MP News: कभी देश के सबसे खूबसूरत शहरों में शुमार किया जाने वाला ताल-तलैयों का शहर भोपाल अब “झुग्गियों की राजधानी” के नाम से जाना जाता है. समस्या है कि अजगर की तरह पसरती जा रही है, लेकिन समाधान खुद प्रशासन जैसे निकालना ही नहीं चाहता. हर बार योजना बनाई जाती है उसे पर अमल करने का ढूंढ किया जाता है लेकिन झुग्गियों की बीमारी लाइलाज हो चली है. राजधानी की खूबसूरती को ग्रहण लगाने वाली इन झुग्गियों पर विस्तार न्यूज़ ने न केवल खबर बनाई बल्कि स्टिंग ऑपरेशन के माध्यम से बताया कि कैसे वोट बैंक की चाह में खुद राजनीतिक दलों के छुटभैया नेताओं से लेकर विधायक और मंत्री तक की शह पर पर झुग्गी माफिया फल-फूल रहा है.
1984 में चला था झुग्गी मुक्त बनाने का अभियान
शहर को सबसे पहले झुग्गी मुक्त बनाने का अभियान 1984 में तत्कालीन अर्जुन सिंह सरकार ने चलाया था. इसके बाद भी झुग्गियां तनती रहीं. साल 2008 में जेएनएनयूआर प्रोजेक्ट के तहत सबसे ज्यादा 11,500 आवास बनाए गए. इनमें अर्जुन नगर, मैनिट के पास बस्ती, कोटरा सुल्तानाबाद नेहरू नगर, 1100 क्वाटर्स के प्रोजेक्ट शामिल हैं. इन पर करीब 448 करोड़ खर्च हुए, पर अब कलियासोत कैचमेंट के भीतर झुग्गियां बन गईं. जिन्हें मकान मिले, उन्होंने भेल क्षेत्र में भी झुग्गी बना लीं. अब फिर शहर में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत 14 हजार फ्लैट बनाने का अभियान चल रहा है. इस पर 546 करोड़ खर्च होंगे.
स्थानीय वोटबैंक के चलते जनप्रतिनिधि नहीं करते विरोध
“शहरी पीएम आवास योजना” के तहत राजधानी भोपाल में भी झुग्गी वालों को बहुमंजिला भवनों में फ्लैट और मकान दिए जा रहे हैं लेकिन इसके बावजूद शहर की तस्वीर ज्यों की त्यों बनी हुई है. भोपाल के विभिन्न क्षेत्रों में बसी झुग्गी बस्तियों में लगभग सात लाख से अधिक परिवार निवास करते हैं. हकीकत तो यह है कि जब प्रशासन अतिक्रमण और झुग्गी मुक्ति के अभियान चलता है तो खुद स्थानीय जनप्रतिनिधि वोट बैंक की राजनीति के तहत झुग्गी विस्थापन का विरोध करते हैं. राजधानी को झुग्गी मुक्त बनाने के लिए नगर निगम, जिला प्रशासन ने बीते दशक से लगातार प्रयास किए, लेकिन सफलता नहीं मिल पा रही है. दरअसल, झुग्गी बस्ती के रहवासियों को मकान तो मिल जाते हैं लेकिन वह अपना पुराना कब्जा नहीं छोड़ते हैं. इस वजह से झुग्गी बस्ती खत्म होने की बजाय तेजी से बढ़ती जा रही है.
बता दें कि, एक दशक में शासन द्वारा झुग्गी बस्ती खत्म करने के लिए दो हजार करोड़ रुपये की राशि खर्च की जा चुकी है. इसके लिए प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत पक्के मकान देने का काम निरंतर किया जा रहा है.
मौके की हकीकत
शहर के विभिन्न क्षेत्रों में बसी झुग्गी बस्तियों में लगभग 7 लाख से अधिक परिवार निवास कर रहे हैं.
40 साल में तीन बार कोशिश, 2000 करोड़ खर्च किए फिर भी बस्तियों की संख्या 03 से बढ़कर 400 हो गई.
झुग्गी वाले देश के टॉप-10 शहरों में मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, हैदराबाद, लखनऊ, कोलकाता, नागपुर, अहमदाबाद, बेंगलुरू के साथ भोपाल का भी नाम है.
