MP News: मोहन सरकार में वन मंत्री रहे रामनिवास रावत चुनाव हार गए हैं. चुनाव हारने के बाद उन्होंने इस्तीफा भी दे दिया है. अब सरकार के भीतर मंत्रियों के अंदर आस जगी है कि क्या उन्हें एक और मंत्रालय का प्रभार मिल सकता है या फिर मुख्यमंत्री खुद ही वन विभाग अपने पास रखेंगे. दूसरी तरफ सरकार के भीतर मौजूद सीनियर विधायक को जिम्मेदारी मिल सकती है. अब मध्य प्रदेश में एक और राजनीतिक घटनाक्रम होने वाला है.
अब किसे मिलेगी वन विभाग जिम्मेदारी
विजयपुर का उपचुनाव रामनिवास रावत हार चुके हैं. मंत्री नहीं बनाए जाने से कुछ और बीजेपी के नेता नाराज चल रहे हैं. बीजेपी उनको मनाने की कोशिश एक बार फिर से कर सकती है. वन मंत्री के तौर पर उनकी ताजपोशी हो सकती है. मध्य प्रदेश में एक-दो बार छोड़ दिया जाए तो अभी तक सीनियर नेता ही वन मंत्री बने हैं. ऐसे में पूर्व मंत्री रहे भूपेंद्र सिंह और गोपाल भार्गव का नंबर भी लग सकता है. उन्हें भी उम्मीद है कि सरकार में उनकी हिस्सेदारी बतौर मंत्री हो सकती है. हालांकि यह फैसला मुख्यमंत्री मोहन यादव को लेना है. मुख्यमंत्री विदेश दौरे पर हैं. विदेश दौर करने के बाद ही फैसला होगा कि क्या वन विभाग किसी विधायक को दिया जा सकता है या फिर मुख्यमंत्री खुद ही इस विभाग को संभालेंगे. मुख्यमंत्री के पास अभी फिलहाल खनिज विभाग, सामान्य प्रशासन विभाग, औद्योगिक के साथ-साथ जनसंपर्क और कई अन्य विभाग भी है.
ये भी पढ़ें: विजयपुर सीट से चुनाव हारने के बाद रामनिवास रावत ने कैबिनेट मंत्री पद से दिया इस्तीफा, 3 महीने पहले बनाए गए थे
संगठन से चर्चा करके मुख्यमंत्री लेंगे फैसला
किसी विधायक को मंत्री बनाने का फैसला मुख्यमंत्री संगठन से पूछने के बाद ही लेंगे. विदेश से लौटने के बाद मुख्यमंत्री जरूर संगठन से इस संबंध में चर्चा करेंगे. इसके बाद ही मध्य प्रदेश में वन मंत्री की ताजपोशी होगी. संगठन राजी रहा तो एक और मंत्री बनाए जा सकते हैं अगर संगठन की तरफ से हरी झंडी नहीं मिली तो मुख्यमंत्री ही कुछ समय तक वन विभाग का जिम्मा संभालेंगे. बहरहाल, वन विभाग को कुछ समय तक बिना मंत्री के ही काम चलाना होगा.
निर्मला सप्रे, कई और विधायकों के लिए बड़ी सीख
रामनिवास रावत की तर्ज पर निर्मला सप्रे ने भी इस्तीफा दे दिया था. अब रामनिवास रावत चुनाव हार चुके हैं. ऐसे में यह संदेश कई और विधायकों के लिए भी गया है. जो पार्टी की टिकट से चुनाव लड़ते हैं, फिर जीत जाते हैं और दल-बदल करते हैं. उनके लिए भी यह सीख होगी कि जनता ने उन्हें चुना है तो 5 साल तक एक पार्टी में ही रहे. अगर दल-बदल करते हैं तो फिर चुनाव जीतने का मामला 50-50 हो जाता है और रावत तो चुनाव हार चुके हैं.
ये भी पढ़ें: प्रदेश के नए DGP होंगे कैलाश मकवाना; 1989 बैच के IPS अफसर, साढ़े 3 साल में हुए 7 तबादले
हालांकि उन्हें उम्मीद पूरी थी कि संगठन बीजेपी और मुख्यमंत्री के रहते चुनाव जरूर जीत जाएंगे लेकिन परिणाम खिलाफ रहा और कांग्रेस के मुकेश मल्होत्रा चुनाव जीत गए. सप्रे की हालत असमंजस वाली है. बीजेपी में शामिल जरूर हो गई है लेकिन अभी तक आधिकारिक तौर पर पुष्टि नहीं की है. कांग्रेस ने निर्मला सप्रे से पल्ला झाड़ लिया है. दल-बदल कानून लागू करने के लिए विधानसभा अध्यक्ष को भी नेता प्रतिपक्ष ने पत्र लिखा है. अब आने वाले दिनों में शीतकालीन सत्र शुरू होगा. दिलचस्प यही होगा कि आखिर निर्मला सप्रे सदन में मौजूद रहती हैं तो कौन से पाले में कुर्सी तय होती है.