Maharashtra: महाराष्ट्र में देवेंद्र फडणवीस की सरकार ने हाल ही में कक्षा 1 से 5 तक मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने का फैसला लिया था. मगर अब फडणवीस सरकार ने अपने फैसले से यू-टर्न ले लिया है. प्रदेश में विपक्ष द्वारा हुए कड़े विरोध के बाद सरकार ने अपने इस निर्णय को रद्द कर दिया है.
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने 29 जून को घोषणा की कि हिंदी की अनिवार्यता से संबंधित दो सरकारी आदेश जो 16 अप्रैल और 17 जून को आए थे उसे रद्द किए जा रहे हैं. राज्य सरकार का गे फैसले के पीछे कई कारण हैं, जिनमें मराठी अस्मिता का सवाल, विपक्षी दलों का विरोध और आगामी स्थानीय निकाय चुनाव शामिल हैं.
उद्धव ठाकरे यांची भूमिका दुटप्पी, सत्तेत असताना समर्थन विरोधात गेले की दुसरेच.. त्रिभाषा सुत्रासह रिफायनरीबाबतही हीच भूमिका..
— Devendra Fadnavis (@Dev_Fadnavis) June 29, 2025
(पत्रकार परिषद | मुंबई | 29-6-2025) #Maharashtra #Mumbai #Refinery pic.twitter.com/WxDzrwO3i5
हिंदी अनिवार्य करने पर बढ़ा विवाद
महाराष्ट्र सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत त्रिभाषा फॉर्मूले को लागू करने की योजना बनाई थी. इसके तहत 16 अप्रैल को एक आदेश जारी किया गया, जिसमें मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य करने की बात कही गई थी. इसके बाद 17 जून को संशोधित आदेश में हिंदी को ‘सामान्य रूप से’ तीसरी भाषा बनाया गया, लेकिन स्कूलों को यह विकल्प दिया गया कि यदि प्रति कक्षा 20 छात्र किसी अन्य भारतीय भाषा को चुनते हैं, तो हिंदी के बजाय वह भाषा पढ़ाई जा सकती है.
हालांकि, इस फैसले ने मराठी भाषा समर्थकों, शिक्षाविदों और विपक्षी दलों में असंतोष पैदा किया. इसे ‘मराठी अस्मिता’ पर हमले के रूप में देखा गया और हिंदी को ‘थोपने’ का आरोप लगाया गया.
विपक्ष का तीव्र विरोध
विपक्षी दलों, खासकर शिवसेना के उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (MNS) के राज ठाकरे ने इस फैसले का पुरजोर विरोध किया है. उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने इसे मराठी भाषा और संस्कृति के खिलाफ माना और 5 जुलाई 2025 को मुंबई में संयुक्त विरोध मार्च की घोषणा की. शरद पवार की NCP (SP) ने भी इस आंदोलन का समर्थन किया.
मराठी भाषा के समर्थकों का तर्क था कि प्राथमिक स्तर पर हिंदी को अनिवार्य करना मराठी के विकास को प्रभावित कर सकता है और छोटे बच्चों पर अतिरिक्त बोझ डालेगा. मराठी भाषा अभ्यास केंद्र के दीपक पवार ने इसे ‘गुपचुप तरीके से हिंदी थोपना’ करार दिया. कवि हेमंत दिवाते ने तो विरोध में अपना राज्य पुरस्कार तक लौटा दिया.
सामाजिक और राजनीतिक दबाव
हिंदी अनिवार्यता के खिलाफ न केवल राजनीतिक दल, बल्कि शिक्षाविद, अभिभावक और मराठी संगठन भी एकजुट हो गए. सोशल मीडिया पर भी सरकार की आलोचना तेज हुई. कई लोगों का मानना था कि प्राथमिक स्तर पर तीन भाषाएं पढ़ाना बच्चों के लिए अनावश्यक बोझ है, खासकर जब मराठी और अंग्रेजी की शिक्षा की गुणवत्ता पहले से ही चिंता का विषय है.
महाराष्ट्र भाषा समिति के अध्यक्ष लक्ष्मीकांत देशमुख ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा कि प्राथमिक स्तर पर केवल मातृभाषा पर ध्यान देना चाहिए. उन्होंने हिंदी अनिवार्यता को मराठी और सांस्कृतिक पहचान के लिए नुकसानदायक बताया.
आगामी निकाय चुनाव और राजनीतिक रणनीति
महाराष्ट्र में जल्द ही स्थानीय निकाय चुनाव, विशेष रूप से मुंबई महानगरपालिका (BMC) चुनाव होने वाले हैं. हिंदी अनिवार्यता का मुद्दा विपक्षी दलों के लिए एक बड़ा हथियार बन गया था. शिवसेना (UBT) और MNS ने इसे मराठी अस्मिता से जोड़कर जनता के बीच आक्रोश पैदा किया. सरकार को डर था कि यह मुद्दा आंदोलन में बदल सकता है और इसका असर चुनावों पर पड़ सकता है. इसीलिए, सरकार ने विधानसभा के मानसून सत्र से ठीक पहले यह फैसला वापस ले लिया है.
वहीं राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे 5 जुलाई को मुंबई में बड़ा आंदोलन करने का ऐलान किया है. पहले दोनों नेता अलग-अलग आंदोलन करने वका ऐलान किया था. लेकिन बाद में संजय राउत ने बताया कि दोनों नेता साथ आंदोलन करेंगे. इस आंदोलन से सरकार पर दबाव बढ़ सकता था. हालांकि, अब संजय राउत ने 5 जुलाई के प्रस्तावित मार्च को रद्द करने की घोषणा की है.
सरकार का यू-टर्न और नई समिति का गठन
विरोध के चलते, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने 29 जून 2025 को कैबिनेट बैठक के बाद घोषणा की कि हिंदी अनिवार्यता से संबंधित दोनों सरकारी आदेश रद्द किए जा रहे हैं. उन्होंने शिक्षाविद डॉ. नरेंद्र जाधव की अध्यक्षता में एक नई समिति गठित करने की बात कही, जो त्रिभाषा फॉर्मूले के कार्यान्वयन पर विचार करेगी. इस समिति में भाषाविदों, शिक्षाविदों, और अन्य हितधारकों को शामिल किया जाएगा, जो सभी पक्षों की राय लेकर अपनी सिफारिशें देगी.
फडणवीस ने यह भी स्पष्ट किया कि मराठी ही एकमात्र अनिवार्य भाषा रहेगी, और हिंदी को कभी भी अनिवार्य नहीं किया गया था. उन्होंने कहा कि यह विवाद अनावश्यक था और उनकी सरकार मराठी-केंद्रित नीतियों पर ध्यान देगी.
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विपक्ष की प्रतिक्रिया
फैसला रद्द होने के बाद, उद्धव ठाकरे ने इसे ‘मराठी मानुष की जीत’ बताया और कहा कि सरकार को मराठी एकता के सामने झुकना पड़ा. उन्होंने BJP पर ‘झूठ की फैक्ट्री’ होने का आरोप लगाया. राज ठाकरे ने भी इसे मराठी लोगों की नाराजगी का परिणाम बताया और कहा कि सरकार का हिंदी थोपने का प्रयास विफल हुआ.
