Bihar Politics: बिहार में 2025 के विधानसभा चुनाव की सरगर्मी बढ़ते ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक के बाद एक बड़े-बड़े एलानों की झड़ी लगा दी है. मुफ्त बिजली, नौकरियां, वेतन वृद्धि और विकास योजनाओं का ढोल पीटते हुए नीतीश जनता के दिलों में फिर से जगह बनाने की कोशिश में जुट गए हैं. ये सारी घोषणाएं न सिर्फ बिहार की जनता को लुभाने की कोशिश हैं, बल्कि तेजस्वी यादव और विपक्ष की बढ़ती लोकप्रियता को पछाड़ने का भी एक मास्टरप्लान दिखता है.
रसोइया, प्रहरी और प्रशिक्षकों की बल्ले-बल्ले
1 अगस्त 2025 को नीतीश ने एक और तुरुप का पत्ता फेंका. शिक्षा विभाग में काम करने वाले रसोइया, रात्रि प्रहरी और शारीरिक शिक्षा व स्वास्थ्य प्रशिक्षकों का वेतन दोगुना करने का ऐलान कर दिया. यानी स्कूलों में मिड-डे मील बनाने वाली रसोइया बहनों और रात में स्कूल की रखवाली करने वाले प्रहरियों की जेब अब पहले से ज्यादा भारी होगी. शारीरिक शिक्षा प्रशिक्षक भी इस तोहफे से खुश हैं. ये कदम उन हजारों कर्मचारियों के लिए बड़ा सहारा है, जो कम पैसे में भी दिन-रात मेहनत करते हैं. नीतीश का ये दांव खासकर ग्रामीण इलाकों में उनकी “जनता के हितैषी” वाली छवि को चमकाने वाला है.
मुफ्त बिजली का तोहफा
नीतीश ने जुलाई 2025 में एक बड़ा दांव खेला था. उन्होंने हर घर को 125 यूनिट तक बिजली मुफ्त देने का ऐलान किया था. जी हां, 1 अगस्त 2025 से ये योजना लागू हो चुकी है, और जुलाई के बिल से ही इसका फायदा शुरू हो गया. बिहार के करीब 1.67 करोड़ परिवारों की जेब को ये राहत देने वाला है. गर्मी में पंखा-कूलर चलाने से लेकर रात में बल्ब जलाने तक, अब बिजली बिल का टेंशन कम होगा. गांव की चाची-ताई से लेकर शहर के मध्यम वर्ग तक, हर कोई इस “फ्री बिजली” के गीत गा रहा है. लेकिन सवाल ये है कि क्या ये मुफ्तखोरी का वादा बिहार के खजाने को हल्का तो नहीं कर देगा?
आशा-ममता और पत्रकारों को भी सौगात
नीतीश ने हाल ही में आशा और ममता कार्यकर्ताओं के लिए भी बड़ा दिल दिखाया. आशा कार्यकर्ताओं का मासिक प्रोत्साहन 1,000 रुपये से बढ़ाकर 3,000 रुपये कर दिया गया. ये वो महिलाएं हैं, जो गांव-गांव जाकर स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाती हैं. ममता कार्यकर्ताओं को भी ऐसा ही लाभ मिला है. इसके अलावा, पत्रकारों के लिए भी नीतीश ने खजाना खोल दिया. बिहार पत्रकार सम्मान पेंशन योजना के तहत पत्रकारों की पेंशन 6,000 से बढ़ाकर 15,000 रुपये और मृत पत्रकारों की पत्नियों की पेंशन 3,000 से 10,000 रुपये कर दी गई. ये कदम छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों के पत्रकारों के लिए बड़ी राहत है.
