Bihar Politics: बिहार की सियासत में कुछ भी असंभव नहीं. यहां विचारधारा, वफादारी और पार्टियां रातोंरात बदल जाती हैं. हालांकि, जनता फिर भी अपने नेताओं को सिर-माथे बिठाती है. इस बार बिहार के बेलहर विधानसभा सीट पर एक अनोखा मुकाबला देखने को मिल रहा है, जहां पिता और बेटा अलग-अलग दलों से ताल ठोक रहे हैं. पिता जेडीयू के दिग्गज सांसद हैं, तो बेटा तेजस्वी यादव की RJD के टिकट पर चुनावी रण में कूद पड़ा है.
लंदन से लौटा चाणक्य प्रकाश रंजन
बांका के जेडीयू सांसद गिरधारी यादव के बेटे चाणक्य प्रकाश रंजन इस बार बेलहर से RJD के उम्मीदवार हैं. चाणक्य कोई साधारण चेहरा नहीं हैं. लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस (LSE) से पब्लिक पॉलिसी में मास्टर्स की डिग्री, दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामजस कॉलेज से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएशन और इंडियन सोसाइटी ऑफ इंटरनेशनल लॉ से इंटरनेशनल ट्रेड एंड बिजनेस लॉ में पोस्टग्रेजुएट डिप्लोमा…चाणक्य की पढ़ाई-लिखाई किसी को भी प्रभावित कर सकती है. इतना ही नहीं, वो थिएटर में भी सक्रिय रहे हैं, जिससे उनकी जनता से जुड़ने की कला और मजबूत हुई है. 2023 में विदेश से लौटने के बाद उन्होंने सियासत में कदम रखा और अब वो बेलहर की जनता का दिल जीतने को तैयार हैं.
सियासत का पुराना योद्धा पिता गिरधारी यादव
दूसरी तरफ, चाणक्य के पिता गिरधारी यादव बिहार की सियासत का जाना-पहचाना नाम हैं. कभी युवा कांग्रेस से अपने करियर की शुरुआत करने वाले गिरधारी बाद में वी.पी. सिंह के साथ जुड़े और फिर जनता दल में सक्रिय हुए. आज वो नीतीश कुमार की जेडीयू के मजबूत स्तंभ हैं. हाल ही में उन्होंने मतदाता सूची पुनरीक्षण (SIR) को लेकर चुनाव आयोग पर निशाना साधा था, इसे “तुगलकी फरमान” बताकर जनता की परेशानियों का मुद्दा उठाया. उनकी सियासी समझ और अनुभव उन्हें एक दमदार नेता बनाता है.
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बेलहर का रण
बेलहर विधानसभा सीट पर इस बार मुकाबला बेहद दिलचस्प होने वाला है. जेडीयू के मौजूदा विधायक मनोज यादव फिर से मैदान में हैं. 2020 के चुनाव में उन्होंने RJD के रामदेव यादव को करीब 2,473 वोटों से हराया था. इस बार उनका मुकाबला चाणक्य प्रकाश रंजन से है. एक तरफ मनोज यादव का अनुभव और स्थानीय पकड़ है, तो दूसरी तरफ चाणक्य की नई सोच, युवा जोश और पढ़ाई-लिखाई का दम है. यह देखना रोमांचक होगा कि बेलहर की जनता किसे चुनेगी.
बिहार की सियासत में परिवार का नया रंग
बिहार की राजनीति में परिवारवाद कोई नई बात नहीं, लेकिन पिता-पुत्र का अलग-अलग दलों से मैदान में उतरना जरूर चर्चा का विषय है. गिरधारी यादव सत्ताधारी जेडीयू के साथ नीतीश कुमार के खेमे में हैं, जबकि चाणक्य ने विपक्षी RJD का दामन थामा है. यह सियासी टकराव न केवल बेलहर बल्कि पूरे बिहार में सुर्खियां बटोर रहा है. सवाल यह है कि क्या चाणक्य अपने पिता की तरह सियासत में अपनी छाप छोड़ पाएंगे या फिर अनुभवी नेताओं का दबदबा कायम रहेगा?
चुनावी नतीजे बताएंगे असली कहानी
बेलहर की जनता 14 नवंबर को अपना फैसला सुनाएगी. यह मुकाबला सिर्फ दो उम्मीदवारों के बीच नहीं, बल्कि दो पीढ़ियों, दो विचारधाराओं और दो अलग-अलग सियासी दलों के बीच है. चाणक्य की नई सोच और पढ़ाई-लिखाई क्या अनुभवी नेताओं को टक्कर दे पाएगी या फिर जेडीयू की मजबूत पकड़ बेलहर में फिर से जीत का परचम लहराएगी? जवाब के लिए बस कुछ दिन और इंतजार करना होगा.
क्या है बिहार की सियासत का मिजाज?
बिहार की राजनीति हमेशा से अनिश्चितताओं और आश्चर्यों से भरी रही है. यहां नेताओं का दल बदलना, परिवार के सदस्यों का अलग-अलग पार्टियों में जाना और जनता का अपने नेताओं पर अटूट भरोसा, ये सब बिहार की सियासत का हिस्सा है. इस बार चाणक्य और गिरधारी की कहानी ने बिहार की सियासत में एक नया अध्याय जोड़ा है.
