Guna Lok Sabha Seat: एमपी की 29 लोकसभा सीट में गुना सीट सबसे महत्वपूर्ण और हाइप्रोफाइल सीट में से एक है. इस सीट पर सिंधिया राजघराने का प्रभुत्व रहा है. ग्वालियर के सिंधिया राजघराने की तीसरी पीढ़ी इस सीट से चुनाव लड़ रही है. सिंधिया राजघराने ने अलग-अलग पार्टियों से चुनाव जीता और संसद तक का सफर तय किया. एक तरह से कहा जाए तो ये सीट सिंधिया राजघराने की पारंपरिक सीट बन गई है जो पीढ़ी दर पीढ़ी जीतती आ रही है.
गुना सीट को गुना-शिवपुरी लोकसभा सीट के रूप में जाना जाता है. इस सीट से इस बार बीजेपी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया और कांग्रेस ने राव यादवेंद्र सिंह को उतारा है.
तीन जिलों की आठ विधानसभा सीट
इस सीट में तीन जिलों की आठ विधानसभा सीट आती हैं. इनमें शिवपुरी जिले की शिवपुरी, पिछोर, कोलारस; गुना जिले की बमोरी, गुना और अशोकनगर जिले की अशोकनगर, चंदेरी, मुंगावली विधानसभा सीट शामिल है. इन आठ में से दो सीट बमोरी और अशोकनगर कांग्रेस के पास हैं और बाकी 6 सीट बीजेपी के पास हैं. इनमें भी गुना और अशोकनगर सीट अनुसूचित जाति (SC) के लिए रिजर्व्ड है.
ज्योतिरादित्य सिंधिया – गुना से चार बार के सांसद
एजुकेशन – एमबीए (MBA)
संपत्ति – 424 करोड़ रुपये+
आपराधिक रिकॉर्ड – शून्य (0)
ज्योतिरादित्य सिंधिया का पूरा नाम ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया है. ग्वालियर के सिंधिया राजघराने से संबंध रखने वाले सिंधिया इस बार बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़ रहे हैं. सिंधिया ने राजनीति के गुर अपने परिवार से ही सीखे. दादी और पिता का राजनीति में प्रभाव इतना था कि सरकार गिराने की हिम्मत रखते थे. राजनीतिक इतिहास को खंगालने का प्रयास करें तो ऐसे उदाहरण सामने आते हैं. इस राजघराने की पहुंच इतनी थी कि ग्वालियर से दिल्ली की सत्ता को कंट्रोल किया.
राजनीति में सिंधिया राजघराने की बात करें तो दादी विजयाराजे सिंधिया और पिता माधवराव सिंधिया के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया राजनीति की कमान आगे बढ़ा रहे हैं. ज्योतिरादित्य के राजनीतिक सफर की बात करें तो राजनीति में एंट्री एकाएक हुई. साल 2001 में माधवराव सिंधिया की प्लेन क्रैश में मृत्यु के बाद 18 दिसंबर 2001 को कांग्रेस में औपचारिक रूप से शामिल हो गए. जब माधवराव सिंधिया की मृत्यु हुई तब वे गुना-शिवपुरी सीट से सांसद थे.
ये सीट खाली हो गई. फरवरी 2002 में इस सीट पर उपचुनाव हुए. इस उपचुनाव में ज्योतिरादित्य कांग्रेस के उम्मीदवार बनाए गए. सिंधिया ने अपने करीबी प्रतिद्वंदी बीजेपी के देशराज सिंह यादव को साढ़े चार लाख वोट से हरा दिया. इस तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया की राजनीति में एंट्री हुई और गुना से संसद तक का सफर तय किया. सिंधिया ने इस सीट से 2004, 2009 और 2014 का चुनाव जीता.
सिंधिया कई समितियों के सदस्य रहे. पहली बार साल 2008 में मंत्री बनाए गए. पहला विभाग सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री के रूप में संभाला. इसके अलावा कई सारे मंत्रालय संभाले जिनमें कॉमर्स और इंडस्ट्री, मिनिस्ट्री ऑफ पावर हैं. ये सारे मंत्रालय कांग्रेस सरकार में रहते हुए संभाले. साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया को बीजेपी के केपी यादव के हाथों हार झेलनी पड़ी.
साल 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने कई सारे समर्थकों के साथ बीजेपी में शामिल हो गए. इस दौरान एमपी में बनी नई नवेली कांग्रेस सरकार गिर गई और बीजेपी को बहुमत मिल गया. इसके बाद बीजेपी ने सरकार बनाई. बीजेपी ने सिंधिया को राज्यसभा सांसद के रूप में संसद तक पहुंचा दिया. केंद्र में मंत्री भी बनाए गए. इसमें सिविल एविशन भी शामिल है जो पिता माधवराव सिंधिया के पास कभी होता था. इसके अलावा स्टील मंत्री का जिम्मा भी सौंपा गया.
राव यादवेंद्र सिंह यादव – पहली बार लड़ रहे लोकसभा चुनाव
एजुकेशन- पोस्ट ग्रेजुएशन
संपत्ति- एक करोड़ रुपये+
आपराधिक रिकॉर्ड- एक
कांग्रेस ने इस बार राव यादवेंद्र सिंह को मैदान में उतारा है. गुना लोकसभा सीट में आने वाला अशोकनगर शहर यादव राजनीति का केंद्र है. यादवेंद्र का लगभग पूरा परिवार राजनीति में किसी न किसी तरह जुड़ा हुआ है. राव यादवेंद्र सिंह के पिता देशराज सिंह यादव ने 22 साल पहले साल 2002 में ज्योतिरादित्य सिंधिया के खिलाफ बीजेपी के टिकट से चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में देशराज को हार का सामना करना पड़ा था.
