MP News: आदि शंकराचार्य के बारे में तो सभी जानते हैं. कई लोग भगवान के रूप में पूजते हैं. देश की चार दिशाओं में चार मठ हैं जिन्हें चारधाम के नाम से जाना जाता है. इनकी स्थापना आदि शंकराचार्य ने की थी. मध्यप्रदेश से भी शंकराचार्य का संबंध रहा है. ओंकारेश्वर में शंकराचार्य गुफा भी है कहा जाता है कि यहां आचार्य शंकर ने ध्यान लगाया था.
ओंकार पर्वत पर 108 फीट ऊंची शंकराचार्य की मूर्ति
खंडवा जिले के ओंकारेश्वर में स्थित है ओंकार पर्वत. नर्मदा नदी के बिल्कुल बीचों-बीच स्थित होने के कारण इसे ओंकार द्वीप भी कहा जाता है. इसी ओंकार द्वीप या पहाड़ी पर बन रहा है अद्वैत लोक. इस लोक में देश की चार दिशाओं में स्थित मठों की परंपरा दिखाई देगी. यहीं स्थापित की गई है 108 फीट ऊंची जगद्गुरु शंकराचार्य की मूर्ति. अद्वैत लोक को महाकाल लोक की तर्ज पर बनाया जा रहा है.
मूर्ति को बाल स्वरूप में स्थापित किया गया है. इसके पीछे का कारण बताया जाता है कि जब शंकराचार्य यहां आए थे तो बालक थे. 108 फीट की ये मूर्ति भारत की सबसे ऊंची आदि शंकराचार्य की मूर्ति है.
तांबे से बनी है ये मूर्ति
इस मूर्ति का निर्माण कॉपर(तांबा), टिन और लेड(सीसा) से किया गया है. मूर्ति में तांबे की मात्रा 88 फीसदी, टिन 8 फीसदी और सीसा 4 फीसदी है. इसे मजबूती देने के लिए हाई स्ट्रेन्थ स्टील का इस्तेमाल किया गया है. प्रदेश की 23 हजार ग्राम पंचायतों से कॉपर, टिन , लोहा समेत धातु मिश्रण मूर्ति बनाने के लिए इकट्ठा किया गया था.
मूर्ति को बाल स्वरूप में बनाया गया है
आचार्य शंकर की ये मूर्ति बाल स्वरूप में है. ऐसा कहा जाता है कि शंकराचार्य अपने गुरु को खोजते-खोजते ओंकारेश्वर पहुंचे थे. केरल से जब आचार्य शंकर यहां पहुंचे तो उनकी उम्र मात्र 8 साल थी. ओंकारेश्वर में गुरु गोविंदपाद ने शंकर को दीक्षा दी. अगले 3 साल तक यहीं रहकर अद्वैत वेदांत का अध्ययन किया. जब शंकर 11 साल के हुए तो यहीं से आगे की यात्रा पर निकले. विद्वानों का मानना है कि इसके बाद ही देश के चारों कोनों में शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना की. ओंकारेश्वर को जगद्गुरु शंकराचार्य के प्राण प्रतिष्ठा का केंद्र बिंदु माना जाता है.
स्थानक अवस्था वाली इस मूर्ति की हैं कई खासियत
लगभग 2 हजार करोड़ रुपये की लागत से इस मूर्ति और परिसर का निर्माण किया जा रहा है. ये मूर्ति जिस परिसर में स्थापित की गई है उसे अद्वैत लोक नाम दिया गया है. ये मूर्ति स्थानक अवस्था में है यानी खड़ी अवस्था में है. मूर्ति को 52 फीट ऊंचे बेस पर बनाया गया है. इस बेस के ऊपर 27 फीट ऊंची कमल की आकृति बनाई गई है. इस तरह ये 108 फीट ऊंची मूर्ति अनोखी बन जाती है.
500 साल तक इसी अवस्था में रहेगी मूर्ति
आदिगुरु शंकराचार्य की मूर्ति को इतना मजबूत बनाया गया है कि 500 साल तक इसी अवस्था में रहेगी. नर्मदा नदी फॉल्ट लाइन में बहती है. इसी नदी के बीचों-बीच स्थापित है ‘स्टैच्यू ऑफ वननेस’. फॉल्ट लाइन की वजह से यहां भूकंप आते रहते हैं. इसी से बचने के लिए इसे भूंकपरोधी भी बनाया गया है.
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कैनवास पर उकेरा विष्णुदेव कामत ने और भगवान रामपुरे ने दिया आकार
मूर्ति बनाने से पहले प्रसिद्ध चित्रकार वासुदेव कामत ने इसे कैनवास पर उतारा. वास्तविक रूप से मूर्ति का आकार और दिखने में कैसी होगी इसका चित्र कैनवास पर उकेरा. एक इंटरव्यू के दौरान वासुदेव कहते हैं कि चित्र बनाने से पहले उन्होंने शास्त्रों का अध्ययन किया. केरल और सांस्कृतिक शोध ग्रंथ की स्टडी की. उसके बाद जाकर मूर्ति बनने से पहले चित्र के रूप में उकेरा गया.
चित्र बनने के बाद मूर्ति बनाने का काम आसान ना था. इस काम को साकार रूप दिया मूर्तिकार भगवान रामपुरे ने. कैनवास में बनी शंकराचार्य की आकृति का अध्ययन रामपुरे ने किया. जहां पहले मूर्ति को प्रारंभिक अवस्था में बनाया गया वहीं उसके बाद धातु का आकार दिया गया.
मूर्ति बनाते समय एक-एक बारीकी का ध्यान रखा गया. गले में रुद्राक्ष की माला, एक हाथ में दंडी और दूसरे हाथ में कमंडल और पैरों में खड़ाऊ है. दोनों हाथों, गले और माथे पर त्रिपुंड देखा जा सकता है. इसके साथ-साथ चेहरे से साफ-साफ बाल रूप के दर्शन होते हैं.
अद्वैत लोक: म्यूजियम, मंदिर और भी कई सुविधा का होगा विस्तार
अद्वैत लोक जिसमें आचार्य शंकर की मूर्ति है. इसी लोक में शंकराचार्य म्यूजियम, आचार्य शंकर अंतर्राष्ट्रीय अद्वैत वेदांत संस्थान, शंकर निलयम, अद्वैत वन और अभय घाट का निर्माण होगा. संन्यास और गुफा मंदिर का जीर्णोद्धार और विकास किया जाएगा. इसके अलावा यहां हाईस्क्रीन थियेटर, लेजर लाइट शो, वाटर एंड साउंड शो का आयोजन किया जाएगा.