Punjab: बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक, ठगी के ऊपर कई फ़िल्में बानी हैं. जो सुपर हिट भी हुई हैं. ऐसे ठगों की कहानी बच्चों के स्कूल की किताबों में भी पढ़ने को मिलती है. लेकिन सोचिए जरा कि कोई असल जीवन में ठगी का कितना बड़ा तीसमारखां बन सकता है कि वो आम लोगों की जमीन नहीं बल्कि सेना की जमीन ही अपना बता कर बेच दे?
जी हां, एक ऐसा ही मामला सामने आया है. जिसमें एक मां-बेटे की जोड़ी ने भारतीय वायु सेना की हवाई पट्टी ही अपनी जमीन बता कर बेच डाली. इस घटना का पूरा खुलासा 28 साल बाद अब जाकर हुआ है. पंजाब के फिरोजपुर जिले में मां-बेटे की जोड़ी ने भारतीय वायुसेना की एक ऐतिहासिक हवाई पट्टी को फर्जी दस्तावेजों के जरिए बेच डाला था.
यह घटना 1997 की है, लेकिन 28 साल बाद पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के हस्तक्षेप और विजिलेंस जांच के बाद इस ठगी का पर्दाफाश हुआ है. इस हवाई पट्टी का उपयोग द्वितीय विश्व युद्ध और 1962, 1965, 1971 के भारत-पाक युद्धों में हुआ था.
जानें कैसे हुआ मामले का खुलासा
यह सनसनीखेज मामला तब सामने आया जब एक सेवानिवृत्त कनूंगो, निशान सिंह ने पंजाब विजिलेंस ब्यूरो को पत्र लिखकर इस ठगी की जांच की मांग की. उनकी शिकायत के आधार पर जांच शुरू हुई, जिसने उषा अंसल और उनके बेटे नवीन चंद अंसल के खिलाफ फर्जीवाड़े के गंभीर आरोपों को उजागर किया. जांच में पता चला कि मां-बेटे ने राजस्व अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर फत्तूवाला गांव में स्थित 118 कनाल 16 मरला की इस महत्वपूर्ण जमीन को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बेच दिया.
हवाई पट्टी का ऐतिहासिक महत्व
फत्तूवाला गांव में स्थित यह हवाई पट्टी राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पाकिस्तान सीमा के करीब है. इस जमीन को 1945 में ब्रिटिश शासन ने रॉयल एयर फोर्स के लिए अधिग्रहित किया था और बाद में यह भारतीय वायुसेना के अधीन रही. इसका उपयोग द्वितीय विश्व युद्ध के साथ-साथ 1962 के भारत-चीन युद्ध और 1965, 1971 के भारत-पाक युद्धों में लैंडिंग ग्राउंड के रूप में किया गया था.
कैसा रहा फर्जीवाड़े का तरीका
1997 में उषा अंसल और नवीन चंद ने राजस्व अधिकारियों की मिलीभगत से फर्जी दस्तावेज तैयार किए. इस सौदे में मुख्तियार सिंह, जागीर सिंह, सुरजीत कौर, मनजीत कौर, दारा सिंह, रमेश कांत और राकेश कांत जैसे व्यक्तियों के नाम शामिल थे. चौंकाने वाली बात यह है कि सेना ने इस जमीन को कभी भी किसी को हस्तांतरित नहीं किया था. फिर भी, फर्जी दस्तावेजों के आधार पर सेल डीड को अंतिम रूप दिया गया.
हाईकोर्ट का हस्तक्षेप
इस मामले में जांच में देरी होने पर निशान सिंह ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. 21 दिसंबर, 2023 को हाईकोर्ट ने फिरोजपुर के डिप्टी कमिश्नर को छह महीने के भीतर जांच पूरी करने का आदेश दिया. हाईकोर्ट ने राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरे को देखते हुए डिप्टी कमिश्नर को फटकार भी लगाई और चार सप्ताह में जांच पूरी करने का निर्देश दिया. इसके बाद पुलिस ने उषा अंसल और नवीन चंद के खिलाफ प्राथमिकी (FIR) दर्ज की.
पंजाब पुलिस और विजिलेंस ब्यूरो इस मामले की गहन जांच कर रहे हैं. डिप्टी कमिश्नर की एक तीन पन्नों की रिपोर्ट में कहा गया है कि 1958-59 के राजस्व रिकॉर्ड के मुताबिक, यह जमीन आज भी भारतीय सेना के कब्जे में है. हाईकोर्ट के आदेश पर विजिलेंस जांच पूरी होने के बाद अब इस मामले में FIR दर्ज कर केस में आईपीसी की धारा 419 (छलपूर्वक स्वांग धारण करना), 420 (धोखाधड़ी व बेइमानी से संपत्ति दिलवाना), 465, 467, 471 (जालसाजी व जाली दस्तावेजों का प्रयोग)और 120बी (आपराधिक षड्यंत्र) लगाई गई हैं. अब इस केस की जांच डीएसपी करन शर्मा के नेतृत्व में की जा रही है. उनका कहना है कि अभी यह पता लगाया जा रहा है कि और कौन-कौन इस षड्यंत्र में शामिल थे.
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बता दें कि, हाईकोर्ट की फटकार और विस्तृत जांच के बाद आखिरकार यह जमीन औपचारिक रूप से फिर रक्षा मंत्रालय को सौंप दी गई. पंजाब प्रशासन ने भी अपनी रिपोर्ट में माना कि यह जमीन अभी भी रिकॉर्ड में वैसी ही है जैसी 1958-59 में थी और उस पर सेना का ही कब्जा है.
