सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मदरसों को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है. दरअसल, मदरसों के बच्चों को सरकारी स्कूलों में ट्रांसफर करने का आदेश रद्द कर दिया गया है. इसके साथ ही, मदरसों को मिलने वाली सरकारी फंडिंग भी जारी रहेगी.
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ का फैसला
यह फैसला मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और अन्य जस्टिसों की बेंच ने लिया. उन्होंने NCPCR (राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग) की सिफारिशों पर रोक लगाते हुए कहा कि जो मदरसे RTE (राइट-टु-एजुकेशन) के नियमों का पालन नहीं करते, उनकी फंडिंग नहीं रोकी जाएगी. सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को इस मामले में नोटिस दिया गया है और चार हफ्तों में जवाब देने को कहा गया है.
यूपी सरकार के फैसले पर लगी रोक
मदरसों के छात्रों को सरकारी स्कूलों में ट्रांसफर करने का निर्णय उत्तर प्रदेश सरकार ने लिया था, जो एनसीपीसीआर की रिपोर्ट पर आधारित था. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि मदरसों की मान्यता रद्द की जाए यदि वे आरटीई के नियमों का पालन नहीं करते हैं.
जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने इस निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी. उनके वकील इंदिरा जयसिंह ने तर्क दिया कि एनसीपीसीआर की सिफारिशों और सरकार के आदेशों पर रोक लगानी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर विचार करते हुए उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा की सरकारों की कार्रवाई पर रोक लगा दी.
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NCPCR ने दायर किया था हलफनामा
NCPCR ने हाल ही में एक हलफनामा दायर किया था, जिसमें कहा गया था कि मदरसों को दी जाने वाली सरकारी फंडिंग बंद कर देनी चाहिए क्योंकि ये बच्चे सही शिक्षा से वंचित रह जाते हैं. एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने कहा कि उनका उद्देश्य सभी बच्चों के लिए समान शिक्षा के अवसर प्रदान करना है, और मदरसों में धार्मिक शिक्षा पर जोर दिए जाने से गरीब मुस्लिम बच्चों को नुकसान होता है.