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क्या राज्यपाल की मर्जी पर चलेगी जनता की चुनी हुई सरकार? CJI गवई ने पूछा बड़ा सवाल

BR Gavai

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई

Governor Powers: सोचिए, आपने और हमने मिलकर एक सरकार चुनी है. वो सरकार कोई कानून बनाती है ताकि आपकी और हमारी जिंदगी बेहतर हो सके. लेकिन फिर एक व्यक्ति आता है, जो उस कानून को न तो मंज़ूरी देता है, न ही वापस भेजता है… बस उसे अपने पास रोककर बैठ जाता है. हमेशा के लिए! क्या ऐसा होना सही है? यही वो बड़ा सवाल है जो इन दिनों देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में गूंज रहा है. मामला जुड़ा है राज्यपाल की शक्तियों से.

सुलगता हुआ सवाल

सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई ने एक अहम सुनवाई के दौरान सीधा सवाल पूछा, “क्या राज्यपाल को किसी विधेयक को हमेशा के लिए रोककर रखने की इजाजत दी जा सकती है? अगर ऐसा होता है, तो इसका मतलब ये नहीं होगा कि जनता की चुनी हुई सरकार हमेशा एक राज्यपाल की व्यक्तिगत पसंद या इच्छा पर निर्भर रहेगी?”

यह सवाल इसलिए पूछा गया क्योंकि कई बार ऐसा देखा गया है कि राज्यों से पास होकर आए बिल महीनों या सालों तक राज्यपाल के पास अटके रहते हैं. इससे सरकार का काम रुक जाता है और जनता के लिए बनाए गए कानून ठंडे बस्ते में चले जाते हैं.

राज्यपाल के ‘अधिकार’ पर बहस

इस बहस में केंद्र सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपना पक्ष रखा. उनका कहना है कि राज्यपाल सिर्फ एक ‘डाकिया’ नहीं होते, जिनका काम सिर्फ बिल पर दस्तखत करना हो. संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत उन्हें कुछ खास अधिकार दिए गए हैं. मेहता के मुताबिक, राज्यपाल के पास चार रास्ते होते हैं.

मंज़ूरी देना: बिल पर मुहर लगाना.

मंज़ूरी रोकना: इसे एक तरह से अस्वीकार करना.

वापस भेजना: सदन को बिल पर फिर से विचार करने के लिए कहना.

राष्ट्रपति के लिए रोकना: अगर बिल केंद्र सरकार के किसी कानून से टकराता हो.

लेकिन सुप्रीम कोर्ट इस बात को लेकर चिंतित है कि अगर राज्यपाल बिल को वापस नहीं भेजते और बस उसे रोककर रख लेते हैं, तो यह जनता के जनादेश का अपमान होगा. कोर्ट का कहना है कि अगर ऐसा होता है तो फिर राजनीतिक गतिरोध को सुलझाने का कोई मौका ही नहीं मिलेगा.

लोकतंत्र की परिपक्वता का सवाल

सुनवाई के दौरान यह बात भी सामने आई कि कुछ मामलों में राज्यपालों ने अपनी शक्तियों का इस्तेमाल ऐसे किया है कि उससे कानूनी लड़ाई बढ़ गई. लेकिन मेहता ने इस पर कहा कि कुछ व्यक्तिगत मामलों की वजह से पूरे संवैधानिक ढांचे को गलत नहीं ठहराना चाहिए. उन्होंने कहा कि भारतीय लोकतंत्र काफी परिपक्व है और केंद्र व राज्यों के बीच संतुलन अच्छे से काम करता है.

यह मामला अभी भी कोर्ट में चल रहा है और इसका फैसला भारत के संघीय ढांचे (Federal Structure) के लिए बहुत महत्वपूर्ण होगा. यह तय करेगा कि देश में चुनी हुई सरकारों की ताकत कितनी है और राज्यपाल जैसे संवैधानिक पदों की सीमाएं क्या हैं.

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