Supreme Court ने अनुसूचित जाति (SC) और जनजातियों (ST) को आरक्षण के मुद्दे पर अहम फैसला सुनाया है. सर्वोच्च अदालत ने कहा कि अनुसूचित जाति और जनजातियों में सब-कैटेगरी बनाई जा सकती है. मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई में 7 जजों की संवैधानिक पीठ ने 6:1 बहुमत से फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि SC/ST श्रेणियों के भीतर अलग-अलग कोटा अधिक पिछड़े उप-समूहों को आवंटित किया जा सकता है. राज्य सरकार ऐसा करने से पहले डेटा एकत्र कर लें.
पंजाब हाईकोर्ट के खिलाफ एससी में की गई थी अपील
यह फैसला एक ऐसे मामले के जवाब में आया, जिसमें पंजाब उच्च न्यायालय ने 2010 के एक कानून को रद्द कर दिया था, जिसमें एससी आरक्षण का आधा हिस्सा वाल्मीकि और मज़हबी सिख समुदायों को आवंटित किया गया था. इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई थी. अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एससी और एसटी श्रेणियों के भीतर कुछ जातियां काफी पिछड़ी हैं और उन्हें लक्षित सशक्तीकरण की आवश्यकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ कहा कि किसी भी उप-समूह के लिए पिछड़ेपन का सबूत स्थापित किया जाना चाहिए, और शिक्षा और रोजगार में प्रतिनिधित्व इस वर्गीकरण के आधार के रूप में काम कर सकता है. किसी जाति में सिर्फ़ बड़ी संख्या में व्यक्ति होना उप-वर्गीकरण के लिए पर्याप्त आधार नहीं है. न्यायालय ने माना कि एससी श्रेणी समरूप नहीं है और कुछ जातियों को अधिक गंभीर भेदभाव का सामना करना पड़ा है. सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को आदेश देते हुए कहा, “आरक्षण के किसी भी उप-वर्गीकरण को लागू करने से पहले डेटा एकत्र करना चाहिए.
आठ फरवरी को रखा था फैसला सुरक्षित
बता दें कि मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने इस मामले पर तीन दिनों तक सुनवाई करने के बाद इस साल आठ फरवरी को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. इस मामले को 2020 में पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह मामले में पांच जजों वाली पीठ ने सात जजों वाली पीठ को सौंप दिया था.