Bihar Politics: बिहार की राजनीति में हमेशा से ही नए-नए दांव देखने को मिलते रहे हैं, लेकिन इस बार कहानी थोड़ी अलग है. लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव (Tej Pratap Yadav) ने एक ऐसा राजनीतिक कदम उठाया है जिसने हर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया है. अपनी ही पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल (RJD) से छह साल के लिए बाहर किए जाने के बाद तेज प्रताप ने एक नई पारी शुरू की है. उन्होंने पांच छोटे दलों के साथ मिलकर एक नया गठबंधन बनाया है, जिसका नाम है ‘टीम तेज प्रताप’.
इस गठबंधन में विकास वंचित इंसान पार्टी (VVIP), भोजपुरिया जन मोर्चा, प्रगतिशील जनता पार्टी, वाजिब अधिकार पार्टी और संयुक्त किसान विकास पार्टी शामिल हैं. यह कदम अपने आप में बड़ा है, लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि तेज प्रताप ने RJD और कांग्रेस को भी इस गठबंधन में शामिल होने का न्योता दिया है. उन्होंने कहा, “जिसको जो सोचना है सोचे.” यह सब देखकर मन में एक सवाल उठता है कि क्या तेज प्रताप ने अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत करने की तैयारी कर ली है या वह कहीं एक जोखिम भरा जुआ खेल रहे हैं?
‘टीम तेज प्रताप’ में शामिल पार्टियों के मुखिया कौन?
इन पार्टियों के मुखिया भी कुछ कम दिलचस्प नहीं हैं. इनमें एक हैं प्रदीप निषाद, जिन्हें सब ‘हेलिकॉप्टर बाबा’ के नाम से जानते हैं. वे पहले मुकेश सहनी की पार्टी में थे और अब उन्होंने अपनी पार्टी बनाकर तेज प्रताप का हाथ थामा है. इसके अलावा, भरत सिंह हैं, जिन्होंने भोजपुर राज्य बनाने के लिए एक संगठन शुरू किया था और अब वह एक राजनीतिक दल के तौर पर मैदान में हैं.
इस टीम में कुछ और खास चेहरे भी हैं. मनोरंजन कुमार श्रीवास्तव एक वकील हैं और छपरा से आते हैं. उन्होंने प्रगतिशील जनता पार्टी बनाई है और अब वे भी इस गठबंधन का हिस्सा हैं. दूसरी तरफ, विद्यानंद राम भी हैं, जिन्होंने नीतीश कुमार को छोड़कर अपनी वाजिब अधिकार पार्टी बनाई. ये सभी नेता अपने-अपने क्षेत्र में काम कर रहे हैं और अब तेज प्रताप के साथ मिलकर बड़ी चुनौती पेश करने की तैयारी में हैं.
ये सभी पार्टियां और उनके नेता एक बड़े गठबंधन के तौर पर नहीं, बल्कि छोटे-छोटे समूह के रूप में काम कर रहे हैं, जिनकी अपनी अलग-अलग पहचान है. इनमें से एक पार्टी, संयुक्त किसान विकास पार्टी किसानों के मुद्दों पर बनी है. हालांकि, इस पार्टी के मुखिया का नाम अभी सामने नहीं आया है. तेज प्रताप ने अपनी कोई नई पार्टी बनाने के बजाय, इन सभी क्षेत्रीय नेताओं को एक साथ लाकर एक ऐसा मंच तैयार किया है, जो बिहार चुनाव में एक नया समीकरण बनाने की कोशिश कर रहा है.
उपेंद्र कुशवाहा वाला डर
तेज प्रताप का यह कदम राजनीतिक जानकारों को एक और बिहारी नेता की याद दिला रहा है, वो हैं उपेंद्र कुशवाहा. पिछले विधानसभा चुनाव में कुशवाहा ने भी कुछ इसी तरह का रास्ता अपनाया था. उन्होंने अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) के साथ बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और AIMIM को मिलाकर एक नया गठबंधन बनाया था, जिसका नाम था ‘ग्रैंड डेमोक्रेटिक सेकुलर फ्रंट (GDSF)’. तब कुशवाहा ने खुद को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था.
