Lok Sabha Election: छत्तीसगढ़ की तीन लोकसभा सीटों महासमुंद, कांकेर और राजनांदगांव पर शुक्रवार को वोट डाले गए. इनमें भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिला. वहीं, अब 7 मई को राज्य की अन्य सात सीटों पर वोट डाले जाएंगे. इनमें बिलासपुर, दुर्ग, सरगुजा, रायगढ़, जांजगीर-चांपा, कोरबा और रायपुर शामिल हैं. इस बार के चुनाव में बिलासपुर की परिस्थिति बदली-बदली नजर आ रही है. यहां से भाजपा ने एक बार फिर से साहू समाज का कार्ड खेला है. वहीं, कांग्रेस ने यादव कार्ड चला है.
बता दें कि कांग्रेस ने बिलासपुर से विधायक व युवा नेता देवेंद्र यादव को मैदान में उतारा है. दोनों ही पार्टियों की ओर से प्रत्याशियों के नाम की घोषणा होने के बाद से बिलासपुर लोकसभा की राजनीति हर दिन करवट ले रही है.
बिलासपुर लोकसभा सीट पर 20 लाख वोटर
बिलासपुर लोकसभा सीट पर करीब 20 लाख वोटर हैं. दावा यह कि यहां सबसे अधिक साहू वोटर हैं. दूसरा यादव व तीसरे नंबर पर कुर्मी समाज के वोटर हैं. हालांकि तीनों समाजों के प्रमुख अपने समाज के वोटर सबसे ज्यादा होने का दावा करते नहीं थकते. फिलहाल, निष्कर्ष यह है कि बिलासपुर लोकसभा सीट ओबीसी बाहुल्य है.
भाजपा ने बिलासपुर लोकसभा से लगातार तीसरी बार प्रत्याशी का चेहरा बदला है. ऐसा नहीं है कि बीते दो चुनावों के प्रत्याशियों को हार मुंह देखना पड़ा. दोनों ही प्रत्याशियों लखनलाल साहू और अरुण साव ने अच्छे-खासे वोट से फतह हासिल की है. लेकिन भाजपा ने रिपीट किसी को नहीं किया. इस बार पूर्व विधायक तोखन साहू को नायक के रूप में उतारा गया है. हालांकि साहू समाज का उम्मीदवार बनाना भाजपा की परेशानी बढ़ा सकता है. दरअसल, लगातार तीसरी बार साहू समाज को तवज्जो देने से यहां के कुछ समाज प्रमुख खासे नाराज चल रहे हैं. कुर्मी समाज के सामाजिक खाने से जो बातें उड़ कर सामने आ रही हैं, वह भाजपा के लिए अच्छे संकेत नहीं हैं.
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जिले में कुर्मी समाज के 11 मंडल हैं, जिसके अपने-अपने कर्ताधर्ता हैं. बताया जा रहा है कि बीते 11 अप्रैल की दोपहर बाद तखतपुर मंडी प्रांगण में कुर्मी बंधुओं की सामाजिक बैठक रखी गई. इसमें 8 मंडल के अध्यक्ष समेत सभी पदाधिकारी शामिल हुए. तीन मंडल के सदस्य तो आए, लेकिन पदाधिकारी गायब रहे. बैठक में लोकसभा चुनाव और प्रत्याशी चयन को लेकर गंभीर चर्चा हुई. समाज प्रमुखों ने कहा कि भाजपा ने बिलासपुर लोकसभा को साहू समाज के हवाले कर दिया है. यही वजह है कि लगातार तीसरी बार इसी समाज से उम्मीदवार उतारा गया है. उन्होंने बारी-बारी से साहू समाज के तीनों नेताओं के बारे में आंकलन किया. निष्कर्ष निकला कि जिला पंचायत सदस्य रहे लखनलाल साहू को लोगों ने इसलिए पसंद किया, क्योंकि उनका स्वभाव सरल और सौम्य था.
दरअसल, भाजपा ने पहली बार किसी साहू पर भरोसा जताया था. तब लग रहा था कि धीरे-धीरे ही सही, पर ओबीसी वर्ग से ताल्लुक रखने वाले अन्य समाज के नेताओं की भी बारी आएगी. 2018 के लोकसभा चुनाव में जनसंघ से जुड़े अरुण साव को टिकट दिया गया. उनके मुकाबले कांग्रेस ने कमजोर प्रत्याशी उतारा, जिसका फायदा भाजपा को मिला. सांसदी कार्यकाल में ही अरुण साव को भाजपा प्रदेशाध्यक्ष की कमान मिली. उनके नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ा गया. बहुमत मिला तो लग रहा था कि छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद अब दूसरी बार बिलासपुर संभाग से सीएम होंगे, लेकिन हुआ ऐसा नहीं. डिप्टी सीएम का पद देकर बिलासपुर को लॉलीपॉप पकड़ा दिया गया. लॉलीपॉप इसलिए, क्योंकि उसी पद पर एक नए-नवेले नेता को बिठा दिया गया है.
संतोष कौशिक अवसरवादी, सामाजिक नेता नहीं
कुर्मी समाज के मंडल पदाधिकारियों द्वारा बुलाई गई बैठक में सामाजिक नेता संतोष कौशिक को लेकर काफी देर तक चर्चा हुई. इस दौरान कुछ लोगों ने कहा कि उन्होंने दबाव में आकर पार्टी बदली है. मन से वे अब भी हमारे साथ हैं. यहां जो भी निर्णय लिया जाएगा, उस पर वे भी अमल करेंगे. वे समाज से बाहर नहीं जाएंगे. इस दौरान मंडल प्रमुखों ने संतोष कौशिक की राजनीतिक सक्रियता की सारी गठरी खोलकर रख दी.
समाज प्रमुखों ने कहा कि जिस इंसान की आस्था एक पर नहीं टिकी है, वह किसी का नहीं हो सकता. संतोष कौशिक ने पहले जोगी कांग्रेस पर आस्था जताई. इस पार्टी से चुनाव भी लड़ा और समाज से साथ भी लिया, लेकिन हुआ क्या 2023 में समाज को भरोसे में लिए बगैर वह कांग्रेस में शामिल हो गए. टिकट की दोवदारी की, लेकिन मिला नहींय महज एक साल में संतोष कौशिक का कांग्रेस से मोहभंग हो गया और अचानक बीजेपी पर आस्था जग गई. 6 साल के अंदर उनके तीन किरदार से यह साबित हो गया है कि वह सामाजिक नेता नहीं, अवसरवादी है. वह सिर्फ अपना देखते हैं, जहां उन्हें फायदा नजर आता, उसी के पाले में चला जाता है. इसलिए समाज को उससे दूरी बनाकर रखना होगा.
मल्हार में केंवट समाज ने ली शपथ
भाजपा की ओर से लगातार साहू समाज और मुंगेली जिले से ही प्रत्याशी उतारना केंवट समाज को भी नहीं पच रहा है. कुर्मी समाज की बैठक से पहले केंवट समाज के प्रमुखों और सदस्यों की मीटिंग मां डिंडिनेश्वरी देवी की नगरी मल्हार में हुई. इस मीटिंग में भी कुर्मी समाज की तरह सारी परिस्थितियों पर मंथन किया गया. तय हुआ कि हमारा समाज कब तक वोट बैंक कहलाता रहेगा. अब नहीं, तो कभी नहीं हमें अपना प्रभाव दिखाना ही होगा. हमारे लिए यही अच्छा समय है. बैठक में सभी ने शपथ ली कि हमें दरकिनार करने वाली पार्टी को सबक सीखा कर रहेंगे.