भोपाल: देश के तमाम प्रदेशों की राजधानियों में सबसे “ग्रीन कैपिटल” का तमगा रखना वाले भोपाल की हालत दिनोंदिन खराब होती जा रही है. आए दिन ग्रीन बेल्ट पर कुल्हाड़ी चलाने से हरियाली खत्म हो रही है. लिंक रोड एक, दो और तीन का तो हाल बुरा है ही अब केरवा, शाहपुरा, कोलार, नीलबड़ और रातीबड़ से लेकर बड़े और छोटे तालाब के कैचमेंट भी अतिक्रमण और अनियोजित डेवलपमेंट की बाढ़ में पेड़ धराशाई होते जा रहे हैं. इसी का नतीजा है कि अब भोपाल में रहने वालों की सांसें जहरीले धुएं से फूल रही हैं. बुजुर्ग हों या युवा उनका मानसिक संतुलन गड़बड़ा रहा है. अब अवसाद का शिकार भी लोग हो रहे हैं.
नेताओं के लिए राजधानी की घटती हरियाली कभी नहीं रही चुनावी मुद्दा
विधानसभा हो या लोकसभा चुनाव, राजधानी की हरियाली हर चुनाव में कम ही होती गई लेकिन, यह मसला कभी उनकी प्राथमिकता में नहीं रहा. चुनावी रण में आरोपों के बाण चलाने वाले नेताओं को कभी इस मुद्दे पर गुस्सा नहीं आया. कभी उनको इस पर गुस्से से लाल होते नहीं देखा. उधर विशेषज्ञों का कहना है कि हरियाली कहीं ना कहीं प्राकृतिक स्ट्रेस बस्टर का कार्य करती है. प्रकृति के बीच रहने से लोग सूखे और बियाबान में रहने वालों की तुलना में ज्यादा खुश रहते हैं. यह अप्रत्यक्ष रूप से हमारे मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है. यह देखा गया है कि जो लोग हरियाली वाले क्षेत्र में रहते हैं वे सेहत को लेकर ज्यादा जागरूक होते हैं. ऐसे लोगों में सुबह रोजाना समय से उठने, मॉर्निंग वॉक, व्यायाम समेत अन्य अच्छी आदतें ज्यादा देखी जाती हैं. ये सभी फैक्टर स्वस्थ रहने में मदद करते हैं.
महानगरों की होड़ और स्मार्ट सिटी बनने की जिद छीन रही भोपाल की हरियाली
स्मार्ट सिटी भोपाल आधुनिक शहरों की होड़ में आने के लिए अपनी खूबसूरती और हरियाली को खोता जा रहा है. मल्टी स्टोरी बिल्डिंग, चौड़ी-चौड़ी सड़कें और मेट्रो शहर की दौड़ ने हमसे हमारे हरे भरे भोपाल को छीन लिया है. इसका ही नतीजा है शहर के सीनियर सिटीजन और युवाओं में मानसिक समस्याएं बढ़ रही हैं. इसके अलावा कई तरह की अन्य बीमारियों में इजाफा हो रहा है. इसकी बड़ी वजह भोपाल की हरियाली का तेजी से खत्म होना है. यह बात रिसर्च में भी साबित हो चुकी है कि मानसिक रोगों के बढने का कारण हरियाली की चादर का खत्म होना है. क्योंकि, लोगों को सकारात्मक माहौल नहीं मिल रहा है. हरियाली प्राकृतिक स्ट्रेस बस्टर का काम करती है. लेकिन, स्थिति यह है कि भोपाल के शहरी क्षेत्र में महज 7 फीसदी से भी कम हरियाली बची है. लेकिन, अफसोस शहर में घटती हरियाली चुनाव में प्रमुख मुद्दा नहीं रही.
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इस तरह पड़ रहा है आम लोगों की सेहत पर असर
रिसर्च के मुताबिक बढ़ता वायु, ध्वनि और प्रकाश प्रदूषण दिमाग पर चोट करता है. अनुसंधान में पाया गया कि जिन लोगों के घरों के 1000 मीटर के दायरे में पेड़ों की संख्या अधिक थी. यहां वे बड़े ग्रीन बेल्ट में रहते हैं. उनमें मानसिक रोगों की समस्या बेहद कम पाई गई. यही नहीं हरियाली वाले क्षेत्रों में रहने वाले मानसिक रोगियों को दवाओं की जरूरत कम होती है. वही ग्रीन कर घटना के कारण वायु, ध्वनि और प्रकाश प्रदूषण दिमाग पर चोट करता है. नुकसान मानसिक समेत कई अन्य बीमारियों को जन्म देता है.
80 साल से ऊपर के सीनियर सिटीजन की आबादी
विधानसभा—पुरुष— महिला— कुल
बैरसिया—- 1553—2454— 4007
भो. उत्तर— 1207—1346— 2553
नरेला— 1740—1733— 3473
दक्षिण-प.— 1487—1488— 2975
भो. मध्य— 2000— 2011—4011
गोविंदपुरा— 3365—2322— 5687
हुजूर— 2445—2338— 4383
इस तरह घट रहा भोपाल में ग्रीन कवर
साल— हरियाली
1990— 66 प्रतिशत
2007— 38 प्रतिशत
2008— 35 प्रतिशत
2019— 09 प्रतिशत
2022— 07 प्रतिशत
एक्सपर्ट बोले.. बेहतर जीवन के लिए जिस जगह रहते हैं उसके आसपास 33 फ़ीसदी हरियाली है अमृत
गोविंदपुरा विधानसभा क्षेत्र में 80 साल से अधिक आयु के 5 हजार 687 मतदाता हैं. पुराने शहर में महज 2 हजार 553 सीनियर सिटीजन मतदाता हैं. यह स्थिति बताती है कि जिस क्षेत्र में ज्यादा हरियाली है, वहां के लोग ज्यादा उम्र तक जिंदा रहते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि बेहतर जीवन के लिए कम से कम 30 फीसदी हरियाली जरूरी है.