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MP News: तिलक सिंदूर मंदिर जहां भगवान शिव को चढ़ाया जाता है सिंदूर; एमपी के ऐसे 5 शिव मंदिर के बारे में जानकर आप रह जाएंगे हैरान

Five mysterious Shiva temples of the state

प्रदेश के पांच रहस्यमयी शिव मंदिर

MP News: घने जंगल, पहाड़, नदियां और वाइल्डलाइफ ये मध्यप्रदेश की एक पहचान का हिस्सा है. एमपी को नेचर ने जितना दिया है वो लाजवाब है. इसके साथ ही इस खूबसूरत राज्य की एक और पहचान यहां के धार्मिक स्थान हैं. राज्य के हर जिले में कोई ना कोई ऐसा धार्मिक स्थल है जो इसे अलग और हटकर नया बनाता है. मध्यप्रदेश में कई सारे शिव मंदिर हैं जो अपने आप में कई सारी विशेषताओं को समेटे हुए हैं. एमपी के इन पांच शिव मंदिर के बारे में आपको भी जानना चाहिए.

पातालेश्वर महादेव मंदिर – अमरकंटक

पातालेश्वर शिव मंदिर या पातालेश्वर महादेव मंदिर अनूपपुर जिले के अमरकंटक में स्थित है. अमरकंटक में कल्चुरि राजाओं ने यहां 6 बड़े सुंदर और कलात्मक मंदिरों का निर्माण करवाया. इन मंदिरों का निर्माण लाल बलुआ पत्थर से करवाया गया. पातालेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण कल्चुरी राजा कर्ण ने 10वीं शताब्दी में करवाया था.

इस मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग जमीन से 10 फीट नीचे है. शिवलिंग तक पहुंचने के लिए सीढ़ियों का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि साल में एक बार नर्मदा नदी शिवलिंग को अपना जल अर्पित करने गुप्त रूप से आती हैं. हर साल सावन के महीने के एक सोमवार को ऐसा होता है. अमरकंटक से नर्मदा, सोन और जोहिला सोन जैसी नदियों का उद्गम होता है. कहा जाता है कि अमरकंटक क्षेत्र भगवान शिव की तपोस्थली है.

गैवीनाथ महादेव मंदिर – बिरसिंहपुर

गैवीनाथ महादेव मंदिर पहली नजर में बाबा वैद्यनाथ के मंदिर की तरह दिखाई देता है. यहां भगवान शिव और मां पार्वती का मंदिर अलग-अलग बना हुआ है. जब श्रद्धालुओं की मन्नत पूरी होती है तो भगवान शिव के मंदिर के शिखर से मां पार्वती के मंदिर के शिखर तक मौली से बंधनवार बनाते हैं. गैवीनाथ महादेव मंदिर सतना जिले के बिरसिंहपुर में स्थित है. ऐसा कहा जाता है कि गैवी यादव के घर शिवलिंग मिलने के कारण गैवीनाथ महादेव मंदिर नाम रखा गया.

इस मंदिर की कई सारी खासियत हैं. ये दुनिया का एकमात्र खंडित शिवलिंग है जो शिवालय में स्थापित है और पूजा की जाती है. ऐसा कहा जाता है कि मुगल राजा औरंगजेब ने शिवलिंग को खंडित किया था. औरंगजेब मूर्ति पूजा के सख्त खिलाफ था. ऐसी मान्यता है कि औरंगजेब ने तलवार से शिवलिंग को खंडित किया. तलवार के पहले वार से शिवलिंग से गंगाजल, दूसरे वार से खून और तीसरे वार से मधुमक्खियां निकलीं. इन मधुमक्खियों ने औरंगजेब के सैनिकों को काटा. इस मंदिर का जिक्र पद्मपुराण में मिलता है. इस जगह का पद्मपुर के नाम से वर्णन मिलता है. इस मंदिर का निर्माण बघेल वंश के राजा वीर सिंह ने करवाया था. राजा वीर सिंह के नाम पर ही वीरसिंहपुर शहर का नाम पड़ा.

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पशुपतिनाथ महादेव मंदिर – मंदसौर

मंदसौर जिले में शिवना नदी किनारे स्थित है पशुपतिनाथ महादेव मंदिर. इस मंदिर में दुनिया की एकमात्र आठ मुख वाली शिवलिंग है. मंदिर के गर्भगृह में एक विशाल शिवलिंग है जिसके आठ मुख हैं. शिवलिंग के नीचे की ओर चार मुख और इन्हीं चार मुख के ऊपर चार मुख हैं. इस तरह शिवलिंग में कुल 8 मुख हैं. इसी कारण अष्टमुखी महादेव भी कहा जाता है.

शिवलिंग की ऊंचाई 7.5 फीट है. एक पत्थर से शिवलिंग का निर्माण किया गया है और शिवलिंग पर मुख की आकृति को उकेरा गया है. इस शिवलिंग में ऊपर की ओर बने चार मुख इंसान की चार अवस्थाओं को बताते हैं जिनमें बाल अवस्था, युवा अवस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था हैं. यहां सावन के महीने में मेला लगता है जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु शामिल होने आते हैं.

तिलक सिंदूर महादेव मंदिर – इटारसी

नर्मदापुरम जिले के इटारसी में स्थित ये मंदिर अपने आप में कई सारी खूबियां समेटे हुए है. ये दुनिया का एकमात्र मंदिर है जहां भगवान शिव को सिंदूर चढ़ाया जाता है. सतपुड़ा की पहाड़ियों में स्थित ये मंदिर प्राचीन होने के साथ-साथ यहां प्रकृति का संगम देखने को मिलता है. ऐसा कहा जाता है कि इसी जगह पर भगवान गणेश ने सिंदूरी नाम के राक्षस को मारा था. राक्षस के रक्त से भगवान शिव का अभिषेक किया था.

कई सारी मान्यताओं में से एक मान्यता ये भी है कि गोंड राजा इस मंदिर में पूजा-अर्चना किया करते थे. पूजा के दौरान गोंड राजा सिंदूर चढ़ाया करते थे. इसी कारण आज भी सिंदूर चढ़ाया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में पुराने समय में तांत्रिक क्रियाएं की जाती थीं.

नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर – विदिशा

भगवान शिव के इस मंदिर को परमार वंश के राजा उदयादित्य ने बनवाया था. नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर परमार काल की शानदार कारीगरी का नूमना है. इस मंदिर के मंडप और गर्भगृह से लेकर शिखर तक कलात्मक कारीगरी देखने को मिलती है. लाल बलुआ पत्थर से बने इस मंदिर को 11वीं शताब्दी में बनवाया गया था. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसे एक रात में बनाया गया. यहां सावन के महीने, महाशिवरात्रि के अवसर पर मेले का आयोजन किया जाता है. इस मेले में घूमने लोग दूर-दूर से आते हैं.

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