दल अपने पारंपरिक वोट बैंक को बचाने और नए मुद्दे उठाने की जुगत में हैं.