साल 2023 तक लगभग सारा परिवार बीजेपी में था लेकिन विधानसभा चुनाव से पहले राव यादवेंद्र सिंह बीजेपी से कांग्रेस में शामिल हो गए. परिवार में भी बीजेपी और कांग्रेस की दीवार खड़ी हो गई. यादवेंद्र सिंह के पिता देशराज सिंह तीन बार मुंगावली सीट से बीजेपी के टिकट से विधायक रहे. यादवेंद्र की मां बाई साहब गुना जिला पंचायत सदस्य हैं और बीजेपी की कार्यकर्ता भी हैं. इससे पहले साल 2015 में जिला पंचायत अध्यक्ष भी रह चुकी हैं.
यादवेंद्र सिंह यादव के राजनीतिक सफर की बात करें तो बहुत छोटा रहा है. साल 2015 में यादवेंद्र ने पहली बार जिला पंचायत सदस्य के लिए चुनाव लड़ा और जीते. साल 2023 में दोबारा जिला पंचायत सदस्य चुने गए. इसी साल यादवेंद्र ने कांग्रेस ज्वॉइन कर ली. इसके बाद कांग्रेस ने मुंगावली सीट से उम्मीदवार बनाया लेकिन चुनाव में अपने चाचा बृजेंद्र सिंह यादव से हार का सामना करना पड़ा. ये पहला मौका है जब राव यादवेंद्र सिंह लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं.
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ज्योतिरादित्य सिंधिया बनाम राव यादवेंद्र सिंह यादव
ज्योतिरादित्य सिंधिया के पास लंबा राजनीतिक करियर के साथ-साथ पारिवारिक इतिहास भी है. सक्सेस रेट की बात की जाए तो सिंधिया साल 2019 का चुनाव छोड़कर सभी चुनाव जीतें हैं. गुना सीट सिंधिया राजघराने की पारंपरिक सीट है जिसका फायदा उन्हें मिलेगा.
यादवेंद्र यादव के परिवार का इस सीट पर राजनीतिक प्रभुत्व रहा है. पिता, माता, भाई, चाचा और भी कई लोग राजनीति में हैं. इस सीट पर यादव वोटर्स अच्छी खासी संख्या में है जो जिताने में मदद कर सकता है. ओबीसी से आने वाले यादवेंद्र चुनाव को नई दिशा में मोड़ने में सफल हो सकते हैं.
आम चुनाव 2019 : ज्योतिरादित्य सिंधिया की हार
साल 2019 के चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया को हार का सामना करना पड़ा. इस चुनाव में सिंधिया कांग्रेस के उम्मीदवार थे और केपी यादव बीजेपी के प्रत्याशी थे. बीजेपी के केपी यादव को 6 लाख, 14 हजार, 49 वोट मिले और सिंधिया को 4 लाख, 88 हजार, 500 वोट मिले. दोनों के बीच जीत का अंतर 1 लाख 25 हजार, 549 रहा. केपी यादव यानी कृष्णपाल यादव कभी सिंधिया के सांसद प्रतिनिधि रहे थे.
गुना सीट का राजनीतिक सफर: हमेशा से सिंधिया राजघराने की फेवरेट सीट
तीन अलग-अलग पार्टी से राजमाता विजयाराजे सिंधिया सबसे ज्यादा 6 बार इस सीट से सांसद रहीं. पहली बार साल 1957 में कांग्रेस की टिकट से चुनाव जीता. दूसरी बार साल 1967 में स्वतंत्र पार्टी के टिकट से चुनाव जीता. 1989 से लेकर 1998 तक यानी चार बार विजया राजे सिंधिया बीजेपी की टिकट से सांसद रहीं.
माधवराव सिंधिया चार बार इस सीट से सांसद रहे. तीन बार अलग-अलग पार्टी से सांसद रहे. पहली बार साल 1971 में भारतीय जनसंघ, दूसरी बार साल 1977 में निर्दलीय सांसद रहे. तीसरी बार 1980 और 1999 में कांग्रेस से सांसद बने.
ज्योतिरादित्य सिंधिया चार बार यानी साल 2002, 2004, 2009 और 2014 में चारों बार कांग्रेस के टिकट से सांसद रहे. इस सीट से सबसे पहले साल 1952 में चुनाव हुए. इस साल हिंदू महासभा के वीजी देशपांडे ने चुनाव जीता.
गुना सीट का समीकरण
इस सीट पर कुल 18.83 लाख वोटर्स हैं. इनमें से 9.80 लाख पुरुष और 9.02 लाख महिला वोटर्स हैं. इस सीट पर 2.50 लाख से ज्यादा अनुसूचित जनजाति, एक लाख से ज्यादा अनुसूचित जाति, 50 हजार से ज्यादा यादव, 1.50 लाख से ज्यादा ब्राह्मण-क्षत्रिय और 50 हजार वैश्य और कायस्थ वोटर्स हैं जो किसी भी उम्मीदवारों की किस्मत बदलने के लिए काफी है.
(SOURCE: ECI, myneta.info, Digital Sansad)