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1857 की क्रांति के नायक राजा किशोर सिंह की पुण्यतिथि पर CM मोहन यादव ने ‘शेर-ए-बुंदेलखंड’ किताब का किया विमोचन, राज्य मंत्री लखन पटेल भी रहे शामिल

Releasing the book Sher-e-Bundelkhand, CM Mohan Yadav, Minister of State Lakhan Patel and head of Vistaar News Brajesh Rajput.

शेर-ए-बुंदेलखंड पुस्तक का विमोचन करते हुए सीएम मोहन यादव एवं राज्य मंत्री लखन पटेल और विस्तार न्यूज के प्रमुख ब्रजेश राजपूत

MP News:  दमोह जिले के ग्राम हरदुआ हाथीघाट में जन्मे पत्रकार, लेखक, कवि चन्द्रभान सिंह लोधी द्वारा लिखित “शेर-ए-बुंदेलखंड : राजा किशोर सिंह” नामक पुस्तक का प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव एवं राज्य मंत्री लखन पटेल और विस्तार न्यूज के एडिटर इन चीफ ब्रजेश राजपूत के कर कमलों द्वारा विमोचन हुआ.

राजा किशोर सिंह का बुंदेलखंड क्रांति में अहम योगदान

राजा किशोर सिंह 1857 क्रांति के महानायक रहे. उनका बुंदेलखंड की क्रांति में भी अहम योगदान रहा था. देश को आजादी दिलाने में हिंडोरिया के जमींदार किशोर ने अंग्रेजी सेना से अपनी वीरता का लोहा मनवाया था और अपने प्राणों का बलिदान देकर मातृभूमि की रक्षा की. लड़ते लड़ते अंग्रेजों ने इन्हें फांसी पर चढ़ा दिया था. राजा के जीवन चरित्र पर किताब शेर-ए-बुंदेलखंड पहली किताब है जो राजा किशोर सिंह के जीवन पर लिखी गई है.

दरअसल, दमोह जिले में हिंडोरिया सन 1980 तक प्रदेश का सबसे बड़ा ग्राम था. वर्तमान में यह नगरीय क्षेत्र है जहां के जमींदार किशोर सिंह की अगुवाई में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बज गया. इस स्वतंत्रता संग्राम में दमोह के क्रांतिकारी भी अछूते नहीं थे. जिन्होंने किशोर सिंह के नेतृत्व में स्वाधीनता के लिए जंग छेड़ दी. उस समय सागर कमिश्नरी के रूप में हिंडोरिया जागीर के रूप में जानी जाती थी. राज्य हड़प नीति के तहत अंग्रेज 70 गांव की हिंडोरिया जमींदारी पर अपना कब्जा करना चाहते थे. इसलिए हिंडोरिया पर अंग्रेजो की सेना के द्वारा तोपों से हमला किया गया. जिसके निशान आज भी क्षतिग्रस्त हिंडोरिया गढ़ पर बने हुए हैं.

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राजा छत्रसाल के समय बसाई गई थी हिंडोरिया जागीर

जानकारी के मुताबिक, पहाड़ी पर स्थित किला किशोर सिंह के पूर्वजों के द्वारा बनवाया गया था. इन्हीं के पूर्वज ठा. बुद्घ सिंह ने राजा छत्रसाल के समय में हिंडोरिया जागीर बसाई थी. जुलाई 1857 में कमिश्नर सागर के द्वारा अपने मुंशी मोहम्मद अलीमुद्दीन के हाथ किशोर सिंह को पत्र के माध्यम से संदेश दिया गया कि आप अंग्रेजी हुकूमत से बगावत का रास्ता छोड़ दें तो क्षतिपूर्ति का सारा का सारा खर्च खजाने से भरपाई कर दी जाएगी और पुरानी जागीरें भी वापिस कर दी जाएंगी. लेकिन किशोर सिंह लोधी की अपनी मातृभूमि के प्रति अटल श्रद्धा कम नहीं हुई और मातृभूमि पर से फिरंगियों को खदेड़ने तक युद्ध जारी रखने की ठान ली.

जिसके बाद 10 जुलाई को ठाकुर किशोर सिंह, राव साहब स्वरूप सिंह ने अपने सभी साथियों के साथ दमोह पर अंग्रेजी सेना पर धावा बोलकर दमोह थाना को अंग्रेजी सेना से मुक्त करवाकर उस पर अपना कब्जा कर लिया. साथ ही अंग्रेजी शासन का पूर्व का रिकार्ड जला दिया. जिससे खौफजदा अंग्रेजी हुकूमत ने भारी सेना-बल भेज दिया. इसके बाद भी किशोर सिंह ने अनेकों साथियों साथ अनेक ग्रामों व कुम्हारी थाना पर अपना कब्जा कर लिया और फिरंगी सेना को हर बार हार का सामना करना पड़ा. इतना ही नहीं अमर सेनानी ठाकुर राजा किशोर सिंह को जिंदा या मुर्दा पकड़ने पर एक हजार का ईनाम घोषित किया गया था.

बता दें कि राजा किशोर सिंह की पुण्यतिथि के मौके पर यह विमोचन सीएम मोहन यादव के द्वारा किया गया है. यह किताब एमेजॉन, फ्लिपकार्ट जैसे सोशल साइटों पर उपलब्ध रहेगी.

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