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“मार्च 1990, वो काला दिन…”, पटना के चौक-चौराहों पर अचानक नज़र आने लगे लालू यादव के पोस्टर, समझिए इस सियासी तंज के मायने

पटना में लगे लालू यादव के पोस्टर

पटना में लगे लालू यादव के पोस्टर

Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव में कुछ महीने शेष है लेकिन अभी से ही सियासत के गलियारों में हलचल तेज हो गई है. अब यह हलचल पटना की सड़कों तक भी पहुंच गई है. हां, आपने सही सुना! पटना के चौक-चौराहों पर अचानक से लालू यादव के पोस्टर नजर आने लगे हैं, और इन पोस्टरों में उन पर तीखा हमला किया गया है. तो क्या यह पोस्टर सिर्फ एक चुनावी तीर है या फिर बिहार के सियासी माहौल में इस बार कुछ और होने जा रहा है? चलिए, इसे विस्तार से समझते हैं.

पोस्टर में क्या खास है?

इन पोस्टरों का बैकग्राउंड काला है, और इसमें लालू यादव की एक पुरानी तस्वीर है, जिसमें वे होली के दौरान ढोल बजाते हुए नजर आ रहे हैं. यह वही तस्वीर है जब लालू यादव अपने खास अंदाज में होली मनाते थे. लेकिन, इन पोस्टरों में इस तस्वीर के साथ जो शब्द लिखे गए हैं, वह एक बड़े सियासी बयान का हिस्सा हैं. लिखा गया है, “भूलेगा नहीं बिहार… मार्च का वो काला दिन जब बिहार की जनता का ढोल बजाने को लिया था शपथ..”

यह लाइन सीधे तौर पर 10 मार्च 1990 के दिन की याद दिलाती है, जब लालू यादव ने पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी. लेकिन इस लाइन में ‘काला दिन’ का जिक्र करके विपक्ष ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि लालू का शासन बिहार के लिए एक काले दौर जैसा था.

चारा घोटाला और सियासी हमला

दूसरे पोस्टर में तो एक और बड़ा राजनीतिक तंज है. यह पोस्टर 10 मार्च के दिन को चारा घोटाले से जोड़ते हुए दिखाया गया है, जो लालू यादव के शासनकाल का सबसे बड़ा विवाद रहा है. इस पोस्टर में लालू यादव की होली खेलते हुए ढोल बजाने की तस्वीर को फिर से इस्तेमाल किया गया है, लेकिन इसे चारा घोटाले से जोड़ा गया है. यानी यह पूरी तरह से एक सियासी हमला है, जो लालू यादव के खिलाफ किया जा रहा है.

बिहार विधानसभा चुनाव का सियासी माहौल

अब इस सबका सियासी मायने क्या है? दरअसल, बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और सियासी दल एक-दूसरे पर तीखे हमले कर रहे हैं. सत्ता में बैठे नेता जहां लालू यादव के शासनकाल की विफलताओं को लेकर हमलावर हैं. नीतीश एंड टीम के लिए बिहार की जनता को यह सब याद दिलाने का एक अच्छा मौका है. तो यह पोस्टर एक तरह से उस हमले का हिस्सा हैं जो अगले चुनावी समर में होने वाला है.

पोस्टर का उद्देश्य क्या है?

ये पोस्टर सीधे तौर पर लालू यादव की छवि पर हमला करने के लिए तैयार किए गए हैं. ‘काला दिन’ और ‘ढोल बजाने को शपथ’ जैसे शब्दों का प्रयोग करके विपक्ष उनके शासनकाल को नकारात्मक रूप में पेश करने की कोशिश कर रहा है. यही नहीं, चारा घोटाले को लेकर बार-बार जिक्र किया जा रहा है, जिससे चुनावी माहौल में उनके खिलाफ नफरत और संदेह की लहर पैदा की जा सके.

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क्या ये सत्ता पक्ष की रणनीति है?

हालांकि, अभी तक यह साफ नहीं हुआ कि ये पोस्टर किसने और क्यों लगाए, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि इनका उद्देश्य सियासी है. क्या यह सत्ता पक्ष की ओर से एक रणनीति है ताकि बिहार की जनता के बीच लालू यादव के शासनकाल को नकारात्मक रूप में पेश किया जा सके? अगर ऐसा है, तो यह एक चालाक तरीका हो सकता है, क्योंकि चुनावी मौसम में हर कदम बहुत मायने रखता है.

क्या बिहार की जनता इस सियासी हमले का जवाब देगी?

अब सवाल उठता है – क्या बिहार की जनता इस सियासी हमले का जवाब देगी? क्या यह पोस्टर चुनावी माहौल में लालू यादव की छवि को चोट पहुंचा पाएंगे? या फिर बिहार के लोग इस तरह के राजनीतिक हमलों से बचते हुए अपनी पसंदीदा पार्टी का समर्थन करेंगे?

जो भी हो, यह तो तय है कि बिहार की राजनीति में अब हर कदम पर ‘तीर’ चलाए जाएंगे. लालू यादव के खिलाफ लगाए गए इन पोस्टरों ने यह साफ कर दिया है कि बिहार विधानसभा चुनाव में सियासी गलियारों में गहमागहमी बढ़ने वाली है. पटना की सड़कों पर बिछे इन पोस्टरों के जरिए यह संदेश दिया जा रहा है कि आने वाला चुनाव सिर्फ विकास के मुद्दे पर नहीं, बल्कि पुरानी राजनीतिक कहानियों और विवादों पर भी केंद्रित रहेगा. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 – सियासी तीर, तंज और राजनीतिक झगड़े अब ज्यादा दिलचस्प होंगे!

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