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क्‍या बिल की डेडलाइन तय कर सकता है सुप्रीम कोर्ट? राष्ट्रपति ने ‘पॉकेट वीटो’ वाले फैसले पर पूछे 14 सवाल

President Droupadi Murmu

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पूछे

President Droupadi Murmu: भारत में एक बड़ा मुद्दा चर्चा में है, जो विधेयकों को पास करने से जुड़ा है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से 14 सवाल पूछे हैं. ये सवाल इस बात पर हैं कि क्या राष्ट्रपति और राज्यपाल को बिल पास करने के लिए समय-सीमा दी जा सकती है. पिछले दिनों तमिलनाडु से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक इस मुद्दे पर खूब चर्चा हुई थी. आइए क्या है पूरा मामला विस्तार से जानते हैं.

मामला क्या है?

हमारे देश में जब कोई राज्य विधानसभा कोई बिल पास करती है, तो उसे राज्यपाल के पास भेजा जाता है. राज्यपाल उसे मंजूरी दे सकते हैं, ठुकरा सकते हैं या राष्ट्रपति को भेज सकते हैं. लेकिन संविधान में ये नहीं लिखा कि उन्हें कितने समय में फैसला करना है. कुछ मामलों में राज्यपाल या राष्ट्रपति बिल को लंबे समय तक लटकाए रखते हैं. इसे ‘पॉकेट वीटो’ कहते हैं, यानी बिल को बिना जवाब दिए रोक देना.

तमिलनाडु में ऐसा ही हुआ. वहां की सरकार ने कई बिल पास किए, लेकिन राज्यपाल आरएन रवि ने उन्हें मंजूरी नहीं दी. तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में शिकायत की. 8 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को बिल मिलने के 3 महीने में फैसला करना होगा. अगर विधानसभा वही बिल दोबारा पास करे, तो 1 महीने में मंजूरी देनी होगी. राष्ट्रपति को भी बिल पर 3 महीने में फैसला करना होगा. अगर देरी हो, तो कारण बताना होगा. कोर्ट ने ये भी कहा कि राष्ट्रपति या राज्यपाल बिल को अनिश्चितकाल तक नहीं रोक सकते.

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राष्ट्रपति ने सवाल क्यों पूछे?

इस फैसले के बाद कई लोग सवाल उठाने लगे कि क्या सुप्रीम कोर्ट को ऐसी समय-सीमा तय करने का अधिकार है? राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी. उन्होंने 14 सवाल भेजे, जिनमें कुछ मुख्य सवाल ये हैं.

इन सवालों के जवाब के लिए सुप्रीम कोर्ट को 5 जजों की बेंच बनानी होगी.

ये मामला क्यों अहम है?

ये मामला भारत के संविधान और लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ा है. अगर राज्यपाल या राष्ट्रपति बिलों को लटकाते रहेंगे, तो राज्य सरकारों का काम रुक सकता है. सुप्रीम कोर्ट का फैसला ये सुनिश्चित करता है कि बिलों पर जल्दी फैसला हो. लेकिन राष्ट्रपति के सवाल ये बताते हैं कि वो ये समझना चाहती हैं कि कोर्ट कितना दखल दे सकता है. सुप्रीम कोर्ट की राय से ये साफ होगा कि बिल पास करने की प्रक्रिया कितनी तेज होनी चाहिए. ये फैसला केंद्र और राज्यों के रिश्तों को भी प्रभावित कर सकता है.

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