इस बार के राज्य विधानसभा चुनाव में तेलुगू देशम पार्टी 135 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी है, वहीं उनके सहयोगी पवन कल्याण की जन सेना पार्टी 21 और भाजपा ने 8 सीटें जीतीं हैं. लोकसभा चुनावों में टीडीपी ने 16 सीटों पर जीत हासिल की है.
चौथी बार सीएम पद की शपथ लेंगे नायडू
बता दें कि पहले चंद्रबाबू नायडू तीन बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं. सबसे पहले साल 1995 में उसके बाद 1999 और उसके बाद 8 जून 2014 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. हालांकि, साल 2019 के विधानसभा चुनाव में YSRCP के अध्यक्ष जगन मोहन रेड्डी ने टीडीपी को हराकर नायडू से सत्ता छीन ली थी.
अगर चंद्रबाबू नायडू की सिसायी सफर की बात करें तो उन्होंने युवा कांग्रेस नेता के रूप में सफर की शुरुआत किया था. इमरजेंसी के बाद वो कांग्रेस में शामिल हो गए. नायडू 1978 में चंद्रगिरि से पहली बार MLA चुनकर विधानसभा पहुंचे. साल 1980 में जाने-माने अभिनेता और TDP के संस्थापक एन टी रामाराव (NTR) की बेटी नारा भुवनेश्वरी से उनकी शादी हुई.
शादी के बाद भी नायडू कांग्रेस में ही रहे. लेकिन 1983 के विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़कर टीडीपी ज्वॉइन कर ली.
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जब नायडू ने अपने ससुर से की बगावत
गौरतलब है कि चंद्रबाबू नायडू ने साल 1995 में आंध्र प्रदेश के सीएम और अपने ससुर एनटी रामाराव से बगावत कर दी थी. इसके बाद बहुमत साबित कर खुद ही मुख्यमंत्री बन गए. 2004 तक उन्होंने सीएम के रूप में काम किया. 2014 और 2019 में में वह जगन रेड्डी की पार्टी से हार गए थे. 2014 के लोकसभा चुनाव के साथ हुए विधानसभा चुनावों में आंध्र प्रदेश में टीडीपी ने शानदार जीत दर्ज की है और नायडू चौथी बार सीएम बनने वाले हैं. चंद्रबाबू नायडू विभाजन से पूर्व आंध्र प्रदेश के सबसे लंबे समय तक रहने वाले मुख्यमंत्री हैं. इतना ही नहीं वह सबसे लंबे समय तक विपक्ष के नेता भी रहे हैं.
आंध्र प्रदेश केलिए छोड़ा NDA का साथ
नायडू को हैदराबाद का मुख्य वास्तुकार भी माना जाता है. चंद्रबाबू नायडू ने हैदराबाद को हाई-टेक शहर के रूप में विकसित करने में अहम भूमिका निभाई. उन्होंने एनडीए की सरकार बनाने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी सरकार को बाहर से समर्थन दिया था. बताते चलें कि इसी तरह टीडीपी प्रमुख एन. चंद्रबाबू नायडू भी लंबे समय से आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग कर रहे हैं. नायडू इसके लिए काफी समय से संघर्ष कर रहे हैं. नायडू ने सबसे पहले साल 2017 में इसकी मांग की थी. एक बार तो इसके लिए उन्होंने एनडीए का साथ भी छोड़ दिया था.