MP High Court: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने गुरुवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर लगे बैन को लेकर एक अहम टिप्पणी की. हाई कोर्ट ने कहा कि इस तरह के एक प्रसिद्ध संगठन को गलत तरीके से देश के प्रतिबंधित संगठनों में रखा गया. ये कोई सांप्रदायिक संगठन नहीं है, जिसमें शामिल होने के लिए सरकारी कर्मचारियों को रोकें. सरकार को इस गलती को सुधारने में 5 दशक लग गए. दरअसल, मध्य प्रदेश हाई कोर्ट सरकारी अधिकारियों पर आरएसएस की गतिविधियों में शामिल होने या भाग लेने पर प्रतिबंध के खिलाफ दायर 2023 की याचिका का निपटारा कर रहा था. 9 जुलाई, 2024 को केंद्रीय कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (DOPT) ने 1966 में जारी इस 58 साल पुराने प्रतिबंध को हटा दिया है. मोदी सरकार के इस फैसले के बाद से RSS में केंद्रीय कर्मचारी भी शामिल हो सकेंगे.
9 जुलाई को हटा प्रतिबंध
जस्टिस सुश्रुत अरविंद धर्माधिकारी और गजेंद्र सिंह की पीठ ने कहा, “केंद्र सरकार को अपनी गलती का एहसास होने में लगभग पांच दशक लग गए. आरएसएस जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध संगठन को गलत तरीके से देश के प्रतिबंधित संगठनों में रखा गया था और इसे हटाना जरूरी था.” सेवानिवृत्त केंद्रीय कर्मचारी पुरुषोत्तम गुप्ता ने 1966 के निर्देश के खिलाफ सितंबर 2023 में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था. द हिंदू के अनुसार, प्रतिबंध हटाए जाने के बाद, डीओपीटी ने एक हलफनामा दायर कर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय को 9 जुलाई के अपने कार्यालय ज्ञापन के बारे में सूचित किया, जिसमें आरएसएस को सूची से हटा दिया गया था. अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, पुरुषोत्तम गुप्ता ने अपनी याचिका में केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964 के विभिन्न प्रावधानों की संवैधानिक वैधता और वैधानिकता को चुनौती दी थी.
“किस आधार पर आरएसएस की गतिविधियों को अधर्मनिरपेक्ष माना गया?”
हाई कोर्ट ने कहा कि डीओपीटी के हलफनामे के दायर होने के बाद वे रिट याचिका को विवादास्पद मानकर खारिज कर देते, लेकिन उठाए गए मुद्दों, खासकर आरएसएस से जुड़े मुद्दों के राष्ट्रीय महत्व को देखते हुए, मामले को समाप्त करने से पहले कुछ टिप्पणियां करना जरूरी है. हाई कोर्ट ने सवाल किया कि प्रतिबंध पहले क्यों लगाया गया था? इसलिए सवाल उठता है कि किस अध्ययन या आधार पर, 1960 और 70 के दशकों में आरएसएस संगठन की गतिविधियों को समग्र रूप से सांप्रदायिक या धर्मनिरपेक्ष माना गया.
अदालत ने पूछा, “कौन सी रिपोर्ट, सर्वे या सामग्री थी, जिसके कारण तत्कालीन सरकार इस वस्तुपरक संतुष्टि पर पहुंची कि केंद्र सरकार के कर्मचारी आरएसएस से जुड़े हुए हैं.” अदालत ने कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग और केंद्रीय गृह मंत्रालय को 9 जुलाई के आदेश को अपनी वेबसाइट के संबंधित होम पेज पर प्रदर्शित करने और 15 दिनों के भीतर सभी विभागों को सूचित करने का निर्देश दिया.
यह भी पढ़ें: “7 बार सांसद रही , मुझे सिखाने की…”, ‘बांग्लादेशियों को शरण’ वाले बयान पर अब Mamata Banerjee ने केंद्र को दिया जवाब
आरएसएस पर कब-कब लगा प्रतिबंध
बता दें कि आरएसएस पर पहली बार जनवरी 1947 में प्रतिबंध लगाया गया था. उस समय कार्यरत एक अन्य अर्धसैनिक संगठन मुस्लिम नेशनल गार्ड के साथ आरएसएस पर सत्तारूढ़ यूनियनिस्ट पार्टी के प्रमुख मलिक खिजर हयात तिवाना ने प्रतिबंध लगा दिया था. चार दिन बाद प्रतिबंध हटा लिया गया था.
1948 में आरएसएस के सदस्य नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या कर दी. आरएसएस पर तब दूसरी बार प्रतिबंध लगाया गया था. हालांकि उस समय सरदार पटेल ने कहा था, “मेरे मन में कोई संदेह नहीं है कि हिंदू महासभा का चरमपंथी वर्ग गांधी की हत्या की साजिश में शामिल था. आरएसएस की गतिविधियां सरकार और राज्य के अस्तित्व के लिए एक स्पष्ट खतरा थीं. हमारी रिपोर्ट बताती है कि प्रतिबंध के बावजूद, वे गतिविधियां कम नहीं हुई हैं. वास्तव में, जैसे-जैसे समय बीतता गया, आरएसएस के लोग और अधिक विद्रोही होते गए और अपनी विध्वंसक गतिविधियों में बढ़ते गए.”