लेकिन, उनकी उम्मीदें धरी की धरी रह गईं. उनका गठबंधन एक भी सीट नहीं जीत पाया, और तो और, कुशवाहा खुद अपनी सीट हार गए. GDSF को कुल मिलाकर सिर्फ 1.24% वोट ही मिले थे. अब, तेज प्रताप भी छोटे दलों के साथ मिलकर अपनी ताकत दिखाने की कोशिश कर रहे हैं. जिस तरह कुशवाहा ने मुख्यमंत्री बनने का दावा किया था, उसी तरह तेज प्रताप भी अपनी अलग राह पर चल पड़े हैं. क्या उनकी कहानी भी कुशवाहा जैसी होगी, या वह कुछ नया कर दिखाएंगे?
तेज प्रताप की राह में चुनौतियां
कमजोर गठबंधन: उनके नए गठबंधन में शामिल सभी पार्टियां छोटी हैं और बिहार में उनका कोई खास जनाधार नहीं है. एक मजबूत राजनीतिक ताकत बनने के लिए बड़े जनाधार की जरूरत होती है, जो उनके पास फिलहाल नहीं है.
संगठनात्मक कमजोरी: RJD के पास एक मजबूत संगठनात्मक ढांचा है, जो पार्टी को जमीन पर मजबूत बनाता है. तेज प्रताप के पास ऐसा कोई संगठन नहीं है, जो उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है.
निषाद वोट बैंक की खींचतान: तेज प्रताप ने निषाद नेता प्रदीप निषाद की VVIP पार्टी से गठबंधन किया है. बिहार में निषाद समुदाय का वोट बहुत मायने रखता है. लेकिन, इस समुदाय के अधिकांश वोट पहले से ही मुकेश सहनी की ‘विकासशील इंसान पार्टी (VIP)’ के पास हैं. ऐसे में निषाद वोटों को अपनी तरफ खींचना तेज प्रताप के लिए आसान नहीं होगा.
वोटों का बंटवारा: तेज प्रताप ने अपनी पुरानी सीट महुआ से चुनाव लड़ने का ऐलान किया है, जहां RJD के मौजूदा विधायक मुकेश रौशन हैं. अगर तेज प्रताप चुनाव लड़ते हैं, तो RJD और उनके बीच वोटों का बंटवारा होगा. इसका नुकसान सीधे तौर पर RJD को हो सकता है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि तेज प्रताप जीत ही जाएं.
तेजस्वी की लोकप्रियता: सबसे बड़ी चुनौती उनके अपने भाई तेजस्वी यादव हैं. RJD का कोर वोट बैंक, यादव, मुस्लिम और पिछड़ा वर्ग आज भी तेजस्वी के साथ मजबूती से खड़ा है. तेजस्वी की लोकप्रियता के सामने तेज प्रताप की सियासी जमीन कमजोर दिख रही है.
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क्या सुलह होगी या दूरियां बढ़ेंगी?
राजनीतिक पंडितों की राय में तेज प्रताप की यह चाल एक जुए की तरह है. अगर 2025 के विधानसभा चुनाव में तेजस्वी यादव मुख्यमंत्री बनते हैं, तो परिवार में सुलह की गुंजाइश बन सकती है. लेकिन, अगर तेज प्रताप अपनी बगावत को तेज करते हैं, तो वह उपेंद्र कुशवाहा की तरह हाशिए पर जा सकते हैं.
बिना किसी मजबूत संगठन और स्पष्ट रणनीति के तेज प्रताप का यह कदम बहुत जोखिम भरा है. बिहार की जनता और RJD के कार्यकर्ता उनके इस नए तेवर, नई रणनीति और इस नई पारी को कैसे देखते हैं, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा.
