MP News: विंध्य को सफेद बाघ की धरती के नाम से जाना जाता है. आज विश्वभर में जितने भी सफेद बाघ (White Tiger) हैं, वो सब ‘मोहन’ की संतानें हैं. महाराजा मार्तण्ड सिंह ने इन्हें सीधी जिले के कुसमी क्षेत्र के पनखोरा गांव के नजदीक जंगल से 27 मई 1951 को शिकार पर जाने के दौरान पकड़ा था. सफेद बाघ के शावक को देखकर महाराज मार्तंड सिंह ने उसका शिकार करने के बजाय उसे सहेजने के लिए पकड़ा और रीवा के गोविंदगढ़ किले में उसे रखा. वर्ष 2016 में सतना जिले के मुकुंदपुर में व्हाइट टाइगर सफारी के निर्माण के बाद सफेद बाघ सहित 250 प्रकार के जानवरों को यहां रखा गया.
पहले सफेद बाघ ‘मोहन’ को जिस जगह पर रखा गया था, वहीं पर अब टाइगर ब्रीडिंग सेंटर खोला जा रहा है. इसके लिये वन विभाग ने जमीन चिन्हित कर वहां लेआउट भी शुरू कर दिया है. देश में अब तक अलग से कोई ब्रीडिंग सेंटर नहीं बना है. यदि प्रोजेक्ट पूरा हुआ तो यह देश का पहला सेंटर होगा, जो चिड़ियाघर से अलग बनेगा. इतना ही नहीं, यह व्हाइट टाइगर की नस्ल तैयार करने के लिए होगा. ब्रीडिंग के बाद जो भी नस्ल तैयार होगी उसे जंगली ही बनाया जाएगा. इस ब्रीडिंग सेंटर से चिड़ियाघर में कोई भी वन्यजीव नहीं जाएगा. इसका उद्देश्य सिर्फ व्हाइट टाइगर की संख्या बढ़ाना है. पूरी दुनिया में सफेद बाघ दुर्लभ हैं. सफेद बाघ को सबसे पहले मध्यप्रदेश के रीवा संभाग में देखा गया था.
दुनिया का पहला सफेद बाघ मोहन
27 मई 1951 को सीधी जिले के कुसमी क्षेत्र के पनखोरा गांव के नजदीक जंगल में सफेद शेर का बच्चा पकड़ा गया था. इसे मोहन नाम दिया गया. मोहन को गोविंदगढ़ किले में रखा गया. 1955 में पहली बार सामान्य बाघिन के साथ सफेद बाघ मोहन की ब्रीडिंग कराई गई, जिसमें एक भी सफेद शावक नहीं पैदा हुए. 30 अक्टूबर 1958 को मोहन के साथ रहने वाली राधा नाम की बाघिन ने चार शावक जन्मे, जिनका नाम मोहिनी, सुकेशी, रानी और राजा रखा गया.
अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति की इच्छा के बाद मोहिनी को 5 दिसंबर 1960 को अमेरिका ले जाया गया, जहां पर उसका व्हाइट हाउस में भव्य स्वागत भी हुआ. आज ब्रिटेन और अमेरिका सहित देश और प्रदेश में जो सफेद बाघ हैं, उन्हें सीधे रीवा से ही भेजा गया था. दुनिया में सफेद बाघ की संख्या 200 है. लेकिन सभी के सभी चिड़ियाघरों में हैं.