Maharashtra Local Election: महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर ‘खेला’ हो गया है. सत्ता की कुर्सी पर बैठे अजित पवार गुट ने अचानक पलटी मारी और विपक्षी खेमे के उद्धव ठाकरे की शिवसेना से हाथ मिला लिया. जी हां, रायगढ़ जिले में होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों के लिए राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (अजित गुट) और शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) ने आधिकारिक तौर पर गठबंधन का ऐलान कर दिया है. यह फैसला शनिवार को कर्जत के रेडिसन ब्लू होटल में हुई एक बैठक में लिया गया, जिसमें दोनों दलों के बड़े-बड़े नेता शामिल थे.
क्यों बदला अजित का खेल?
अजित पवार महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री हैं और महायुति गठबंधन का अहम हिस्सा हैं. फिर भी उन्होंने रायगढ़ में उद्धव गुट से दोस्ती क्यों की? जवाब है, स्थानीय सियासत का दबाव. रायगढ़ में पिछले कुछ महीनों से अजित गुट और शिंदे गुट के बीच जबरदस्त तनातनी चल रही है. पालकमंत्री पद को लेकर सांसद सुनील तटकरे और शिंदे गुट के विधायक भरत गोगावले के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चरम पर था.
कर्जत इलाके में भी दोनों गुटों के कार्यकर्ता एक-दूसरे के खिलाफ खुलकर बोल रहे थे. अजित को लगा कि अगर शिंदे गुट के साथ ही लड़ाई जारी रही, तो निकाय चुनाव में उनका वोट बंट जाएगा. दूसरी तरफ, उद्धव गुट भी कमजोर स्थिति में था. पिछले चुनाव में उद्धव गुट के नितिन सावंत तीसरे नंबर पर रहे थे, जबकि अजित गुट के सुधाकर घारे निर्दलीय लड़कर हार गए थे. दोनों को समझ आ गया कि अलग-अलग लड़ेंगे तो हारेंगे, एक साथ लड़ेंगे तो जीतेंगे.
बैठक में क्या-क्या हुआ?
शनिवार की शाम रेडिसन ब्लू होटल में करीब तीन घंटे चली इस बैठक में माहौल बेहद गर्मजोशी भरा था. अजित गुट की तरफ से जिलाध्यक्ष सुधाकर घारे, भरत भगत, अशोक भोपतराव और दीपक श्रीखंडे मौजूद थे. उद्धव गुट से उपजिलाध्यक्ष नितिन सावंत, भिवसेन बडेकर और प्रदीप ठाकरे ने हिस्सा लिया. बैठक में तय हुआ कि जिला परिषद की सभी सीटों पर एकजुट होकर उम्मीदवार उतारे जाएंगे. पंचायत समिति और नगर परिषद में भी सीट बंटवारा फॉर्मूला तैयार किया जाएगा. दोनों गुट मिलकर प्रचार करेंगे, एक-दूसरे के खिलाफ कोई बयानबाजी नहीं होगी.
सुधाकर घारे ने कहा, “पिछली हार ने हमें सबक दिया है. अब हम एक होकर शिंदे गुट को सबक सिखाएंगे.” वहीं नितिन सावंत बोले, “रायगढ़ की जनता बदलाव चाहती है. यह गठबंधन उसी की आवाज है.”
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शिंदे गुट के लिए खतरे की घंटी!
रायगढ़ शिवसेना का गढ़ माना जाता है. शिंदे गुट यहां खुद को असली शिवसेना बताता रहा है. लेकिन अब अजित का उद्धव से हाथ मिलाना शिंदे के लिए बड़ा झटका है. क्योंकि वोट बंटेगा, अजित के कार्यकर्ता अब उद्धव के पक्ष में प्रचार करेंगे. इतना ही नहीं, शिंदे गुट को अब अकेले ही सारी सीटें संभालनी होंगी. दूसरी ओर बीजेपी भी टेंशन में आएगी, क्योंकि महायुति में दरार की खबरें जगजाहिर होगी.
स्थानीय नेता भरत गोगावले ने इसे ‘अस्थायी समझौता’ बताया, लेकिन अंदरखाने शिंदे गुट में खलबली मची है. अब उनकी नई रणनीति क्या होगी? क्या वे बीजेपी से और समर्थन मांगेंगे या कांग्रेस को साथ लाएंगे? यह देखना रोचक होगा.
