Bhopal Gas Tragedy: ठीक आज से 40 साल पहले आज ही दिन की दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी घटी. 2 और 3 दिसंबर 1984 की रात, भोपाल की जनता के लिए एक सामान्य रात की तरह ही थी. लोग अपने घरों में सोए हुए थे, लेकिन किसी को नहीं पता था कि आने वाली कुछ ही घंटों में उनके जीवन पर ऐसा गहरा संकट आने वाला है, जिसे दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी के रूप में जाना जाएगा. यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) की फैक्ट्री से जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस का रिसाव हुआ. जिसने हजारों जिंदगियों को खत्म कर दिया और लाखों को स्थायी रूप से प्रभावित किया.
आखिर क्या कहते हैं इतिहास के पन्ने?
राजधानी भोपाल में स्थित यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री की स्थापना 1969 में की गई थी. यह फैक्ट्री कीटनाशकों के उत्पादन के लिए मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस का उपयोग करती थी. MIC एक अत्यंत खतरनाक रसायन है, जिसे विशेष देखभाल और सुरक्षा उपायों के साथ संभालने की आवश्यकता होती है. 80 के दशक की शुरुआत में, यूनियन कार्बाइड कंपनी ने फैक्ट्री के रखरखाव और सुरक्षा उपायों में कटौती करना शुरू कर दिया था.
इसके कारण सुरक्षा उपकरण और आपातकालीन प्रणाली ठीक से काम नहीं कर रही थीं. 3 दिसंबर 1984 की रात, फैक्ट्री के टैंक नंबर 610 में MIC गैस का रिसाव शुरू हुआ. रात करीब 12.30 बजे फैक्ट्री के टैंक नंबर 610 में बढ़ता दबाव और ठंडा करने वाली प्रणाली की विफलता के कारण जहरीली गैस का रिसाव हुआ. रिसाव इतना तेजी से हुआ कि कुछ ही मिनटों में गैस आसपास के इलाकों में फैल गई. हवा के साथ यह जहरीली गैस शहर के घनी आबादी वाले इलाकों तक पहुंच गई.
गैस ने सबसे पहले फैक्ट्री के पास रहने वाले गरीब वर्ग को प्रभावित किया. लोग नींद में ही दम तोड़ने लगे. आंखों में जलन, सांस लेने में कठिनाई और शरीर में तेज दर्द के कारण लोग अपने घरों से बाहर भागने लगे लेकिन बाहर भी उन्हें कोई राहत नहीं मिली. गैस की जहरीली चपेट से बचना नामुमकिन था. लोग परेशान होकर इधर-उधर होकर भागने लगे. इसके अलावा कुछ लोग छोटे-मोटे क्लिनिक चलाने वाले डॉक्टर के पास पहुंचे.
क्लिनिक में डॉक्टर ने पीड़ितों की आंखों में ड्राप डाले और पानी से आंख धुलवाए. कई मरीजों के आंखों में पानी की गीली पट्टी भी रखवाई. इसके अलावा कई पीड़ितों के आंखों में दवा डालकर पट्टी भी की गई. धीरे-धीरे फैक्ट्री के आसपास के क्लिनिक में भीड़ बढ़ने लगी. ये संख्या इतनी थी लोगों को संभाल पाना मुश्किल हो गया था. कई गैस के रिसाव से पीड़ित कई लोगों ने घरों में, कुछ ने रास्ते में और कुछ लोगों ने क्लिनिक में दम तोड़ दिया. 2 और 3 दिसंबर की रात में आसपास के अस्पताल और पुलिस थानों को इसी सूचना दी गई.
भोपाल गैस त्रासदी राहत और पुनर्वास विभाग की अधिकारिक वेबसाइट के अनुसार भोपाल में इस गैस रिसाव से 6 लाख लोग प्रभावित हुए. जिसका असर 36 वार्डों में देखने को मिला. इस त्रासदी ने केवल इंसानों को ही नहीं जानवर को भी नहीं छोड़ा. हजारों जानवर बेमौत मारे गए थे. सड़कों पर यहां-वहां जानवरों की लाश पड़ी हुई थीं. इन लाशों को हटाने में कई दिनों का समय लग गया था.
गैस त्रासदी ने कितने लोगों की जान ली?