मालूम हो की योजना के तहत सरकारी आवास का आकार 350 वर्गफीट का होता है, जबकि झुग्गी में 1000 से 1500 वर्गफीट की जमीन घेरी हुई होती है.
शहर में झुग्गी बस्तियों का जाल दिन-ब-दिन फैल रहा
-1500 एकड़ जमीन घेर रखी है 300 बस्तियों ने.
– 5000 रुपये प्रति स्क्वायर फीट औसतन कीमत.
– 20 करोड़ रुपए से अधिक एक एकड़ की कीमत.
डेढ़ हजार एकड़ जमीन पर 388 झुग्गी बस्ती
शहर के लगभग डेढ़ हजार एकड़ जमीन पर 388 झुग्गी बस्तियां बसी हैं. इनमें रोशनपुरा बस्ती, बाणगंगा, भीमनगर, विश्वकर्मा नगर, राहुल नगर, दुर्गा नगर, बाबा नगर, अर्जुन नगर, पंचशील, नया बसेरा, संजय नगर, गंगा नगर, बापू नगर, शबरी नगर, ओम नगर, दामखेड़ा, उड़िया बस्ती, नई बस्ती, मीरा नगर, ईदगाह हिल्स जैसी कुल 388 बस्तियां हैं.
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नगर निगम सीमा पर सबसे ज्यादा झुग्गी-झोपड़ी
नगर निगम सीमा यानी बंगरसिया, अमरावद खुर्द, रायसेन रोड, चांदपुर, नई जेल, कान्हासैया, गांधी नगर, बैरागढ़ व भौंरी के बीच, भदभदा डैम के पास तालाब के कैचमेंट एरिया में करीब 4 हजार झुग्गियां बस गई हैं. अभी बाणगंगा नगर, पंचशील, राहुल नगर, ईश्वर नगर, वल्लभ नगर, रोशनपुरा झुग्गी बस्ती क्षेत्र में पक्के मकान बन गए हैं. भेल की जमीन पर पिपलानी, हबीबगंज, गोविंदपुरा व बरखेड़ा सेक्टर के पिपलिया पेंदे खां, बरखेड़ा पठानी व पद्मनाभ नगर की खाली जमीन पर करीब 6 हजार झुग्गियां तन गईं. मिसरोद से बाग मुगालिया, अयोध्या से भानपुर तक सरकारी भूमि पर तेजी से कब्जे हो रहे हैं. ईदगाह हिल्स में भी झुग्गी बस्तियां हैं.
विस्तार न्यूज़ टीम ने स्टिंग ऑपरेशन कर खुलासा किया कि, किस तरह विधानसभा, मंत्रालय, सचिवालय से लेकर जिला प्रशासन और नगर निगम समेत तमाम सरकारी महाकों में 80 हजार से डेढ़ लाख तक वेतन पाने वाले भी झुग्गियों और अतिक्रमण के धंधे में मुनाफा काट रहे हैं. छूटभैया नेताओं और मंत्रालय, सचिवालय, नगर निगम के कर्मचारियों के गठजोड़ का नतीजा है कि राजधानी की तस्वीर नहीं बदल रही.
झुग्गी माफिया करता है अतिक्रमण और झुग्गी बसाहट का कारोबार
– सरकारी आवास परिवार के प्रमुख सदस्य के नाम आवंटित कराने के बावजूद परिवार के कुछ सदस्य झुग्गी नहीं छोड़ते हैं. यदि निगम आवास आवंटन के बाद झुग्गी तोड़ भी देता है तो उसी क्षेत्र में अन्य किसी सरकारी जगह पर झुग्गी तान ली जाती है.
– सरकारी आवास 350 वर्गफीट का होता है, जबकि झुग्गी में 1000 से 1500 वर्गफीट की जमीन घेरी हुई होती है. बड़े मकान को छोड़कर पक्के आवास में जाना पसंद नहीं किया जाता.
– स्थानीय जनप्रतिनिधि वोट बैंक की राजनीति के तहत झुग्गी विस्थापन का विरोध करते हैं. ऐसे में पक्का आवंटित आवास किराए पर चलवा दिया जाता है और परिवार वहीं झुग्गी में रहता है.