युवाओं को भी लुभाने की कोशिश
बिहार में बेरोजगारी का मुद्दा हमेशा से गर्म रहा है. तेजस्वी यादव ने “10 लाख नौकरी” का नारा देकर युवाओं को लुभाया, तो नीतीश भी पीछे कैसे रहते? उन्होंने अगले पांच साल में 10 लाख सरकारी नौकरियां और रोजगार के अवसर देने का वादा किया. हाल ही में 6,837 कनीय अभियंताओं और अनुदेशकों को नियुक्ति पत्र बांटे गए. नीतीश की प्रगति यात्रा भी फिर से शुरू हो रही है, जिसमें वे गांव-गांव जाकर अपनी सरकार के काम गिनाएंगे. ये सब युवाओं और ग्रामीण मतदाताओं को अपनी ओर खींचने की कोशिश है. लेकिन तेजस्वी का “नौकरी दो” वाला नारा नीतीश के लिए कितना भारी पड़ता है, ये देखना बाकी है.
किसानों को बिजली
नीतीश की निगाहें किसानों पर भी हैं . किसानों को कृषि बिजली कनेक्शन देने का लक्ष्य रखा गया है. जल-जीवन-हरियाली योजना के तहत सौर ऊर्जा को बढ़ावा देना और खेती को आसान बनाना नीतीश का बड़ा वादा है. ये कदम ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के साथ-साथ किसान वोटरों को लुभाने की कोशिश है.
तेजस्वी को टक्कर देने की तैयारी
नीतीश का हर कदम सियासी चालबाजी से भरा हुआ है. तेजस्वी यादव की बढ़ती लोकप्रियता और उनके सर्वे में “पहली पसंद” बनने की खबर ने नीतीश को बैकफुट पर ला दिया है. तेजस्वी का “2025 नीतीश के लिए अलविदा वाला साल” वाला बयान नीतीश के लिए चुनौती है. इन एलानों के जरिए नीतीश न सिर्फ तेजस्वी के वादों को काटने की कोशिश कर रहे हैं, बल्कि अपनी “सुशासन बाबू” वाली छवि को भी चमका रहे हैं. लेकिन विपक्ष इन एलानों को “चुनावी जुमला” बता रहा है. साथ ही, बीजेपी के कुछ नेताओं के बयान और नीतीश के नेतृत्व पर सवाल भी उनके लिए सिरदर्द बने हुए हैं.
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क्या है असली चुनौती?
नीतीश के इन एलानों का असर तभी होगा, जब ये जमीनी स्तर पर लागू होंगे. मुफ्त बिजली और वेतन वृद्धि का खजाना कहां से आएगा, ये बड़ा सवाल है. अगर इन योजनाओं में देरी हुई या खामियां सामने आईं, तो जनता का भरोसा डगमगा सकता है. साथ ही, नीतीश की बार-बार गठबंधन बदलने की आदत और उनकी “स्वास्थ्य” पर विपक्ष के तंज उनकी विश्वसनीयता को कमजोर कर रहे हैं. तेजस्वी की युवा-केंद्रित रणनीति और आक्रामक प्रचार नीतीश के लिए बड़ी चुनौती है.
क्या कहती है जनता?
गांव की गलियों से लेकर शहर की चाय की दुकानों तक, नीतीश के इन एलानों की चर्चा जोरों पर है. कोई कह रहा है, “नीतीश जी ने तो कमाल कर दिया, बिजली फ्री और नौकरी भी!” तो कोई तंज कस रहा है, “चुनाव नजदीक है, इसलिए वादों की बारिश हो रही है.” सच्चाई ये है कि नीतीश का ये सियासी दांव बिहार की जनता को लुभाने में कितना कामयाब होगा, ये तो वोटिंग मशीन ही बताएगी.
नीतीश का दांव लगेगा या उल्टा पड़ेगा?
नीतीश कुमार ने बिहार चुनाव से पहले अपने सियासी पत्ते खोल दिए हैं. मुफ्त बिजली, वेतन वृद्धि, नौकरियां और किसानों के लिए योजनाएं, ये सब उनकी पुरानी “सुशासन” वाली छवि को नया रंग देने की कोशिश हैं. लेकिन विपक्ष का हमला, और एनडीए में आंतरिक तनाव उनके लिए राह आसान नहीं होने देंगे. बिहार की जनता अब ये देख रही है कि नीतीश का ये “एलानों का मेला” कितना रंग लाता है. क्या नीतीश फिर से बाजी मारेंगे, या तेजस्वी की नई पौध इसे उलट देगी?
