Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को निजी संपत्ति को लेकर बड़ी टिप्पणी की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि देश के संविधान का उद्देश्य ‘सामाजिक परिवर्तन की भावना’ लाना है. ऐसे में यह कहना खतरनाक होगा कि किसी नागरिक की निजी संपत्ति को समुदाय का भौतिक संसाधन नहीं माना जा सकता है. साथ ही कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक भलाई के लिए राज्य की ओर से उस निजी संपत्ति का अधिग्रहण नहीं किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों वाली संविधान पीठ कर रही विचार
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ इस प्रश्न पर विचार कर रही है कि क्या निजी संपत्ति को संविधान के अनुच्छेद 39(बी) के तहत समुदाय के लिए भौतिक संसाधन माना जा सकता है. इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने की यह टिप्पणी ऐसे वक्त में की है, जब देश में संपत्ति के बंटवारे को लेकर सियासत बवाल पर हैं. इस मामले में मामले पर सुनवाई करने वाले जजों की पीठ में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस बीवी नागरत्ना, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह शामिल हैं. वहीं बता दें कि
महाराष्ट्र के आवास-क्षेत्र विकास प्राधिकरण से जुड़ा है मामला
पूरा मामला साल 1976 के महाराष्ट्र के राज्य आवास और क्षेत्र विकास प्राधिकरण(MHADA) कानून से संबंधित है. साल 1986 में इस कानून में संशोधन किया गया था, जिसमें सरकार को किसी निजी व्यक्ति की संपत्ति को अधिग्रहित करने का अधिकार दे दिया गया था. इस संशोधन में इस बात का हवाला दिया गया था कि यह कानून संविधान के अनुच्छेद 39(B) को लागू करने के लिए बनाया गया है. बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) में प्रविधान है कि राज्य अपनी नीति के जरिये यह सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा कि समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व और नियंत्रण इस प्रकार किया जाए, जो आम लोगों की भलाई के लिए सर्वोत्तम हो.
मुंबई के प्रापर्टी ओनर्स एसोसिएशन ने कोर्ट में रखा पक्ष
इस मामले में मुंबई के प्रापर्टी ओनर्स एसोसिएशन(पीओए) सहित पक्षकारों के वकील ने अपनी दलील देते हुए कहा कि संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) और 31 (सी) की संवैधानिक योजनाओं की आड़ में राज्य के अधिकारियों की ओर से किसी निजी संपत्तियों का अधिग्रहण नहीं किया जा सकता. इस पर संविधान पीठ ने कहा, यह सुझाव देना थोड़ा अतिवादी हो सकता है कि ‘समुदाय के भौतिक संसाधनों’ का अर्थ केवल सार्वजनिक संसाधन हैं. इसकी उत्पत्ति किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति में नहीं है. मैं आपको बताऊंगा कि ऐसा दृष्टिकोण रखना क्यों खतरनाक होगा. पीठ ने आगे कहा, खदानों और यहां तक कि निजी वनों जैसी साधारण चीजों को लें. सरकारी नीति अनुच्छेद 39 (बी) के तहत निजी वनों पर लागू नहीं होगी. इसलिए इससे दूर रहें, यह कहना बेहद खतरनाक होगा.
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‘महाराष्ट्र राज्य का कानून वैध है या नहीं, यह अलग मुद्दा’
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि अधिकारियों को जर्जर इमारतों को अपने कब्जे में लेने का अधिकार देने वाला महाराष्ट्र राज्य का कानून वैध है या नहीं, यह पूरी तरह से अलग मुद्दा है और इस पर फैसला स्वतंत्र रूप से किया जाएगा. शीर्ष अदालत ने पूछा कि क्या यह कहा जा सकता है कि एक बार संपत्ति निजी हो जाने के बाद अनुच्छेद 39 (बी) का कोई उपयोग नहीं होगा, क्योंकि समाज कल्याणकारी उपायों की मांग करता है और धन के पुनर्वितरण की भी आवश्यकता है. जब संविधान बनाया गया था, तब की सामाजिक और अन्य स्थितियों का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा, संविधान का उद्देश्य सामाजिक परिवर्तन लाना था. हम यह नहीं कह सकते कि निजी तौर पर संपत्ति रखे जाने के बाद अनुच्छेद 39 (बी) का कोई उपयोग नहीं है.