Indian Himalayas: हिमालय पर्वत को उसके व्यापक ग्लेशियरों और बर्फ के आवरण के कारण तीसरा ध्रुव कहा जाता है. लेकिन यह इलाका वैश्विक जलवायु की वजह से बहुत ज्यादा प्रभावित हो रहा है. बर्फ लगातार पिघल रही है और ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं. इसका असर सामाजिक तौर पर भी पड़ रहा है.
भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की मानें तो हिमालय में 2431 झीलें ऐसी हैं, जो आकार में 10 हेक्टेयर से बड़ी हैं. जबकि 1984 से अब तक 676 झीलें ऐसी हैं, जिनके क्षेत्रफल में फैलाव हुआ है. इनमें से 130 भारत में मौजूद हैं. सिंधु नदी के ऊपर 65, गंगा के ऊपर सात और ब्रह्मपुत्र के ऊपर 58 ग्लेशियल लेक्स बनी हैं.
ये भी पढ़ेंः पूर्णिया में पप्पू यादव के खिलाफ तेजस्वी ने चल दी आखिरी चाल, बोले- या तो बीमा भारती या फिर NDA को चुनो
676 झीलों में 89 फीसदी झीलें दो बार से ज्यादा बार फैलीं
इन 676 झीलों में से 601 के आकार में दो बार से ज्यादा फैलाव हुआ है. जबकि 10 झीलें डेढ़ से दोगुना बढ़ी हैं. वहीं 65 झीलें हैं, जो डेढ़ गुना बढ़ी हैं. अगर इन झीलों की ऊंचाई की बात करें तो 314 झीलें 4 से 5 हजार मीटर (13 से 16 हजार फीट) की ऊंचाई पर हैं. जबकि 296 ग्लेशियल लेक्स 5 हजार मीटर से ऊपर हैं.
बता दें कि ग्लेशियरों के पिघलने से बनी जलराशि हिमनदी झीलों के रूप में जानी जाती हैं और हिमालय क्षेत्र में नदियों के लिए मीठे पानी के स्रोत के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. हालांकि वे महत्वपूर्ण जोखिम भी पैदा करते हैं, जैसे कि ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ), जिसके निचले स्तर के समुदायों के लिए विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं. जीएलओएफ तब होता है जब हिमनद झीलें प्राकृतिक बांधों, जैसे कि मोरेन या बर्फ से बने बांधों की विफलता के कारण बड़ी मात्रा में पिघला हुआ पानी छोड़ती हैं, जिसके परिणामस्वरूप अचानक और गंभीर बाढ़ आती है. ये बांध विफलताएं विभिन्न कारकों से शुरू हो सकती हैं, जिनमें बर्फ या चट्टान का हिमस्खलन, चरम मौसम की घटनाएं और अन्य पर्यावरणीय कारक शामिल हैं.