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क्या है 337 टन यूनियन कार्बाइड कचरा, जो भोपाल गैस त्रासदी के 40 साल बाद हटा? क्यों लड़ी गई 21 साल तक लड़ाई और अब हो रहा विरोध

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यूनियन कार्बाइड कचरे की कहानी

Explainer: आज से 4 दशक पहले मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) हुई थी. 2 दिसंबर 1984 की रात यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री (Union Carbide Factory) से मिथाइल आइसो साइनाइट गैस का रिसाव होने लगा. यह जहरीली गैस पूरे शहर में फैली , जिसके बाद हजारों लाशें बिछ गई. इस त्रासदी का असर आज भी देखने को मिलता है. 40 साल बाद यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री में रखे 337 टन ‘जहरीले’ कचरे को हटाकर जलाने के लिए शहर से दूर पीथमपुर पहुंचाया गया है. इस वेस्ट को डिस्पोज करने के लिए 21 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी गई. अब जब इस वेस्ट को डिस्पोज करना है तो विरोध भी शुरू हो गया है.

क्या है यूनियन कार्बाइड कचरे की कहानी?

2 दिसंबर 1984 की रात यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री (Union Carbide Factory) से जहरीली गैस का रिसाव हुआ था. इस फैक्ट्री में कीटनाशक बनाए जाते थे.यहां से मिथाइल आइसो साइनाइट गैस का रिसाव होने के बाद जहरीली गैस पूरे शहर में फैल गई. देखते ही देखते रातों रात भोपाल में हजारों की संख्या में न सिर्फ इंसान बल्कि पशु और पक्षियों ने भी दम तोड़ दिया. दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी Bhopal Gas Tragedy को 40 साल बीत चुके हैं. आपदा के बाद भले ही फैक्ट्री बंद हो गई हो लेकिन अब तक कारखाने में जहरीला कचरा मौजूद था, जिसे अब हटाकर डिस्पोज धार जिले के पीथमपुर पहुंचाया गया है.

21 साल तक लड़ी गई कानूनी लड़ाई

कारखाने से हटाकर कचरे को बाहर डिस्पोज करने के लिए 21 साल तक कानूनी कार्रवाई लड़ी गई.

ग्रीन कॉरिडोर से पहुंचे कंटेनर

337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को जलाने के लिए पूरा प्लान बन चुका है. इस भोपाल से 250 किलोमीटर दूर धार जिले के इंड्रस्ट्रियल एरिया पीथमपुर लाया गया है. बुधवार रात 12 कंटेनर हाई सिक्योरिटी के बीच पीथमपुर के लिए रवाना किए गए थे, जो 7 घंटे का सफर तय कर गुरुवार सुबह पहुंचे. कचरे से लदे कंटेनर्स के आगे पुलिस की 5 गाड़ियां थीं. कंटेनर्स के साथ पुलिस, एंबुलेंस और दमकल की गाड़ियां भी तैनात रहीं.

एक कंटेनर में कितना कचरा?

जानकारी के मुताबिक एक कंटेनर में औसत 30 टन कचरा है. 337 मीट्रिक टन जहरीला कचरा जलाया जाएगा, जिसके बाद 1625 मीट्रिक टन अवशेष बचेगा. इस बचे हुए अवशेष को पीथमपुर में लैंडफिल किया जाएगा. कचरे को स्टोर करने के लिए 2,152 ड्रम की जरूरत पड़ेगी.

कारखाने से निकला 5 तरह का कचरा

यूनियन कार्बाईड फैक्ट्री से 5 तरह का जहरीला कचरा निकला है. इसमें-

जलाने के लिए क्या है प्लानिंग?

यूनियन कार्बाईड फैक्ट्री से निकले वेस्ट को जलाने के लिए पूरी तैयारी कर ली गई है. 337 टन वेस्ट को डिस्पोज करने के लिए 505.5 मीट्रिक टन चूने की जरूरत पड़ेगी. इसके अलावा 252.75 टन एक्टिवेटेड कार्बन और 2247 किलो सल्फर पाउडर की जरूरत रहेगी. कचरे को जलाने के दौरान विशेष तौर पर सावधानी बरती जाएगी. पहले 37 टन कचरा जलाया जाएगा. कचरे को भोपाल से खास जंबो बैग में पैक कर रवाना किया गया है. ये बैग एचडीपीई नॉन रिएक्टिव लाइनर के बने हैं, जिसमें कोई रिएक्शन नहीं हो सकता है.

साल 2015 में हो चुका है ट्रायल

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक साल 2015 में पीथमपुर में कचरा जलाने का ट्रायल किया गया था. परीक्षण के आधार पर 10 टन यूनियन कार्बाइड कचरे को जला दिया गया था, जिसके बाद आसपास की मिट्टी और जल स्त्रोत प्रदूषित हो गए थे.

ये भी पढ़ें- 40 साल बाद यूनियन कार्बाइड का कचरा भोपाल से पीथमपुर पहुंचा, रामकी एनवायरो में 337 मीट्रिक टन वेस्ट जलाकर नष्ट किया जाएगा

कचरे को नष्ट करने में कितना खर्च आएगा?

एक किलो वेस्ट को जलाने में 3,740 रुपए खर्च होंगे, जबकि एक टन कचरे को नष्ट करने में 37 लाख रुपए खर्चा आएगा. जानकारों के मुताबिक यह कचरा 3 महीने में जल जाएगा. इसमें इससे ज्यादा समय भी लग सकता है. बताया जा रहा है कि वेस्ट को डिस्पोज करने के बाद कचरे की राख की जांच की जाएगी.

क्यों हो रहा है कचरे के डिस्पोज का विरोध

पीथमपुर में कचरा जलाने पर स्थानीय जनता विरोध कर रही है. लोगों को डर है कि यहां कचरा जलाने से प्रदूषण होगा और उनके स्वास्थ्य पर भी गंभीर असर पड़ेगा. कचरा जलाने के विरोध में 10 से ज्यादा संगठनों ने 3 जनवरी को पीथमपुर बंद का आह्वान भी किया है. इसके मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक लोगों का दावा है कि साल 2015 में पीथमपुर में परीक्षण के आधार पर 10 टन यूनियन कार्बाइड कचरे को जला दिया गया था. इससे आसपास के गांवों की मिट्टी, भूमिगत जल और जल स्रोत प्रदूषित हो गए थे.

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