Chhattisgarh: गुरूघासी दास नेशनल पार्क क्षेत्र के गांवों में सड़क, बिजली-पानी का अभाव, 10 KM चलकर वोट डालने जाएंगे ग्रामीण

Chhattisgarh News: गुरूघासी दास नेशनल पार्क क्षेत्र के पांच गांवों के मतदाता सात से दस किलोमीटर पैदल चलकर मतदान करने के लिए पोलिंग बूथ में पहुंचेंगे. इन गांवों तक जाने के लिए सड़क का आभाव है, और न ही यहां के गांवों में मुलभुत सुविधाएं है. इसके कारण यहां के मतदाताओं ने 2018 के विधानसभा चुनाव में वोट का बहिष्कार किया था.
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लूल्ह गांव

Chhattisgarh News: सूरजपुर जिले के गुरूघासी दास नेशनल पार्क क्षेत्र के पांच गांवों के मतदाता सात से दस किलोमीटर पैदल चलकर मतदान करने के लिए पोलिंग बूथ में पहुंचेंगे. इन गांवों तक जाने के लिए सड़क का आभाव है, और न ही यहां के गांवों में मुलभुत सुविधाएं है. इसके कारण यहां के मतदाताओं ने 2018 के विधानसभा चुनाव में वोट का बहिष्कार किया था. इसके बाद लुल गांव के पोलिंग बूथ में एक भी मत नहीं पड़ा था. इसके बाद भी यहां सड़क, बिजली, पानी की गंभीर समस्या है.

गांवों में सुविधाओं का अभाव

छत्तीसगढ़ व मध्यप्रदेश की सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित है बिहारपुर. इस इलाके तक गुरूघासी दास नेशनल पार्क फैला हुआ है, और पार्क क्षेत्र में ही कई गांव बसे हुए हैं. इसमें खोहिर ग्राम पंचायत का लूल्ह गांव भी है. यहां मतदान केंद्र बनाया गया है, लेकिन मतदान दल को यहां पहुंचने के लिए पहाड़ी के तंग रास्तो से होकर गुजरना पड़ेगा. वहीं यह इलाका हाथी प्रभावित भी है, ऐसे में जंगल के रास्ते जाते समय हाथियों का खतरा भी रहता है. यहां ट्रेक्टर और कमांडर जीप ही किसी तरह पहुंच पाते हैं. यह इलाका सूरजपुर जिला मुख्यालय से 122 किलोमीटर है.

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10 किलोमीटर पैदल चलकर वोट डालने जाएंगे गांवों के मतदाता

लूल्ह गांव के इस मतदान केंद्र में बैजनपाठ के मतदाता सात किलोमीटर पैदल चलकर वोट करने आएंगे. इसी तरह रामगढ़ पंचायत के तेलाईपाठ के मतदाता भी इतनी ही दूरी तय करेंगे. वहीं सबसे अधिक भुण्डा गांव के लोग 10 किलोमीटर पैदल चलकर वोट करने लुल गांव पहुंचेंगे. इसी तरह इस क्षेत्र में और भी गांव हैं, जहां के लोग कई किलोमीटर पैदल चलकर मतदान करने अपने घरों से निकलेंगे. ये सभी गांव सूरजपुर जिले के ओड़गी क्षेत्र के हैं ,और यहां गुरूघासी दास नेशनल पार्क क्षेत्र होने की वजह से यहां जंगलों में सड़क का निर्माण नहीं हो पा रहा है, तो ग्रामीणों का कहना है कि वे बस्ती छोड़कर कहां जाये क्योंकि उनकी कई पीढ़ी इन गांवों में गुजर गई है, उनकी यहां खेती की जमीन है, तो वनोपज से उनकी आजीविका चल रही है.

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