MP News: प्रदेश की न्यू ट्रांसफर पॉलिसी लगभग तैयार कर ली गई है. सामान्य प्रशासन विभाग ने एक सप्ताह पहले सभी बिंदुओं पर अध्ययन करते हुए पॉलिसी सीएम सचिवालय भेज दी है. इस बार की पॉलिसी में छत्तीसगढ़ और राजस्थान की तबादला नीति को आधार बनाया जा रहा है.उधर, प्रदेश के कई कर्मचारी संगठनों ने अब ट्रांसफर पॉलिसी लाने के औचित्य पर सवाल खड़े किए हैं और कहा है कि सितंबर माह में ट्रांसफर लिस्ट जारी होने से परिवारों को तमाम परेशानियों का सामना करना पड़ेगा.
डॉ. मोहन कैबिनेट के मंत्रियों को एक माह पहले ही जिलों का प्रभारी मंत्री बनाया गया है. इसके साथ ही मंत्रियों के पास ट्रांसफर-पोस्टिंग कराने वाले कर्मचारियों और अधिकारियों का पहुंचना प्रारंभ हो गया है. ये ऐसे कर्मचारी हैं जो स्वेच्छा के आधार पर तबादला कराना चाहते हैं. जीएडी ने पिछली नीति को आधार बनाते हुए प्रपोजल सीएम साचिवालय भेज दिया है. यहां छत्तीसगढ़ और राजस्थान की पॉलिसी का अध्ययन करने कहा है. हालांकि राजस्थान की ट्रांसफर पॉलिसी नहीं बनी है, छत्तीसगढ़ की नीति पर भी कोई खास अंतर नहीं है.
कैबिनेट में लाने की तैयारी
सूत्रों के अनुसार ट्रांसफर पॉलिसी सितंबर माह के अंत तक आने की संभावना है. इसमें पिछली नीति की तरह 10 प्रतिशत से अधिक तबादले नहीं करने की सलाह दी गई है. निःशक्तजन और पारिवारिक परेशानियों से संबंधित कर्मचारी- अधिकारियों के आवेदनों को प्राथमिकता पर लिया जाएगा.
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तो कैंसिल ज्यादा कराएंगे, परेशानियां ज्यादा बढ़ेंगी
अब ट्रांसफर पॉलिसी आना कर्मचारियों के हित में नहीं है, न ही न्याय संगत है. प्रदेश में हमेशामई- जून में तबादले होना चाहिए जिससे बच्चों के स्कूलों-कॉलेजों में समय पर एडमिशन हो सकें. अभी तबादले हुए तो बोरिया-बिस्तर इधर से उधर रखने में परेशानी तथा बच्चों की पढाई प्रभावित होगी सरकार इस पर गंभीरता वरते. मध्य प्रदेश कर्मचारी अधिकारी संघ के नेताओं का कहना है कि ट्रांसफर का अब समय निकल गया, मई-जून में ही तबादले होना चाहिए. अगर अब तबादले होंगे तो मंत्रियों और विभागों में निरस्त कराने वाले ज्यादा सक्रिय होंगे. ऐसे में अफरा-तफरी का माहौल बनेगा. चूंकि बच्चों की पढ़ाई का आधा सीजन निकल चुका है, इसलिए भी तबादले नहीं होना चाहिए.