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बाबा बागेश्वर से लेकर श्री श्री रविशंकर तक…बिहार की सियासत में हिंदुत्व की त्रिमूर्ति का तगड़ा इफेक्ट, टेंशन में महागठबंधन!

Bageshwar Baba

बागेश्वर बाबा और श्री श्री रविशंकर

Bihar Politics: बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक है, और राज्य की राजनीति में एक नई हलचल शुरू हो गई है. इस हलचल के केंद्र में हैं तीन प्रमुख हिंदुत्व के प्रतीक,बाबा बागेश्वर आचार्य धीरेंद्र शास्त्री, RSS प्रमुख मोहन भागवत और श्री श्री पंडित रविशंकर. इन तीनों का बिहार दौरा न सिर्फ धार्मिक कार्यक्रमों के रूप में देखा जा रहा है, बल्कि इसके राजनीतिक मायने भी निकलकर सामने आ रहे हैं. यही कारण है कि बिहार में सियासत गरमा गई है, और विपक्षी महागठबंधन के नेता इस पूरी स्थिति को लेकर चिंतित दिखाई दे रहे हैं.

‘हिंदुत्व’ के जरिए धार्मिक ध्रुवीकरण

बिहार में हिंदुत्व की तिकड़ी का एक साथ आगमन महज संयोग नहीं है. इन प्रमुख धार्मिक नेताओं के दौरे के बीच एक गहरी राजनीतिक मंशा छिपी हुई है. लालू प्रसाद यादव के गढ़ गोपालगंज में बागेश्वर बाबा के पहुंचने से एक स्पष्ट संकेत ये है कि हिंदुत्व के मुद्दे को बिहार के समाज में ज़बरदस्त तरीके से प्रमोट किया जा रहा है. बाबा बागेश्वर का दावा है कि ‘भारत को हिंदू राष्ट्र बनाएंगे’ और ‘हिंदुओं को एक करेंगे’.

इतना ही नहीं, बाबा बागेश्वर की सभा में जुट रही लाखों की भीड़ को देखकर यह भी अंदाजा लगाया जा रहा है कि अगर वे बिहार के समाज को एकजुट करने में सफल हो जाते हैं तो इसका सीधा फायदा बीजेपी को मिलेगा, जो अपने हिंदुत्व के एजेंडे को मजबूती से लागू करने में जुटी है.

महमूद गजनवी का मुद्दा

दूसरी ओर, श्री श्री रविशंकर का बिहार दौरा भी राजनीति के साथ जुड़ा हुआ है. पटना के गांधी मैदान में आयोजित उनके दो दिवसीय सत्संग में ध्यान, योग और जीवन जीने की कला पर विशेष प्रवचन हो रहे हैं. लेकिन इसके साथ ही एक महत्वपूर्ण बात सामने आई है, शिवलिंग का दर्शन, जिसे महमूद गजनवी ने 1026 में तोड़ा था. रविशंकर ने अपने प्रवचनों में राजनीतिक ध्रुवीकरण की संभावनाओं को हवा दी है. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि गजनवी का नाम जोड़कर रविशंकर बिहार की राजनीति में एक नया मोड़ देने का प्रयास कर रहे हैं, जिससे बीजेपी और एनडीए को फायदा हो सकता है.

RSS प्रमुख मोहन भागवत का अभियान

RSS प्रमुख मोहन भागवत का पांच दिन का बिहार दौरा भी सियासी रूप से अहम है. मुजफ्फरपुर से अपनी यात्रा की शुरुआत करते हुए भागवत ने RSS के कार्यक्रमों में हिस्सा लिया और शाखा का आयोजन किया. यह कार्यक्रम न सिर्फ एक संगठनात्मक गतिविधि के रूप में था, बल्कि इसके जरिए संघ ने अपनी ताकत और हिंदुत्व के विचारों को फिर से परिभाषित करने का प्रयास किया. भागवत की इस यात्रा को भाजपा की रणनीति के तहत देखा जा रहा है, जो अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए धर्म और समाज को एकजुट करने की दिशा में कदम उठा रही है.

महागठबंधन की बेचैनी

बिहार में हिंदुत्व की इन तीन प्रमुख शख्सियतों के दौरे से महागठबंधन की बेचैनी बढ़ गई है. राजद नेता तेजस्वी यादव इस मुद्दे को तूल देने से बचने की कोशिश कर रहे हैं और इसे संविधान की सीमाओं के भीतर रखने की बात कर रहे हैं. हालांकि, पार्टी के कुछ नेताओं ने खुले तौर पर बाबा बागेश्वर की गिरफ्तारी की मांग की है, और बीजेपी की इस रणनीति को विरोधी साजिश के तौर पर पेश किया है. विपक्ष को यह डर है कि हिंदुत्व के मुद्दे को लेकर समाज में ध्रुवीकरण होगा, जिससे जातीय राजनीति पर प्रभाव पड़ेगा और एनडीए को इसका फायदा होगा.

जेडीयू का बदलता रुख

दिलचस्प बात यह है कि बिहार के सत्ताधारी जेडीयू का रुख भी इस मुद्दे पर बदलता हुआ दिखाई दे रहा है. पहले, नीतीश कुमार पर हिंदू त्योहारों की छुट्टियां कम करने का आरोप था. लेकिन अब जेडीयू के नेता कहते हैं कि हिंदू एकजुट हैं, और पार्टी के भीतर भी एक विचारधारा को लेकर बदलाव देखा जा रहा है.

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सियासत की नई दिशा

बिहार की सियासत में इस समय जो खेल चल रहा है, वह केवल धार्मिक ध्रुवीकरण तक सीमित नहीं है. समय की अहमियत को समझते हुए हिंदुत्व की त्रिमूर्ति का यह एक साथ आगमन महज एक धार्मिक इवेंट नहीं, बल्कि चुनावी समीकरण को प्रभावित करने की योजना है. बिहार में जाति आधारित राजनीति हमेशा हावी रही है, और अगर हिंदू समाज इस प्रकार एकजुट होता है, तो इसका सीधा असर महागठबंधन पर पड़ सकता है, जो अपनी जातीय राजनीति के आधार पर चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी कर रहा है.

सियासी विश्लेषकों का मानना है कि यह एक रणनीतिक प्रयोग है, और इसका परिणाम 2025 के विधानसभा चुनाव में साफ दिखाई दे सकता है. हिंदुत्व के प्रतीकों का यह जुटान बिहार की राजनीति को नई दिशा दे सकता है, जहां धर्म, समाज और राजनीति का मिश्रण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है.

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