भोपाल गैस त्रासदी में हजारों लोगों की मौत हुई और लाखों लोग प्रभावित हुए. भोपाल गैस त्रासदी राहत और पुनर्वास विभाग की अधिकारिक वेबसाइट के अनुसार लगभग 3 हजार लोगों की तत्काल मृत्यु हुई. इसके उलट गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) का मानना है कि यह संख्या 20 हजार से ज्यादा थी. करीब 6 लाख लोग इस त्रासदी से प्रभावित हुए.
इतनी बड़ी त्रासदी कैसे हुई?
1. सुरक्षा मानकों की अनदेखी की गई: यूनियन कार्बाइड ने फैक्ट्री में सुरक्षा उपकरणों के रखरखाव पर ध्यान नहीं दिया. कई अलार्म ढंग से काम नहीं कर रहे थे. बजट में भी कटौती की गई. बजट में कटौती से बार-बार पुरानी मशीनों को सुधार का काम लिया जा रहा था.
2. ठीक से ट्रैनिंग का ना होना: कर्मचारियों को इमरजेंसी की स्थितियों से निपटने के लिए पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं दिया गया था. खास उन कर्मचारियों को मिथाइल आइसोसाइनाइट गैस के टैंक के रखरखाव के लिए काम कर रहे थे.
3. खराब मैनेटमेंट प्रणाली: फैक्ट्री में खराब हो चुके उपकरणों का उपयोग किया जा रहा था. जब तक उपकरण काम करना बंद नहीं कर देते तब ठीक नहीं किया जाता था. इसके अलावा उन्हें ठीक करने के बजाय उन्हें नजरअंदाज किया गया था.
4. MIC गैस के स्टोरेज में लापरवाही बरती गई: MIC गैस को ठंडा रखना आवश्यक था. लेकिन ठंडा करने वाली प्रणाली काम नहीं कर रही थी. जरूरत से ज्यादा गैस को स्टोर करके रखा गया था.
परिवार आज तक भुगत रहे परिणाम
इस गैस त्रासदी ने उस समय (2-3 दिसंबर 1984) में ही लोगों की जान नहीं ली बल्कि आज भी इसके दुष्परिणाम नजर आते हैं. 1984 के बाद जन्म लेने वाले लोगों में कई तरह की विकृति देखने को मिली. कैंसर, श्वसन रोग, आंखों की समस्याएं और मानसिक विकार जैसी बीमारियां पीड़ित परिवारों में आज भी मौजूद हैं. इसके साथ ही मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस ने हवा, पानी और मिट्टी को मिलकर जहरीला बना दिया.
कंपनी का मालिक ऐसा भागा कि कभी पकड़ में नहीं आया
6 दिसंबर 1984 को कंपनी के मालिक वॉरेन एंडरसन ने जैसे ही भोपाल में कदम रखे तो उसे गिरफ्तार कर लिया गया. लेकिन 7 दिसंबर को उसे रिहा कर दिया गया. तत्कालीन भोपाल के SP स्वराज पुरी और DM मोती सिंह ने मुख्य आरोपी को रिसीव किया. एंडरसन को 7 दिसंबर को ही इमरजेंसी फ्लाइट से दिल्ली भेज दिया गया. यहां से एंडरसन अमेरिका भाग गया. फिर इसके बाद कभी लौटकर नहीं आया.
साल 2014 में अमेरिका के फ्लोरिडा में 93 साल की उम्र में वॉरेन एंडरसन का निधन हो गया. गैस त्रासदी की कार्रवाई में एंडरसन को मुख्य आरोपी बनाया गया था. साल 1992 में कोर्ट ने एंडरसन को भगोड़ा घोषित कर दिया.
आखिर कितना मुआवजा मिला
साल 1987 में भोपाल जिला अदालत ने मामले की सुनवाई करते हुए कंपनी को 350 करोड़ रुपये के मुआवजे के भुगतान का आदेश दिया. 1989 में यूनियन कार्बाइड ने 1988 में जबलपुर हाईकोर्ट में याचिका दायर की. इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने मुआवजा घटाकर 250 करोड़ रुपये कर दिया था.
एमपी हाईकोर्ट से मामला सुप्रीम कोर्ट गया. सु्प्रीम कोर्ट ने 470 मिलियन डॉलर मुावजा देना तय किया. भारत सरकार के साथ 470 मिलियन डॉलर (करीब 715 करोड़ रुपये) का समझौता किया, जो पीड़ितों की जरूरतों के मुकाबले बहुत कम था. मुआवजे को 715 करोड़ से बढ़ाकर 7 हजार करोड़ करने की बात की गई. सु्प्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया.