Biorepository on Moon: पृथ्वी की जैव विविधता खतरे में है. इसलिए वैज्ञानिकों ने अब चांद पर जैव भंडार बनाने का प्रस्ताव दिया है. वैज्ञानिकों का कहना है कि चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों में कुछ ऐसी जगहें हैं जहां 2 अरब सालों से सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंचा है. यानी की यह क्षेत्र बहुत ही ठंडा है. अंतरिक्ष के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि चंद्रमा पृथ्वी की उन प्रजातियों को संरक्षित करने में मदद कर सकता है, जिनके विलुप्त होने का खतरा अधिक है. हाल ही में किए गए एक रिसर्च में पता चला है कि पृथ्वी पर 80 लाख से अधिक प्रजातियां मौजूद हैं और इनमें से 10 लाख से अधिक विलुप्त होने के कगार पर हैं. कई ऐसी भी प्रजातियां हो सकती हैं, जो पहचाने जाने से पहले ही विलुप्त हो सकती है.
चांद पर बायोरिपोजिटरी बनाने की योजना
पृथ्वी के इसी खतरे से पार पाने के लिए स्मिथसोनियन के नेशनल जू एंड कंजर्वेशन बायोलॉजी इंस्टीट्यूट की मैरी हेगेडोर्न के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम चंद्रमा पर बायोरिपोजिटरी बनाने की योजना बना रही है. अगर ऐसा हुआ तो यह बहुत बड़ी वैज्ञानिक उपलब्धि होगी. वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसी प्रजातियों को संरक्षित करने के लिए प्राकृतिक रूप से चांद के ठंडे स्थानों का उपयोग किया जा सकता है, जहां कभी सूरज की रोशनी नहीं पड़ी है.
प्रजातियों को संरक्षित करने की क्या आवश्यकता ?
रिसर्च के मुताबिक, पृथ्वी पर 8 मिलियन से अधिक प्रजातियां हैं और इनमें से 1 मिलियन से अधिक विलुप्त होने वाले हैं. मैरी हेगडॉर्न के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम चंद्रमा पर एक बायोरिपोजिटरी बनाने की योजना बना रही है. वाशिंगटन डीसी में स्मिथसोनियन के नेशनल जू एंड कंजर्वेशन बायोलॉजी इंस्टीट्यूट (NZCBI) के वैज्ञानिकों ने अपनी बेहद महत्वाकांक्षी योजना की रूपरेखा तैयार की है. अध्ययन में कहा गया है कि चांद पर जानवरों की प्रजातियों के ‘क्रायोप्रिजर्व्ड कोशिकाओं’ को संग्रहीत किया जाएगा. इसमें कुछ पौधों के बीज भी हो सकते हैं.
बायोरिपोजिटरी ‘क्रायोप्रिजर्वेशन’ के जरिए इन प्रजातियों को डीप फ्रीज किया जाएगा. इसमें जानवरों, पौधों और सूक्ष्मजीवों के नमूनों को भी संरक्षित किया जा सकता है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर चांद ही क्यों? क्या वैज्ञानिक पृथ्वी पर यह काम नहीं कर सकते?
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चांद ही क्यों?
बता दें कि पृथ्वी पर जैविक नमूनों को क्रायोप्रिजर्व करने की क्षमता पहले से ही मौजूद है, लेकिन इसका भंडारण हमेशा चुनौतीपूर्ण साबित हुआ है. चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों में स्थायी रूप से छाया वाले कुछ क्षेत्र हैं, जैसे कि क्रेटर के तल. यहां 2 अरब सालों से सूर्य का प्रकाश नहीं पहुंचा है. यदि सीधे प्रजातियों को नहीं बचाया जा सकता है तो कम से कम क्रायोप्रिजर्वेशन के माध्यम से कुछ नमूनों को बचाया जा सकता है.
वैज्ञानिकों के मुताबिक, पशु प्रजातियों से जीवित कोशिकाओं को संरक्षित करने के लिए -196 डिग्री सेल्सियस या उससे कम तापमान की आवश्यकता होती है. पृथ्वी पर कहीं भी इतना ठंड नहीं है कि पशु नमूनों को स्टोर किया जा सके. हालांकि, चंद्रमा पर कुछ ऐसे स्थान हैं जो -196 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाते हैं, जिनमें से कुछ ऐसे भी हैं जो लगातार -225 डिग्री सेल्सियस से नीचे रहते हैं. वैज्ञानिक इन्हीं रिसर्च के जरिए अब चांद पर प्रजातियों को संरक्षित करने की योजना बना रहे हैं. एक सवाल और है कि चांद पर प्रजातियों को लेकर कैसे जाएंगे?
चांद पर पहुंचने की चुनौती
जानकारों के मुताबिक, सबसे बड़ी चुनौती नमूनों के लिए मजबूत पैकेजिंग का उत्पादन करना होगा जो लंबे समय तक अंतरिक्ष की विकट स्थिति का सामना कर सके. दूसरी चुनौती तापमान होगी क्योंकि चंद्रमा की सतह के कुछ क्षेत्र चंद्र दिवस के दौरान 100 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाते हैं. उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर स्थित क्रेटर, जिन्हें स्थायी रूप से छाया वाले क्षेत्र (PSR) के रूप में जाना जाता है, का तापमान -196 डिग्री सेल्सियस के करीब हो सकता है. चौथी चुनौती यह है कि PSR में पर्याप्त मात्रा में बर्फ होने की संभावना है. इसके अलावा, शोधकर्ताओं का मानना है कि एक और चुनौती कोशिकाओं पर माइक्रोग्रैविटी का प्रभाव होगा. खैर अभी तो योजना बनाई जा रही है. अगर निकट भविष्य में यह संभव हो पाया तो वाकई ये अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी.