Madarsa Act Decision: सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के मदरसों में पढ़ाई करने वाले लाखों छात्रों के लिए राहत की खबर दी है. कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें ‘मदरसा एक्ट’ को संविधान के खिलाफ करार दिया गया था. अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, उत्तर प्रदेश के मदरसों को कक्षा 12 तक के सर्टिफिकेट देने का अधिकार मिलेगा, लेकिन वे ‘कामिल’ और ‘फ़ाज़िल’ नामक डिग्रियां जारी नहीं कर सकेंगे.
क्या है ‘कामिल’ और ‘फ़ाज़िल’ डिग्री?
उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड के तहत ‘कामिल’ और ‘फ़ाज़िल’ नामक डिग्रियां दी जाती हैं. ‘कामिल’ डिग्री अंडरग्रेजुएट (बैचलर डिग्री) के समान होती है, जबकि ‘फ़ाज़िल’ पोस्टग्रेजुएट (मास्टर्स डिग्री) के समकक्ष होती है. इसके अलावा, मदरसा बोर्ड ‘कारी’ नामक डिप्लोमा भी देता है. हर साल, मदरसा बोर्ड 10वीं कक्षा के ‘मुंशी’,’मौलवी’ और 12वीं कक्षा के ‘आलिम’ के एग्जाम भी आयोजित करता है.
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले के मुताबिक, मदरसे ‘कामिल’ और ‘फ़ाज़िल’ डिग्री नहीं दे पाएंगे, क्योंकि ये UGC (यूनीवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन) अधिनियम के खिलाफ होगा. इसका मतलब है कि मदरसे सिर्फ 12वीं तक का सर्टिफिकेट दे सकते हैं, लेकिन उच्च शिक्षा के लिए मान्यता प्राप्त डिग्रियां नहीं प्रदान कर सकते.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बड़ी बातें
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने सुनाया. कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को गलत बताते हुए मदरसा एक्ट को सही ठहराया. इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को यह निर्देश दिया कि वह मदरसा शिक्षा के मानकों को नियंत्रित और सुनिश्चित करेगी.
इस फैसले के बाद उत्तर प्रदेश में करीब 16,000 मान्यता प्राप्त मदरसों को राहत मिली है. उत्तर प्रदेश में कुल 23,500 मदरसे हैं, जिनमें से लगभग 16,500 मदरसे मान्यता प्राप्त हैं, और इनमें 560 मदरसे सरकारी अनुदान प्राप्त करते हैं.
इलाहाबाद हाई कोर्ट का फैसला
इससे पहले, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 22 मार्च 2024 को मदरसा शिक्षा कानून को असंवैधानिक घोषित किया था. अदालत ने कहा था कि यह कानून धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है, जो भारतीय संविधान के मूल तत्वों में से एक है. हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया था कि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को सामान्य स्कूल सिस्टम में समाहित किया जाए.
हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि सरकार को धार्मिक शिक्षा के लिए कोई अलग बोर्ड बनाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि इससे धर्मनिरपेक्षता का उल्लंघन होता है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर भी रोक लगा दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मदरसा में पढ़ने वाले बच्चों को सरकारी स्कूल में स्थांननातरित नहीं किया जाएगा.
क्या है मदरसा कानून ?
उत्तर प्रदेश में मदरसा शिक्षा को विनियमित करने के लिए 2004 में ‘उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम’ लागू किया गया था. इस कानून का उद्देश्य मदरसा शिक्षा को सुव्यवस्थित करना था और इसे एक संरचित पाठ्यक्रम के तहत लाना था. इसके तहत मदरसों को अरबी, उर्दू, इस्लामिक अध्ययन, फारसी, तिब्ब पारंपरिक चिकित्सा और दर्शन जैसी शिक्षा दी जाती है.
मदरसा शिक्षा बोर्ड ने इन विषयों को समकालीन ज्ञान के साथ जोड़ने का प्रयास किया है, ताकि छात्रों को धार्मिक और सामान्य दोनों प्रकार का शिक्षा मिल सके. इसके अंतर्गत बोर्ड के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सदस्य होते हैं, जिनमें इस्लामिक अध्ययन के विशेषज्ञ और शिक्षा विभाग के प्रतिनिधि शामिल होते हैं.
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आखिरकार क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मदरसा शिक्षा के भविष्य को लेकर एक महत्वपूर्ण मोड़ है. अब मदरसे अपनी मौजूदा स्थिति में काम करना जारी रखेंगे, लेकिन ‘कामिल’ और ‘फ़ाज़िल’ जैसी उच्च शिक्षा की डिग्रियां देने का अधिकार उन्हें नहीं मिलेगा. हालांकि, मदरसों में शिक्षा प्राप्त करने वाले लाखों छात्रों के लिए यह राहत की बात है कि उनकी पढ़ाई और प्रमाणपत्र जारी होते रहेंगे.