MP News: घना जंगल और ऐसा घना जंगल जहां सूरज की रोशनी भी जमीन पर पहुंचने के लिए भी संघर्ष करती है. एक-दूसरे से सटकर आसमान को छूने वाले पेड़ अपनी बाहें फैलाकर सूरज की रोशनी समेट लेना चाहते हैं. जमीन का एक-एक इंच भी हरियाली से खाली नहीं ना हो. पेड़ों के जंगल के नीचे घास का मैदान और जहां तक नजर जाए वहां तक हरियाली ही हरियाली. बारिश, ठंड और गर्मी इस जंगल को और ज्यादा आकर्षक बनाती है.
फ्लोरा और फॉना में इस जंगल का जवाब नहीं. वाइल्डलाइफ के मामले में तो देश-दुनिया से टूरिस्ट यहां आते हैं. 32 पहाड़ियों से घिरा ये जंगल केवल जंगल ही नहीं नेशनल पार्क है. इसके साथ-साथ ये टाइगर रिजर्व भी है. एमपी के उमरिया में स्थित इस नेशनल पार्क का नाम है बांधवगढ़. यहां बाघों की अच्छी खासी तादाद होने के कारण इसे टाइगर रिजर्व का दर्जा भी दिया गया है.
32 पहाड़ियों से घिरा, वाइल्डलाइफ में अव्वल
बांधवगढ़ नेशनल पार्क की गिनती भारत के शानदार नेशनल पार्क में से एक में होती है. पूरा नेशनल पार्क 32 पहाड़ियों से घिरा है. ये पहाड़ियां पूरे साल भर हरियाली से लदी नजर आती है. साल, सागौन, शीशम जैसे कीमती पेड़ दिखना यहां आम बात है. दूर तक फैला घास का मैदान इस नेशनल पार्क को और जानदार बना देता है. जो भी यहां सफारी के लिए आता है उसे यहां शानदार सनराइज और सनसेट देखने को मिलता है.
इस नेशनल पार्क का राजा टाइगर है. एमपी में सबसे ज्यादा टाइगर इसी पार्क में पाए जाते हैं. यहां टाइगर की संख्या 165 है. नंबर के हिसाब से देखें तो बांधवगढ़ भारत का सबसे ज्यादा टाइगर्स वाला रिजर्व है. ये पार्क सीता बाघिन और चार्जर बाघ के लिए जाना है. जिनकी वजह आज भी बांधवगढ़ का ये नेशनल पार्क बाघों से गुलजार है. टाइगर्स के अलावा यहां हाथी, भालू, हिरण, चीतल, तेंदुआ, लकड़बग्घा, जंगली सुअर (WILD BOAR),नीलगाय पाई जाती हैं. यहां सांपों की कई प्रजातियां देखने को मिलती है. इनमें कोबरा, करैत, पायथन, रेट स्नैक, वाइपर शामिल है.
भगवान राम ने भाई लक्ष्मण को दिया था किला
बांधवगढ़ नेशनल पार्क में एक किला है जिसे बांधवगढ़ का किला कहा जाता है. इसी किले की वजह से नेशनल पार्क का नाम बांधवगढ़ पड़ा. ऐसा कहा जाता है कि श्रीलंका से लौटते वक्त भगवान श्रीराम और लक्ष्मण ने इसी जगह आराम किया था. तब भगवान राम ने इस जगह को अपने भाई लक्ष्मण को दिया था. बांधव यानी भाई और गढ़ मतलब किला दोनों को मिलाकर बना बांधवगढ़.
इस किले का इतिहास 2 हजार साल से ज्यादा पुराना है. यहां मौर्य, मघ, कल्चुरी, बघेल राजवंश ने यहां राज किया. ये किला 881 मीटर ऊंची पहाड़ी पर स्थित है. जहां आम नागरिकों को जाने के लिए मुमकिन नहीं क्योंकि ये नेशनल पार्क के कोर एरिया में आता है. आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने यहां सर्वे किया. यहां 2 हजार साल से ज्यादा पुरानी बौद्ध गुफायें, मूर्तियां और भी कई एविडेंस खोज निकाले.
ये भी पढ़ें: मुरैना में मुक्तिधाम की जमीन पर भू-माफिया का कब्जा, खुले में शव का अंतिम संस्कार करने को मजबूर ग्रामीण
कभी बघेल राजवंश की राजधानी रह चुका है बांधवगढ़
11वीं शताब्दी में बघेल राजवंश ने सबसे पहले बांधवगढ़ को अपनी राजधानी बनाया था. व्याघ्रदेव जिन्हें बघेल राजवंश का फाउंडर माना जाता है उन्होंने इस जगह राज किया था. घने जंगलों के बीच पहाड़ी पर स्थित ये किला लगभग 700 साल तक ये बघेल राजवंश की राजधानी बना रहा. बघेल राजवंश के राजा विक्रमादित्य ने 17वीं शताब्दी में रीवा को अपनी राजधानी बनाई. साल 1947 तक रीवा बघेल राजवंश की राजधानी बनी रही.
बांधवगढ़ की देन है ‘सफेद बाघ’
रीवा को राजधानी बनाने के बाद भी बांधवगढ़ बघेल राजाओं की मनपसंद शिकारगाह था. बघेल वंश के राजा यहां शिकार के लिए आया करते है. ब्रिटिश काल यहां इतना शिकार किया गया कि बाघों की संख्या में कमी आने लगी. भारत के आजादी होने के बाद वाइल्डलाइफ के प्रोटेक्शन के लिए कानून बनाया गया जिससे शिकार (HUNTING) पर बैन लगा दिया गया.
साल 1951 में राजा मार्तण्ड सिंह शिकार पर गए. तीन दिन तक शिकार किया गया. इस शिकार के अभियान में 13 बाघ मारे गए. शिकार के बाद एक गुफा से एक 6 महीने का सफेद बाघ पकड़ा गया. इस बाघ के मनमोहन रूप के कारण मार्तण्ड सिंह ने इसका नाम मोहन रखा. मोहन को रीवा लाया गया. यहां इस सफेद बाघ को ठाट-बाट से रखा गया.
मोहन और 3 बाघिनी (राधा, बेगम, सुकेशी) ने मिलकर 34 शावकों को जन्म दिया. इन 34 शावकों में से 21 बाघ सफेद थे. इनमें से कुछ शावकों को अमेरिका, ब्रिटेन और दूसरे देश भेजा गया. आज दुनियाभर में जितने भी सफेद बाघ हमें दिखाई देते हैं वे मोहन की देन हैं. मोहन आखिरी सफेद बाघ था जिसे बचाया गया और पहला बाघ था जिसने नस्ल को मिटने नहीं दिया.
शेषशायी विष्णु की 35 फीट लंबी मूर्ति
बांधवगढ़ नेशनल पार्क केवल अपनी नेचुरल ब्यूटी के लिए नहीं जाना जाता है. ये अपनी नेचुरल और स्प्रीचुअल मेल के लिए पहचाना जाता है. पार्क के ताला रेंज में शेषशायी विष्णु की 35 फीट लंबी मूर्ति है. हर साल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन हर श्रद्धालु के लिए दर्शन फ्री कर दिए जाते हैं. भगवान विष्णु के पास एक कुंड भी है इससे ही चरणगंगा नदी निकलती है. इस नदी को ‘बांधवगढ़ की लाइफलाइन’ कहा जाता है. यहां कबीर चौरा भी है जो कबीर पंथियों के लिए महत्वपूर्ण जगह है. कबीर जयंती के दिन यहां दूर-दूर से लोग आते हैं.