सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने PMLA (प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग ऐक्ट), UAPA (अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन ऐक्ट) और NDPS (नार्कोटिक्स ड्रग्स ऐंड साइकोट्रोपिक सब्सटैंसेज) जैसे कड़े कानूनों के तहत जमानत की शर्तों पर सवाल उठाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इन कानूनों का इस्तेमाल किसी आरोपी को लंबे समय तक जेल में रखने के लिए एक औजार के रूप में नहीं किया जा सकता.
तीनों कानूनों की सख्ती
इन तीनों कानूनों में अभियोजन को यह साबित नहीं करना होता कि आरोपी दोषी है. बल्कि, आरोपी को खुद यह साबित करना होता है कि वह बेगुनाह है. इसका मतलब यह है कि आरोपी को अपनी बेगुनाही साबित करने की जिम्मेदारी उठानी होती है. इस प्रावधान की वजह से कई बार बेगुनाहों को भी लंबे समय तक जेल में रहना पड़ता है.
सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला
जस्टिस अभय एस.ओका और जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि इन कानूनों के तहत जमानत के सख्त नियमों को लागू करने का तात्पर्य यह नहीं होना चाहिए कि किसी आरोपी को अवैध रूप से लंबी अवधि तक हिरासत में रखा जाए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुकदमे के जल्दी निपटारे के लिए शर्तों को इन कड़े कानूनों में भी शामिल किया जाना चाहिए. बेंच ने यह भी सुझाव दिया कि सरकार को उन कानूनों पर पुनर्विचार करना चाहिए, जिनमें आरोपी को अपनी बेगुनाही साबित करने का दायित्व होता है.
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सेंथिल बालाजी का मामला
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के पूर्व मंत्री सेंथिल बालाजी की जमानत याचिका की सुनवाई की. बालाजी पर मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप है. यह मामला 2011-2016 के दौरान AIADMK सरकार में परिवहन मंत्री रहते हुए नौकरी के बदले पैसे लेने के घोटाले से जुड़ा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बालाजी के खिलाफ प्रथम दृष्टया पुख्ता सबूत हैं, लेकिन फिर भी उन्हें जमानत दी गई, क्योंकि वह पहले से ही 15 महीने जेल में बिता चुके हैं. कोर्ट ने यह भी कहा कि इस मामले में 2,000 आरोपी और 500 गवाह हैं, इसलिए मुकदमे के जल्दी खत्म होने की कोई संभावना नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने सेंथिल बालाजी के बैंक खाते में 1.34 करोड़ रुपये की नकद राशि जमा होने का भी जिक्र किया. इस पर कोर्ट ने कहा कि बालाजी के दावों, जैसे MLA के रूप में मिलने वाला वेतन और कृषि आय जमा करने, को इस स्तर पर स्वीकार नहीं किया जा सकता. कोर्ट ने कहा कि यह कहना बहुत मुश्किल है कि बालाजी के खिलाफ कोई मामला नहीं है.
जस्टिस ओका और जस्टिस मसीह ने जोर देकर कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) को जमानत के सख्त प्रावधान धारा 45(1)(ii) का इस्तेमाल किसी आरोपी को लंबी अवधि तक हिरासत में रखने के लिए नहीं करना चाहिए.
जमानत के प्रावधान और आरोपी के अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे कड़े कानूनों में अपराधों की गंभीरता को देखते हुए मुकदमों का जल्द निपटारा किया जाना चाहिए. कोर्ट ने यह भी कहा कि जमानत देने के संबंध में कड़े प्रावधान एक उपकरण नहीं बन सकते जिसका इस्तेमाल आरोपी को अतार्किक रूप से लंबे समय तक बिना मुकदमे के जेल में बंद रखने के लिए किया जाए.
कोर्ट ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि बिना मुकदमे के लंबे समय तक जेल में रखना आरोपी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और अदालत को उसकी रक्षा के लिए हस्तक्षेप करना चाहिए. इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि सुप्रीम कोर्ट देश में जमानत के नियमों और आरोपी के अधिकारों को लेकर गंभीर है.