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ग्वालियर की इस जगह से सिख धर्म में दीपावली मनाने की हुई थी शुरुआत, आज भी दर्शन करने आते हैं लाखों श्रद्धालु, जानिए क्‍या है कहानी

Data bandhi Chod gurudwara

गुरुद्वारा दाता बंदी छोड़ साहिब ग्वालियर

MP News: पूरे भारत में दीपावली बड़ी धूमधाम से मनाई जाती है. सिर्फ हिंदू ही नहीं यह पर्व सभी धर्म के लोग पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं. इसके पीछे उनकी अपनी वजह और मान्यता भी हैं. आज आपको सिख धर्म की विशेष दीपावली के बारे में बताने जा रहा है. सिखों की दीपावली का ग्वालियर से भी एक विशेष नाता है. सिखों की दीपावली शुरू होने के पीछे की कहानी क्या है, और ग्वालियर से इसकी शुरुआत कब और कैसे हुई हम आपको बताएंगे.

ग्‍वालियर किले में मौजूद है गुरुद्वारा

ग्वालियर के विश्व प्रसिद्ध किले की ऊंचाई पर एक बड़े हिस्से में ऐतिहासिक गुरुद्वारा मौजूद है जिसका नाम ‘दाता बंदी छोड़’ है. इस गुरुद्वारे के पीछे की कहानी बड़ी दिलचस्प है. यहीं से सिख समाज की दीपावली मनाने की शुरुआत हुई थी. बताया जाता है कि जब सिख धर्म के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए मुगल शासक जहांगीर ने सिखों के छठे गुरु हरगोविंद साहिब को बंदी बनाकर ग्वालियर के किले में कैद कर दिया था, लेकिन किले में पहले से ही 52 हिंदू राजा कैद थे.

गुरु हरगोविंदजी जब जेल में पहुंचे तो सभी राजाओं ने उनका स्वागत किया. जहांगीर ने गुरु हरगोविंद को 2 साल 3 महीने तक जेल से बाहर नहीं आने दिया. उसके बाद जहांगीर की तबीयत खराब होने लगी. उसके बाद उन्हें किसी पीर ने बताया कि ग्वालियर किले पर नजरबंद गुरु हरगोविंद साहिब को मुक्त कर दो तभी वो ठीक हो सकते हैं. इसी के बाद गुरु हरगोविंद साहिब को रिहा करने के लिए जहांगीर तैयार हुआ था.

जहांगीर ने गुरुदेव से रखी थी ये शर्त

जहांगीर ने गुरु हरगोविंद साहिब को रिहा करने का फैसला लिया और कहा कि आपको यहां से मुक्त किया जाता है, तो गुरु हरगोविंद साहिब ने अकेले रिहा होने से मना कर दिया. गुरु हरगोविद साहिब से जब जहांगीर ने इसकी वजह पूछी तो उन्होंने कहा कि मैं यहां पर कैद 52 हिंदू राजाओं को अपने साथ लेकर जाऊंगा.

इसके बाद गुरु हरगोविंद साहिब की शर्त को स्वीकार करते हुए जहांगीर ने भी एक शर्त रखी. जहांगीर ने कहा कि कैद में गुरु जी के साथ सिर्फ वही राजा बाहर जा सकेंगे, जो गुरुजी का कोई कपड़ा पकड़े होंगे. इसके बाद गुरु हरगोविंद साहिब ने जहांगीर की शर्त को स्वीकार कर लिया.

ऐसे पड़ा ‘दाता बंदी छोड़’ नाम

जहांगीर की चालाकी को देखते हुए गुरु हरगोविंद साहिब ने एक 52 कलियों का कुर्ता सिलवाया. इस तरह एक एक कली को पकड़ते हुए सभी 52 हिंदू राजा जहांगीर की कैद से आजाद हो गए. 52 हिंदू राजाओं को ग्वालियर के इसी किले से एक साथ छोड़ा गया था, इसलिए यहां बने इस गुरुद्वारे का नाम ‘दाता बंदी छोड़’ प्रसिद्ध हो गया. यहां लाखों की तादात में सिख धर्म के अनुयाई अरदास करने आते हैं. यह पूरे विश्व में सिख समाज का छठवां सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है.

इस दिन मनाया जाता है प्रकाश पर्व

यहां सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग दाता बंदी छोड़ गुरुद्वारा पर अपनी अरदास करने के लिए पहुंचते हैं. जब गुरु हरगोविंद साहिब, जहांगीर की कैद से 52 हिंदू राजाओं को लेकर बाहर निकले, तो इस दिन को सिख समुदाय दुनियाभर में प्रकाश पर्व के रूप में मनाने लगा. कार्तिक माह की अमावस्या को ‘दाता बंदी छोड़’ दिवस भी मनाया जाता है. कहा जाता है कि उसी समय से सिख धर्म के लोग दीपावली के त्यौहार को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं. दीपावली के दिन ‘दाता बंदी छोड़’ दिवस पर लाखों की संख्या में लोग देश-विदेश से यहां जुटते हैं.

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यहां पर धूमधाम से हरगोबिंद साहिब गुरुद्वारे पर लाखों की संख्या में दीपदान कर दीपावली मनाई जाती है. साथ ही दीपावली के 2 दिन पहले सिख समुदाय के अनुयाई धूमधाम से यहां से अमृतसर स्वर्ण मंदिर पहुंचते हैं. दीपावली के दिन वहां भी प्रकाश पर्व धूमधाम से मनाया जाता है, क्योंकि कहा जाता है कि गुरु हरगोविंद साहिब रिहा होने के बाद सीधे स्वर्ण मंदिर गए थे.

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