Indore Lok Sabha Seat: पोहा कैपिटल, नमकीन कैपिटल, क्लीनेस्ट सिटी, दाल-बाफले की राजधानी और मिनी मुंबई जैसे नामों से मशहूर इंदौर शहर इन दिनों चुनाव को लेकर चर्चा में है. एमपी का सबसे बड़ा शहर जिसकी राजनीति मालवा रीजन की राजनीति के केंद्र में है. इंदौर में चौथे चरण में चुनाव होना है लेकिन मैदान में बीजेपी के शंकर लालवानी को छोड़कर कोई उम्मीदवार नजर नहीं आ रहा है.
वाकया कुछ इस तरह है…
कांग्रेस ने आम चुनाव 2024 के लिए अक्षय कांति बम को अपना उम्मीदवार बनाया था. चौथे चरण के नामांकन वापस लेने के अंतिम दिन 29 अप्रैल को अक्षय कांति बम ने नामांकन वापस ले लिया. एमपी के साथ-साथ देश की राजनीति में हलचल मच गई. एकाएक कांग्रेस के उम्मीदवार का पर्चा वापस लेना किसी के गले से नहीं उतर रहा था. उनके बीजेपी में जाने के कयास लगाए जाने के लगे. ये इसलिए भी क्योंकि जब बम नामांकन वापस करने जा रहे थे तो उनके साथ बीजेपी विधायक रमेश मेंदोला थे.
इस सारे घटनाक्रम के कुछ देर बाद एमपी सरकार में कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने सोशल मीडिया साइट x पर एक फोटो पोस्ट की. जिसमें कार की बैकसीट में अक्षय कांति बम बैठे हैं और आगे की सीट पर कैलाश विजयवर्गीय बैठे है. इस पोस्ट का कैप्शन था ‘…भाजपा में स्वागत है’. ये तो घटनाक्रम का एक भाग था. इसके बाद बम बीजेपी के कई बड़े नेताओं के बीच बैठे थे और गले में बीजेपी का पटका डाले हुए थे. शाम होते-होते पिक्चर क्लीयर हो गई. एक वीडियो और सामने आया जिसमें डिप्टी सीएम जगदीश देवड़ा, कैबिनेट मंत्री कैलाश विजयवर्गीय समेत विधायक, नेता डायनिंग टेबल पर बैठकर खाना खा रहे हैं जिसमें अक्षय बम भी शामिल हैं.
इस सारे घटनाक्रम के कुछ दिन बाद अक्षय कांति बम ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. जब सवाल पूछा गया कि क्या डील हुई है? सामने से जवाब आया कि जो 14 लाख रुपये की घड़ी पहनता है उसके साथ क्या डील की जा सकती है. उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि पार्टी ने उन्हें प्रचार करने में मदद नहीं की और बड़े नेताओं ने कोई रैली नहीं की. कांग्रेस के नेताओं को मुझ पर विश्वास नहीं था.
इस बारे में कांग्रेस ने क्या कहा…
इस सारे घटनाक्रम में एक बात ये भी है कि इंदौर से मात्र 15 किमी दूर पीसीसी चीफ जीतू पटवारी का विधानसभा क्षेत्र राऊ है. जीतू पटवारी को इस बारे में कुछ पता नहीं चला. जीतू पटवारी का बयान आया कि कांग्रेस नेताओं को डराया धमकाया जा रहा है.
कांग्रेस के सब्सटीट्यूट कैंडिडेट का क्या हुआ…
इंदौर से कांग्रेस के सब्सटीट्यूट उम्मीदवार थे मोती सिंह पटेल. यहां भी कांग्रेस के साथ खेल हो गया. चुनाव आयोग ने मोती सिंह पटेल को सब्सटीट्यूट कैंडिडेट मानने से इनकार कर दिया. इसके बाद मोती सिंह पटेल हाईकोर्ट की इंदौर बेंच पहुंच गए. जहां से उन्हें राहत मिलने की जगह कांग्रेस पार्टी को एक और धक्का लगा.
चुनाव आयोग ने कोर्ट में बताया कि मोती सिंह का पर्चा पहले ही एक्सपायर हो गया है. एक्सपायर होने का कारण गवाहों के हस्ताक्षर न होना था. मोती सिंह के नामांकन में केवल एक व्यक्ति के हस्ताक्षर थे और जरुरत 10 की थी. पहले सिंगल बेंच और फिर डबल बेंच ने याचिका को खारिज कर दिया है.
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इंदौर में आगे क्या…
बीजेपी के शंकर लालवानी को छोड़कर कोई बड़ा उम्मीदवार नजर नहीं आता. लेफ्ट के अजित सिंह पंवार और बीएसपी के संजय सोलंकी मैदान में हैं. इंदौर में चौथे चरण में 13 मई को वोटिंग होनी है.
सबसे ज्यादा वोटर्स वाली सीट
इंदौर लोकसभा सीट एमपी की सबसे ज्यादा वोटर्स वाली सीट है. यहां कुल 25 लाख वोटर्स हैं. इनमें 12.63 पुरुष और 12.39 लाख महिला वोटर्स हैं. इस लोकसभा सीट में आठ विधानसभा सीट शामिल हैं. इनमें देपालपुर, इंदौर-1, इंदौर-2, इंदौर-3, इंदौर-4, इंदौर-5, राऊ और सांवेर हैं. सभी आठ विधानसभा पर बीजेपी के विधायक हैं. सांवेर विधानसभा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है.
शंकर लालवानी – इंदौर से वर्तमान में सांसद
एजुकेशन – बी टेक
संपत्ति – 1 करोड़ रुपये+
आपराधिक रिकॉर्ड- शून्य (0)
बीजेपी ने इस बार फिर से शंकर लालवानी पर भरोसा जताया है. एक तरह से कहा जाए तो इस बार शंकर लालवानी बड़े उम्मीदवारों में अकेले हैं. लालवानी के राजनीतिक सफर की बात करें तो साल 1993 में पहली बार बीजेपी ने उन्हें वार्ड स्तर की जिम्मेदारी सौंपी थी. इसके बाद 1994 से 1999 तक वार्ड पार्षद रहे. 1999 से 2004 तक नगर निगम के लोक निर्माण विभाग के अध्यक्ष पद रहे. साल 2004 से 2009 में इंदौर नगर निगम के अध्यक्ष बने. इसके बाद 2013 से 2018 तक इंदौर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष रहे.
2019 के आम चुनाव के लिए बीजेपी ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया. इस चुनाव में शंकर लालवानी को रिकॉर्ड वोट से जीत मिली. लालवानी को 10 लाख, 68 हजार, 569 वोट मिले और कांग्रेस के उम्मीदवार को 5 लाख 20 हजार 815 वोट मिले. दोनों के बीच जीत का अंतर 5 लाख, 47 हजार, 754 रहा.
इंदौर सीट का राजनीतिक सफर – पिछले 35 साल से बीजेपी का कब्जा
इस सीट पर पिछले 35 साल से बीजेपी का कब्जा है. सबसे ज्यादा आठ बार यानी साल 1989, 1991, 1996, 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 में ताई सुमित्रा महाजन सांसद रहीं. ये रिकॉर्ड भारत के इतिहास में भी दर्ज है. इस सीट पर पहला चुनाव साल 1952 में हुआ था. इस चुनाव में कांग्रेस के नंदलाल जोशी सांसद बने. पहले गैर कांग्रेसी सांसद कल्याण जैन 1977 में जनता पार्टी की टिकट से बने.
कांग्रेस के प्रकाश चंद्र सेठी चार बार यानी साल 1967, 1971, 1980 और 1984 में सांसद रहे.
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