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MP GK: एमपी की धरती का वो आदिवासी जिसने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए, भारत का पहला क्रांतिकारी जिसकी फोटो न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी

tantya bheel

टंट्या भील

MP GK: मध्य प्रदेश की धरती वीरों से भरी हुई है. वीर-वीरांगनाओं दोनों ने इस धरती को अपने रक्त से सींचा है. प्रदेश के हर कोने से एक वीर है जिसने आजादी की लड़ाई में अपना अमूल्य योगदान दिया है. इसमें जनजातीय वर्ग भी पीछे नहीं रहा है. इसी जनजातीय(आदिवासी) वर्ग से आते हैं टंट्या भील. सभी इन्हें प्यार से ‘टंट्या मामा’ के नाम से पुकारते हैं

रॉबिनहुड के नाम से थे मशहूर

टंट्या का जन्म खंडवा में 26 जनवरी 1842 में हुआ था. निमाड़ के इस सपूत ने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोला. भील जनजाति से संबंध रखने वाले टंट्या ने निमाड़ के घने जंगलों से काम को अंजाम दिया. अपने पूरे जीवन में उन्होंने कई कामों को मुकाम तक पहुंचाया जिसके लिए उनकी तारीफ होती है. ‘रॉबिनहुड ऑफ इंडिया’ कहा जाता था. उन्हें ये उपाधि इसलिए दी गई क्योंकि वे अंग्रेजों से लूटे गए खजाने को गरीबों में बांट दिया करते थे.

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जब न्यूयॉर्क टाइम्स में छपी फोटो

अंग्रेजों के खिलाफ टंट्या भील ने जीवन भर अभियान चलाए. ब्रिटिश सेना को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया था. निमाड़ के घने जंगलों में उन्होंने गुरिल्ला युद्ध का तरीका अपनाकर खूब परेशान किया. टंट्या शानदार निशानेबाज और तीरंदाज थे. 15 साल तक उन्होंने अंग्रेजों को परेशान किया. अपनी छोटी सी जनजातीय(आदिवासी) सेना भी बनाई थी.

एक बार की बात है जब अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया. लेकिन जेल से किसी तरह भागने में सफल रहे. इसके बाद जंगल में रहने लगे जहां से अंग्रेजों के खिलाफ अभियान चलाते थे. टंट्या भील कितने बड़े क्रांतिकारी थे इसे इस बात से समझ सकते हैं कि अंग्रेजों को पकड़ने में 7 साल लग गए.

रक्षाबंधन का समय था. टंट्या अपनी बहन के पास राखी बंधवाने गए थे. जहां उन्हें धोखे से पकड़ लिया गया. ये साल 1889 की बात थी. न्यूयॉर्क टाइम्स के 10 नवंबर 1889 के अंक में टंट्या भील की गिरफ्तारी की खबर प्रमुखता से छपी. इसमें टंट्या भील को भारत का रॉबिनहुड बताया गया.

खंडवा से गिरफ्तारी और जबलपुर में फांसी

टंट्या को गिरफ्तार करके जबलपुर ले जाया गया. सेंट्रल जेल में कैद करके रखा गया. उस समय यानी 19 अक्टूबर 1889 को सत्र न्यायालय ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई और 4 दिसंबर 1889 में फांसी दी गई.

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